कैंसर के इलाज में वैज्ञानिकों को दिखी एक नई राह...आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव

जीर्णता या हाइबरनेशन में जाने से रोक कर कैंसर सेल को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है।

Update: 2021-03-14 04:19 GMT

इलाज के बाद भी कैंसर के फिर से पलटने के कई मामले सामने आते रहे हैं। लोग इस बात से परेशान होते रहे हैं कि रोग ठीक होने के बाद आखिर ऐसा क्या हो गया ? लेकिन अब इसका एक कारण सामने आया है और इसकी वजह से निदान के लिए नई दवा खोजने का रास्ता भी दिख रहा है। दरअसल, एक अध्ययन से सामने आया है कि कैंसर ग्रस्त सेल (कोशिका) एक्टिव हाइबरनेशन की स्थिति में जाकर कीमोथेरेपी (इलाज की एक विधि) से उत्पन्न वातावरण में खुद का बचाव करने में सक्षम हो जाते हैं। मतलब निष्किय होने का स्वांग कर लेते हैं और कीमोथेरेपी का प्रभाव कम होने पर फिर से बढ़ने लगते हैं।

रिपोर्ट अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के जर्नल में प्रकाशित
इस अध्ययन के बाद विज्ञानियों के लिए एक संभावना बनी है कि ऐसी दवा खोजी जाए, जिससे कि कैंसर ग्रस्त सेल कीमोथेरेपी से बचाव के लिए सुसुप्तावस्था में नहीं जा सके। यदि ऐसा संभव हुआ तो कैंसर के इलाज में एक क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। वेल कॉर्नेल मेडिसिन के विज्ञानियों द्वारा किए गए इस अध्ययन की रिपोर्ट अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के जर्नल कैंसर डिस्कवरी में प्रकाशित हुई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस जैविक प्रक्रिया से यह पता किया जा सकता है कि इलाज के बाद भी कैंसर क्यों पनप जाता है। यह अध्ययन आर्गेनॉइड्स और माउस मॉडल (एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया- एएमएल, एक प्रकार का कैंसर) के गंभीर रोगी के ट्यूमर पर किया गया। अध्ययन के वरिष्ठ लेखक तथा हीमैटोलॉजी और आन्कोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. एरी एम. मेलनिक कहते हैं कि एएमएल का इलाज कीमोथेरेपी से किया जाता है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि यह फिर से हो जाता है और दोबारा होने पर लाइलाज होता है।
वैज्ञानिकों ने इस संबंध में बताए दो सिद्धांत
ऐसे में यह प्रश्न लगातार बना हुआ है कि सभी कैंसर सेल को समूल खत्म क्यों नहीं किया जा सकता है। इसके मद्देनजर विज्ञानियों ने वर्षो इस बात पर शोध किया है कि कीमोथेरेपी से जब कैंसर ट्यूमर पूरी तरह खत्म हो जाता है तो फिर से कैसे यह पनप जाता है। इस संबंध में दो सिद्धांत बताए जाते हैं।
पहला यह कि कैंसर ट्यूमर के सारे सेल का आनुवंशिक स्तर समान नहीं होता है। मतलब उनमें भिन्नता होती, इसलिए कुछ कोशिकाओं का एक छोटा सा समूह इलाज का प्रतिरोध कर बच जाता है, जो इलाज खत्म होने के बाद फिर से बढ़ने लगता है।
दूसरा सिद्धांत यह कहता है कि ट्यूमर में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण वाले सेल होते हैं, जो कीमोथेरेपी की वजह से खुद में बदलाव करने में सक्षम होते हैं। विज्ञानी मानते हैं कि कैंसर ग्रस्त सेल में बदलाव का यह सिद्धांत पहले वाले सिद्धांत की जगह नहीं लेता है बल्कि उसकी प्रक्रिया पर नए सिरे से रोशनी डालने वाला है।अध्ययन में पाया गया कि कीमोथेरेपी के दौरान एएमएल कोशिकाओं का कुछ हिस्सा हाइबरनेशन (सुसुप्तावस्था) में चला जाता है, जबकि कुछ अन्य सेल में जलन की वजह से घाव भी जाता है और उन्हें ठीक करने का भी इलाज भी करना होता है।
एटीआर पर टिकी वैज्ञानिकों की निगाहें
ऐसी स्थिति में कुछ समय के लिए पौष्टिकता के अभाव में उसका विकास ठहर जाता है। इसे यह भी पता चला है कि कोशिकाओं की यह जीर्णता एटीआर नामक प्रोटीन से उत्प्रेरित होता है। इसका मतलब है कि एटीआर को रोक कर कैंसर सेल को फिर से पनपने से रोका जा सकता है।शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में इस संकल्पना की पुष्टि भी की है कि कीमोथेरेपी से पहले ल्यूकेमिया सेल को एटीआर निरोधक देकर उन्हें जीर्णता या हाइबरनेशन में जाने से रोक कर कैंसर सेल को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है।


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