तेजी से बढ़ रहा अंतरिक्ष का कचरा, इन देशों ने सबसे ज्यादा फैलाया
दुनिया के ताकतवर देशों के बीच धरती के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी प्रतिस्पर्धा जारी
Space Debris Explanation: दुनिया के ताकतवर देशों के बीच धरती के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी प्रतिस्पर्धा जारी है, जिसे आमतौर पर 'स्पेस रेस' कहा जाता है. आसान भाषा में हम कह सकते हैं कि ये देश अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम करने की होड़ में लगे हुए हैं. इसी होड़ की वजह से धरती की निचली कक्षा में ढेर सारा कचरा (या मलबा) पैदा हो गया है, जो वहीं घूमता रहता है. बेशक कचरे (Space Debris) को साफ करने की कवायद की जाती हैं, लेकिन इसके लिए प्रयास नहीं किए जाते. बल्कि एक दूसरे पर कचरा फैलाने का दोष मढ़ते हुए सभी देश कचरा फैलाने का कम खुद ब खुद करते हैं.
तो चलिए सबसे पहले जान लेते हैं कि भला अंतरिक्ष का कचरा होता क्या है? हम हर उस इंसानी वस्तु को कचरा कह सकते हैं, जो अंतरिक्ष में तो मौजूद है लेकिन किसी काम की नहीं रही (Space Debris Accidents). पृथ्वी की कक्षा में मानव निर्मित सैटेलाइट भेजी जाती हैं, जो कई बार वहीं पर नष्ट हो जाती हैं और छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में घूमती रहती हैं. इसे ही अंतरिक्ष का कचरा कहते हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ऐसा अनुमान है कि ये कचरा तेजी से घूम रहा है, जिससे टकराकर उन सैटेलाइट के नष्ट होने का खतरा बना रहता है, जिन्हें धरती से भेजा जाता है.
अंतरिक्ष के कचरे में क्या-क्या शामिल होता है?
इस कचरे में मृत अंतरिक्षयान, रॉकेट, सैटेलाइट प्रक्षेपण यानों के अवशेष, अंतरिक्ष यात्रियों के दस्ताने, नटबोल्ट, उन्हें कसने वाले उपकरण और सैटेलाइट से अलग हुईं शीट शामिल हैं (Space Debris Meaning in Hindi). ये मिशन से जुड़ा वो कचरा है, जो मूल काम के बाद पीछे छूट जाता है. नासा का अनुमान है कि रोजाना करीब एक मलबा या तो पृथ्वी पर गिरता है या फिर वातावरण में आते ही जल जाता है. चूंकी धरती का करीब 70 फीसदी हिस्सा पानी का है, इसलिए ज्यादातर कचरा भी इन्हीं क्षेत्रों में आकर गिरता है. जैसे धरती पर कचरे का पहाड़ बन जाता है, ठीक वैसी ही स्थिति इस समय अंतरिक्ष में भी बनी हुई है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि कचरा गिरने से किसी तरह के नुकसान की बात सामने नहीं आई है. क्योंकि ये कचरा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते ही जलकर नष्ट हो जाता है. लेकिन अगर कोई बड़ा टुकड़ा पूरी तरह नष्ट ना हो और हमारे वायुमंडल में प्रवेश कर ले, तो उससे विनाशक प्रभाव पैदा हो सकते हैं. इसी साल मई महीने में चीन के रॉकेट का मलबा हिंद महासागर में गिरा था. चीन (China) के सबसे बड़े रॉकेट लॉन्ग मार्च 5b का मलबा भी वातावरण में प्रवेश करते ही जलने लगा था. फिर इसके अवशेष पानी में जाकर गिर गए.
जब 75 टन का स्पेस सेंटर स्काइलैब गिरा
इससे कुछ साल पहले चीनी स्पेस स्टेशन थियांगोग भी समुद्र में गिरकर नष्ट हो गया था. पहले तो ये धरती के वायुमंडल में आकर आग का गोला बना और फिर प्रशांत महासागर में गिर गया (Space Debris Entering Earth's Atmosphere). साल 1979 में नासा का स्पेस सेंटर स्काइलैब समुद्र में गिरकर नष्ट हो गया था. ये 75 टन का था. ये कचरा पृथ्वी की कक्षा में घूमता रहता है, ना तो ये नीचे आता है और ना ही ऊपर. ये कचरा सैटेलाइट के अलावा वहां मौजूद अन्य अंतरिक्षयान और अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भी खतरे से कम नहीं है.
बीते छह दशक से भी अधिक समय से जिस तरह अंतरिक्ष में दुनियाभर के देशों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, उससे कचरे के बढ़ने की ही आशंका है कम होने की नहीं. कचरे को लेकर साल 2013 में एक अध्ययन हुआ था. जिसमें पता चला कि अंतरिक्ष में मौजूद एक से दस सेंटीमीटर के कचरे की संख्या 6,70,000 से भी ज्यादा है. अगर अंतरिक्ष में कोई कचरा होगा, तो वो खतरा पैदा करेगा ही (Space Debris and Climate Change). कचरे से नुकसान की घटनाएं इतिहास में भरी पड़ी हैं. एक बार तो दो सैटेलाइट ही आपस में टकरा गई थीं.
कैसे साफ हो सकता है ये ढेर सारा कचरा?
अमेरिका बेशक अंतरिक्ष कचरे को लेकर दुनिया को ज्ञान देता फिरता है लेकिन अगर आंकलन करें तो उसने भी काफी कचरा फैलाया है. अंतरिक्ष में कचरा फैलाने वाले देशों में सबसे आगे रूस (सीआईएस) है, उसके बाद अमेरिका, चीन, फ्रांस और जापान का नाम आता है (Space Debris Conclusion). इसे साफ करने की बात करें, तो इसके लिए एक उपाय सैटेलाइट को डिऑर्बिट करने से जुड़ा है. मतलब अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट भेजे जाते हैं, उनमें इतना ईंधन होता है कि उन्हें डिऑर्बिट करके यानी नीचे लाकर ग्रेवयार्ड (कब्रिस्तान) ऑर्बिट में रखा जा सके. इससे नुकसान को कम किया जा सकता है.
अंतरिक्ष के इस कचरे को सभी देश अपने-अपने हिसाब से ट्रैक करते हैं. भारत के श्रीहरिकोटा के पास मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार हैं. जिससे अंतरिक्ष के कचरे की ट्रैकिंग होती है (Space Debris Around Earth). वहीं अमेरिका के पास भी ऐसे कई रडार मौजूद हैं. इस कचरे को इकट्ठा करने के लिए भी कई प्रयोग हुए हैं. जिसके तहत इसे धरती पर लाकर जलाने जैसे प्रयोग किए गए हैं. लेकिन ये कितने कारगर हैं, इनपर कितना खर्च आएगा और इसपर अभी तक कितना काम हुआ है, इससे जुड़ी ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है.