सैन्य संकट को लेकर AUKUS समझौते में रूस ने जारी किया बयान
‘एशियाई नाटो का शुरुआती संस्करण’ बताया
Aukus Deal Russia: ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर ऑकस समझौते की घोषणा की है. जिसपर चीन ने नाराजगी जताई है, जबकि रूस सहित कुछ अन्य देशों ने बयान जारी किए हैं.
Russia After AUKUS Deal: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हुए नए 'ऑकस' समझौते पर विश्वभर के देशों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी हैं. चीन और फ्रांस ने जहां तत्काल इसका विरोध किया, वहीं जापान और फिलीपींस इस करार का स्वागत करते नजर आए. परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियों (Nuclear Submarines) से लैस कुछ देशों में से एक रूस ने अपनी प्रतिक्रिया में सावधानी बरती और जल्दबाजी नहीं दिखाई. क्रेमलिन की ओर से सावधानी से तैयार किया गए बायन में कहा गया है, 'कोई रुख अपनाने से पहले हमें इसका लक्ष्य, उद्देश्य और तरीका समझना होगा. इन सवालों का जवाब मिलना जरूरी है. अब तक बहुत कम जानकारी प्राप्त हुई है.'
कुछ रूसी राजनयिक अधिकारियों ने अपने चीनी समकक्षों के साथ सुर में सुर मिलाते हुए चिंता व्यक्त की (Nuclear Submarine Technology) और कहा कि (अमेरिका और ब्रिटेन की सहायता से) ऑस्ट्रेलिया द्वारा परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियां विकसित करना 'परमाणु अप्रसार संधि' (एनपीटी) का उल्लंघन होगा और इससे क्षेत्र में 'हथियारों की दौड़ तेज हो जाएगी.' रूसी राजनयिक अधिकारियों ने सुझाव दिया कि पनडुब्बी के बेड़े का निर्माण अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की निगरानी में होना चाहिए.
'एशियाई नाटो का शुरुआती संस्करण' बताया
नए सुरक्षा करार के बारे में जैसे ही और स्पष्टता सामने आई, क्रेमलिन के बयान बदलने लगे. उदाहरण के तौर पर, अमेरिका के ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत, जो हॉकी ने खुलकर कहा कि 'ऑकस' का उद्देश्य हिंद प्रशांत क्षेत्र में केवल चीन को चुनौती देना ही नहीं है, बल्कि रूस की शक्ति को सीमित करना भी है (Nuclear Submarines Australia). इसके तुरंत बाद, रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पत्रुशेव ने इस समझौते को 'एशियाई नाटो का शुरुआती संस्करण' करार दिया.
उन्होंने कहा, 'मुख्य रूप से चीन रोधी और रूस रोधी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए वाशिंगटन अन्य देशों को इस संगठन में शामिल करने की कोशिश करेगा.' कैनबेरा के लिए रूस के बयानों में इस तरह का बदलाव आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए. रूस ने क्षेत्र में नए समझौतों से लेकर नई हथियार प्रणालियों के विकास तक, क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को एक सैन्य खतरे के रूप में देखा है, जिसका जवाब दिया जाना चाहिए.
किन विकल्पों को चुन सकता है रूस
अपनी प्रतिक्रिया के तौर पर रूस किन संभावित विकल्पों का चयन कर सकता है? चूंकि मास्को 'ऑकस' को एक राजनीतिक और सैन्य संकट के रूप में देख रहा है लेकिन अभी तक इसे कोई खतरा नहीं मान रहा, इसलिए उसकी तात्कालिक प्रतिक्रिया राजनीतिक दांवपेंच और कोई मौका ना चूकने तक सीमित रहेगी (Nuclear Submarine Russia). रूस 'ऑकस' पनडुब्बी समझौते को एक ऐसी घटना के तौर पर देख सकता है, जिससे उसे इस क्षेत्र के उन देशों को अपनी परमाणु पनडुब्बियां बेचने में मदद मिलेगी, जिन्हें इसकी आवश्यकता है.
यह कोई खोखला विचार नहीं बल्कि रूस के रक्षा मंत्रालय से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा सुझाया गया है. रूस की परमाणु पनडुब्बियां सबसे अच्छी मानी जाती हैं और ऐतिहासिक तौर पर वह अपनी इस तकनीक को किसी से साझा करने में विफल रहा है. अब तक रूस ने 1987 से केवल भारत को 'लीज' पर परमाणु पनडुब्बियां दी हैं, जो सोवियत निर्मित होती थीं और भारतीय नौसेना उसका उपयोग करती थी लेकिन रूस ने भारत को तकनीक का हस्तांतरण नहीं किया. अगर रूस अन्य देशों को परमाणु पनडुब्बियां देने का निर्णय लेता है, तो उसे खरीदारों की कमी नहीं होगी.