यूक्रेन पर रूस के हमले से फिर ताजा हुईं 1962 की यादें, जब क्यूबा में सोवियत संघ ने तैनात कर दी थीं मिसाइलें, बौखला गया था अमेरिका

यूक्रेन में रूसी सैनिकों का यह हमला अंतरराष्ट्रीय संकट के तमाम चिंतकों और कूटनीतिज्ञों को अक्तूबर 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिला दिला रहा है, जब अमेरिकी सीमा से लगे देश क्यूबा में सोवियत संघ की मदद से परमाणु प्रक्षेपास्त्र तैनात कर दिए गए थे और इनका प्रयोग केवल अमेरिका के विरुद्ध होना था।

Update: 2022-03-03 01:10 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूक्रेन में रूसी सैनिकों का यह हमला अंतरराष्ट्रीय संकट के तमाम चिंतकों और कूटनीतिज्ञों को अक्तूबर 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिला दिला रहा है, जब अमेरिकी सीमा से लगे देश क्यूबा में सोवियत संघ की मदद से परमाणु प्रक्षेपास्त्र तैनात कर दिए गए थे और इनका प्रयोग केवल अमेरिका के विरुद्ध होना था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने अपनी सीमा के नजदीक इस चुनौती को अस्मिता का प्रश्न बनाते हुए सोवियत संघ को यह धमकी दी थी कि यदि 48 घंटे में ये मिसाइलें क्यूबा से नहीं हटाई गईं तो सोवियत संघ मास्को पर परमाणु हमले के लिए तैयार रहे।

क्या हुआ था 1962 में
आज जिस तरह यूक्रेन के मसले पर विश्व की दो महाशक्तियां अमेरिका और रूस आमने-सामने हैं, उसी तरह 1962 में भी दोनों परमाणु संपन्न देश आमने-सामने आ गए थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध का दौर था। द्वितीय विश्व युद्ध में जहां अमेरिका ने परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया, वहीं 1949 में परमाणु परीक्षण करके सोवियत संघ एक परमाणु संपन्न महाशक्ति बन गया था। फिर दुनिया में प्रभुत्व को लेकर दोनों देशों के बीच ऐसी होड़ शुरू हो गई थी कि अमेरिका और सोवियत संघ आर्थिक, कूटनीतिक, सैन्य और सामरिक ताकत के तौर पर अपने परचम लहराने के लिए एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए थे। दुनिया के ज्यादातर देश दो महाशक्तियों के बीच बंट चुके थे।
दो महाशक्तियों के टकराव के बीच एक ऐसी घटना भी हुई जब लगा कि अब परमाणु युद्ध होगा जिसकी चपेट में पूरी दुनिया आएगी और लाखों लोग मारे जाएंगे। दरअसल, जुलाई 1962 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव और क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्रो के बीच एक सीक्रेट डील हुई, जिसके तहत क्यूबा सोवियत संघ की न्यूक्लियर मिसाइल को अपने यहां रखेगा। मिसाइलों को रखने के लिए कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो गया, लेकिन अमेरिकी इंटेलीजेंस को इसकी भनक लग गई।
इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने क्यूबा को चेतावनी दी। 14 अक्तूबर 1962 को अमेरिकी टोही विमान यू-2 ने क्यूबा से कुछ तस्वीरें लीं जिससे साफ हो रहा था कि रूसी मिसाइलों को रखने के लिए निर्माण कार्य चल रहा था। ये मिसाइलें यूएस के कई हिस्सों तक पहुंचने में सक्षम थीं। पेंटागन ने जब इन तस्वीरों को व्हाइट हाउस भेजा तो हड़कंप मच गया। राष्ट्रपति कैनेडी ने अपने सुरक्षा सलाहकारों की तत्काल बैठक बुलाई और उनसे इस हालात से निपटने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए कहा।
सलाहकारों ने राष्ट्रपति को निर्माण वाली जगह पर हवाई हमला करने और फिर क्यूबा पर सैन्य कार्रवाई करने की सलाह दी। लेकिन कैनेडी ने 22 अक्तूबर को सिर्फ क्यूबा को अमेरिकी नौसेना द्वारा चारों तरफ से घेरने का आदेश दिया। उसी दिन कैनेडी ने ख्रुश्चेव को एक चिट्ठी लिखी। कैनेडी ने लिखा कि क्यूबा में मिसाइल के लिए बने रहे निर्माणाधीन स्थलों को रोका जाए और मिसाइलें तुरंत वापस सोवियत संघ भेजी जाएं। 24 अक्तूबर को ख्रुश्चेव ने कैनेडी को चिट्ठी लिखी और कहा कि अमेरिका अपनी नौसेना को क्यूबा से तुरंत हटाए नहीं तो सोवियत भी अपनी नौसेना भेज रहा है।
इस बीच अमेरिकी टोही विमानों ने फिर से नई तस्वीरें लीं। तस्वीरों से पता चला कि निर्माण कार्य पूरा हो चुका था और परमाणु हथियार युक्त मिसाइलें ऑपरेशनल मोड में तैयार थीं। यानी अमेरिका पर कभी भी सोवियत संघ का परमाणु हमला हो सकता था। समस्या का कोई समाधान ना निकलता देखकर अमेरिकी सेना और परमाणु हथियारों को किसी भी वक्त हमला करने के लिए अलर्ट पर तैयार रहने का आदेश दे दिया गया।
एक सफल कूटनीति ने दुनिया को विनाश से बचा लिया था
26 अक्तूबर को ख्रुश्चेव ने फिर कैनेडी को एक संदेश भेजा जिसमें कहा कि वो मसले को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए तैयार हैं। अगले दिन 27 अक्तूबर को ख्रुश्चेव ने एक और संदेश भेजा जिसमें लिखा था कि वो अपनी मिसाइलें तभी हटाएंगे जब अमेरिका टर्की से अपनी जुपिटर मिसाइलें हटाएगा। उसी दिन क्यूबा में अमेरिका के टोही विमान U-2 को मार गिराया गया। हालात फिर से खराब दिख रहे थे और कैनेडी को लग रहा था कि क्यूबा पर हमले के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
लेकिन कूटनीति को मौका देते हुए अमेरिका के अटॉर्नी जनरल यूएम ने सोवियत संघ के राजदूत से एक सीक्रेट मीटिंग की। उसी मीटिंग में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अमेरिका जुपिटर मिसाइलें टर्की से हटाने को तैयार है। अगले दिन सुबह ख्रुश्चेव ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर दी कि वो अपनी मिसाइलें क्यूबा से हटा रहे हैं। बाद में अमेरिका ने भी अपनी मिसाइलें टर्की से हटा लीं और इस तरह से दुनिया को एक सफल कूटनीति के जरिए परमाणु युद्ध और विनाश से बचा लिया गया।
आज क्या हैं हालात
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के सात दिन हो चुके हैं। खेरसान शहर पर रूसी सेना का कब्जा हो गया है और खारकीव में भी उसके सैनिक पहुंच गए हैं। रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पर लगातार बमबारी कर रही है। वहीं यूक्रेन दावा कर रहा है कि उसने अभी तक रूस के छह हजार सैनिकों को मार गिराया है। इसी बीच रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधिमंडल के बीच दूसरे दौर की वार्ता होनी है, पहले दौर की वार्ता का परिणाम बेनतीजा रहा। वहीं अमेरिका ने अबतक रूस पर प्रतिबंध लगाने के सिवा यूक्रेन को किसी तरह की सैन्य सहायता नहीं भेजी है।
बाइडन ने दी चेतावनी, 'तानाशाह' को कीमत चुकानी पड़ेगी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को अमेरिकी संसद में स्टेट ऑफ द यूनियन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि, पुतिन ने बड़ी गलती कर दी है। उन्होंने बिना किसी उकसावे के यूक्रेन पर हमला किया है। पुतिन काे लगता था कि यूक्रेन कमजोर है, उसे आसानी से रौंदा जा सकता है, उनका यह अनुमान गलत था।
यूक्रेन को 100 करोड़ डॉलर की मदद का एलान
इस दौरान बाइडन ने एक बार फिर से साफ किया कि, अमेरिका रूस के साथ सीधे युद्ध के लिए अपने सैनिक नहीं भेजेगा। हालांकि, यूक्रेन की मदद करता रहेगा। बाइडन ने इस दौरान यूक्रेन को 100 करोड़ डॉलर की मदद का एलान किया। इसके साथ ही उन्होंने रूस के लिए अमेरिका के एयरस्पेस को भी पूरी तरह से बंद कर दिया।
नाटो की एक इंच जमीन की भी रक्षा करेंगे
बाइडन ने कहा कि, अगर पुतिन नाटो की जमीन पर ऐसा करते हैं तो हम एक इंच जमीन की भी रक्षा करेंगे। पुतिन आज एकदम अलग-थलग हो गए हैं। अमेरिका समेत दुनिया के 30 देश उनके खिलाफ खड़े हैं। पुतिन युद्ध क्षेत्र में भले आगे हों, लेकिन उन्हें इसकी आगे कीमत चुकानी पड़ेगी। यूक्रेन पूरे साहस के साथ लड़ रहा है।
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