रूस ने बनाया रिपेलियन एंटी ड्रोन सिस्टम, अब पैराशूट से भी उतरेगा Tank

ये टैंक नदियों को पार कर सकता है और तैरते हुए भी फायर कर सकता है.

Update: 2021-08-26 09:40 GMT

लड़ाई के मैदान में ड्रोन (Drone) का इस्तेमाल अब खुलकर हो रहा है और ये बात साफ हो गई कि अब युद्ध में इंसान के लिए असंभव सारे काम अब ड्रोन के जरिए किए जाएंगे. बिना इंसान के चलने वाली सबमरीन सबसे नई खोज है. कोई सबमरीन ज्यादा से ज्यादा 400 से 500 मीटर तक समुद्र के नीचे जा सकती है. उससे नीचे जाने पर सबमरीन टूट जाएगी और उसमें मौजूद सारे लोग मारे जाएंगे. इसलिए अब ड्रोन सबमरीन (Drone Submarine) मोर्चे पर उतारी जाएगी.

चीन ने बनाई खतरनाक ड्रोन सबमरीन
ऐसी ड्रोन सबमरीन को समुद्र में असीमित गहराई तक ले जाया जा सकेगा और उसे जब तक चाहे समुद्र के अंदर छिपाकर रखा जा सकेगा. जब जरूरत होगी तो ये सबमरीन अचानक समुद्र की गहराई से बाहर आएगी और हमला करेगी.
रूस की खतरनाक सबमरीन
चीन (China) ने जुलाई के पहले हफ्ते में अपनी पहली ड्रोन सबमरीन को समुद्र में उतारने का दावा किया था. चीन 2010 से ही ऐसी बिना इंसान के चलने वाली ड्रोन सबमरीन पर काम कर रहा है. दिसंबर 2020 में इंडोनेशिया के समुद्र में ऐसी ही एक छोटी ड्रोन सबमरीन मिली थी जो उस रास्ते पर तैनात थी जहां से हिंद महासागर का रास्ता जाता है. हालांकि तब चीन ने इससे कोई भी संबंध होने से इंकार किया था. रूस (Russia) के वैज्ञानिकों ने ऐसी ड्रोन सबमरीन बनाने में कामयाबी हासिल की है, जो समुद्र में 11,000 मीटर की गहराई तक जा सकती है.
भारतीय सीमा पर टैंकों की तैनाती
जान लें कि चीन के साथ भारत के तनाव के दौरान लद्दाख में बड़ी तादाद में आर्मर्ड यानी टैंकों की तैनाती की गई. लद्दाख के खुले और चौड़े मैदान टैंकों की लड़ाई के लिए आदर्श जगह हैं. भारतीय सेना इस जगह पर टैंकों की अहमियत को समझती है इसलिए उसने 2015 से ही यहां टी 72 टैंकों की तैनाती शुरू कर दी थी. मई 2020 के बाद लद्दाख में भारतीय सेना के सबसे आधुनिक टैंक टी 90 की भी तैनाती की गई.
सितंबर 2020 में भारतीय सेना ने रेजांग ला, रेचिन ला और मुखपरी पहाड़ियों पर 15,000 से 17,000 फीट की ऊंचाई पर अपने टैंकों की तैनाती कर दी, जिसने चीन को बातचीत की टेबल पर आने पर मजबूर कर दिया. फरवरी 2021 में चीन के साथ समझौते के बाद ही इन टैंकों को पीछे हटाया गया.
लेकिन पहाड़ी इलाकों में लड़ने के लिए 45 से 50 टन वजनी टी 72 या टी 90 टैंक कई तरह की कठिनाइयों का सामना करते हैं. इन्हें संकरे पहाड़ी रास्तों से होकर ले जाना मुश्किल होता है. पहाड़ी इलाकों में नदियों और नालों पर बने पुल अक्सर इतना भारी वजन उठाने के लिए नहीं बने होते हैं. भारतीय सेना खासतौर पर लद्दाख जैसे इलाको में लड़ाई के लिए हल्के टैंकों की तलाश कर रही है और उसने 25 टन से कम वजनी 350 टैंकों के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किया है.
पैराशूट से उतरेगा टैंक
भारत खासतौर पर रूस के स्प्रुट टैंक में दिलचस्पी दिखा रहा है जो अपने परीक्षण के आखिरी दौर में है. 2020 में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के रूस दौरे में ये सहमति भी बनी थी कि टैंक के ट्रायल्स के दौरान भारतीय प्रतिनिधि भी उपस्थित रहेंगे. इस टैंक की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसे इसके क्रू समेत पैराशूट से उतारा जा सकता है. ये टैंक नदियों को पार कर सकता है और तैरते हुए भी फायर कर सकता है.


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