रूस भी चुका रहा है यूक्रेन पर हमले की कीमत, जानें कैसे
यूक्रेन पर रूस के हमले को तीन हफ्ते होने वाले हैं
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। यूक्रेन पर रूस के हमले को तीन हफ्ते होने वाले हैं। हमले से यूक्रेन में भारी तबाही मची है। हालांकि नुकसान एकतरफा नहीं है। रूस को भी कई मोर्चे पर इस हमले की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती है अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर। यही नहीं इस लड़ाई में बड़ी संख्या में रूस के सैनिक भी मारे गए हैं। रूस कैसे इस युद्ध का खामियाजा भुगत रहा है आइये इस पर डालते हैं एक नजर...
रूसी अर्थव्यवस्था में हो सकती है बड़ी गिरावट
15 प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है रूस की अर्थव्यवस्था में अगले साल
29 हजार करोड़ रुपये खर्च करता है रूस चेचन्या में व्यवस्था बनाए रखने के लिए
40 गुना है यूक्रेन की जनसंख्या चेचन्या की तुलना में
दिवालिया हो रही अर्थव्यवस्था
आंकड़े दिखा रहे हैं कि रूस की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर है। ब्याज दरें दोगुनी हो गई हैं, स्टाक मार्केट बंद हैं और वहां की मुद्रा निचले स्तर पर है। जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है, उसे संभालना किसी भी तरह से उसके लिए आसान नहीं है। वहां के नागरिकों के लिए कोई भी विदेशी मुद्रा बदलना संभव नहीं रह गया है। हमले से पहले रूस की अर्थव्यवस्था दो प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन अब अनुमान है कि अगले साल उसकी अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत की गिरावट आएगी। यह गिरावट 15 प्रतिशत तक जा सकती है।
ढाई दशक का सबसे मुश्किल समय
1998 में रूस के स्टाक मार्केट ध्वस्त हो गए थे। उस समय उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ था। लेकिन युद्ध के कारण होने जा रही गिरावट इससे भी ज्यादा है। यह झटका इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि पिछले एक दशक से रूस की अर्थव्यवस्था में खास वृद्धि दर्ज नहीं की जा रही थी। तेल एवं गैस निर्यात के अलावा उसके पोर्टफोलियो में कुछ खास नहीं है। ऐसे में जिस तरह से यूरोपीय संघ ईधन के मामले में रूस पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, वह रूस के लिए चिंता की बात है। रेटिंग एजेंसियों का कहना है कि अगर प्रतिबंध बने रहे तो रूस के लिए अपने क्रेडिटर्स को भुगतान कर पाना मुश्किल हो जाएगा
यूक्रेन पर जीत से भी बढ़ेंगी मुश्किलें
अगर रूस को यूक्रेन पर जीत मिल जाती है, तब भी उसकी मुश्किलें कम नहीं होनी हैं। असल में यूक्रेन पर कब्जा करके वहां अपने इशारों पर चलने वाली सरकार बनाने के बाद वहां पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी भी रूस की रहेगी। साथ ही जिस तरह से यूक्रेन में बड़ी आबादी यूरोप के पक्ष में है, उसे देखते हुए शांति बनाए रखना भी बड़ी चुनौती रहेगी।
रूस पर भारी पड़ेगा यूक्रेन को निगलना
1999-2000 में चेचन्या पर नियंत्रण के बाद से रूस को सालाना वहां 3.8 अरब डालर (करीब 29 हजार करोड़ रुपये) का खर्च करना पड़ता है। इसमें किसी भी तरह की कटौती से रूस के लिए वहां नियंत्रण रख पाना मुश्किल हो जाएगा। 2014 में क्रीमिया पर नियंत्रण के बाद से भी ऐसी ही स्थिति है। यूक्रेन की आबादी चेचन्या से 40 गुना और क्रीमिया से 20 गुना है। आकार के हिसाब से भी यूक्रेन बहुत बड़ा है। निश्चित रूप से यहां व्यवस्था बनाए रखने के लिए रूस को बहुत खर्च करना होगा।
नुकसान और भी हैं
युद्ध में सीधे नुकसान की बात करें तो बस सैन्य साजोसामान और हथियार की ही कीमत नहीं होती है। सरकारें और अर्थशास्त्री युद्ध का शिकार होने वाले लोगों के आधार पर भी गणना करते हैं। अनुमान जताया जा रहा है कि यूक्रेन से इस युद्ध में 12 हजार रूसी सैनिकों की मौत हो गई है। एक आकलन के मुताबिक, रूस के 10 हजार सैनिकों की मौत का आर्थिक असर करीब चार अरब डालर (करीब 30.5 हजार करोड़ रुपये) है।
जनहानि का खामियाजा भी भुगत रहा रूस
इनके अलावा रूस में मृतकों के परिवार पर पड़ने वाले मानसिक आघात और युद्ध में शामिल अन्य सैनिकों पर पड़े असर को भी जोड़ा जाना चाहिए। भले ही इस तरह के नुकसान को सीधे अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं माना जाता है, लेकिन किसी देश पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी तरह लोगों की असमय मौत से एक श्रमशील व्यक्ति कम हो जाता है और उसकी भरपाई आसान नहीं होती।