श्रीलंका, भारत से 300,000 टन चावल आयात करेगा
श्रीलंका ने भारत और म्यांमार से 400,000 मीट्रिक टन चावल का आयात करने का फैसला लिया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रीलंका (srilanka) ने भारत और म्यांमार से 400,000 मीट्रिक टन चावल का आयात करने का फैसला लिया है। स्थानीय बाजार में चावल की कीमत स्थिर करने के लिए यह कदम उठाया जाएगा। सरकार संचालित दैनिक समाचारपत्र को व्यापार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव गिल्मा दाहनायके ने कहा, 'भारत से 300,000 मीट्रिक टन और म्यांमार से 100,000 मीट्रिक टन चावल आयात करने में व्यापार मंत्रालय जुटा है। मई तक चावल का आयात किया जाएगा।' इसके अलावा श्रीलंका ने भारतीय कंपनी इंडियन आयल कार्पोरेशन से 40-40 हजार मीट्रिक टन पेट्रोल और डीजल खरीदने का फैसला किया है।
मंत्रालय ने यह फैसला उपभोक्ताओं की मदद करने के लिए लिया है। कुछ बड़े चावल मिलों की कर्टेल रणनीति के कारण उपभोक्ताओं को बाजार में ऊंची कीमत पर चावल खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। 20,000 मीट्रिक टन के टुकड़े में चावल की आपूर्ति की जाएगी। बाजार में इसे नियमित आधार पर जारी किया जाएगा। देश अभी गंभीर विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा है। श्रीलंका में एक व्यक्ति हर साल 104.5 किलो चावल का उपभोग करता है। अनुमानित राष्ट्रीय चावल मांग 21 लाख टन है।
श्रीलंका को भारत दे चुका कई अरब डालर की मदद
भारत के एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक और श्रीलंका सरकार ने पिछले हफ्ते 50 करोड़ डालर की क्रेडिट लाइन समझौते पर दस्तखत किए। समझौते के समय श्रीलंकाई विदेश मंत्री राजपक्षे और कोलंबो में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले मौजूद थे। श्रीलंका इस धनराशि से पेट्रोलियम पदार्थो की खरीद कर सकेगा। भारतीय उच्चायोग के अनुसार इस धनराशि के साथ ही श्रीलंका को हाल की भारतीय सहायता बढ़कर चार अरब डालर (30 हजार करोड़ रुपये) पहुंच गई है। भारत ने कई मदों में पड़ोसी देश को यह सहायता दी है।
चीन और अन्य देशों के कर्ज में फंसे श्रीलंका की दशा कोविड महामारी ने और खराब कर दी। इसके चलते उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 3.1 अरब डालर रह गया। एक समय ऐसा भी आ गया जब राजधानी कोलंबो की विद्युत व्यवस्था कायम रखने के लिए डीजल कम पड़ गया था और वहां अंधेरा छाने की नौबत आ गई थी। बकाए का भुगतान न होने के कारण श्रीलंका के इकलौते तेलशोधक कारखाने में कच्चे तेल की आपूर्ति नवंबर में दो बार रुकी और कारखाने को बंद करना पड़ा। लेकिन भारत ने तत्काल मदद करके स्थिति को संभाल लिया। इसके बाद भारत ने पड़ोसी देश की लगातार आर्थिक मदद की और उसके विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती दी।