शोध : कोरोना को कोशिकाओं में फैलने नहीं देगी खास एंटीबाडी, संक्रमण से होने वाली मौतों में कमी लाने में मिलेगी मदद
सार्स-कोव-2 वायरस के कारण फैली कोविड महामारी को दो साल से ज्यादा समय बीत गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सार्स-कोव-2 वायरस के कारण फैली कोविड महामारी को दो साल से ज्यादा समय बीत गया है। इस दौरान विज्ञानी लगातार इससे पार पाने के लिए शोध में तत्पर हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वायरस के खिलाफ बने टीके बीमारी को गंभीर नहीं होने देते हैं। टीकाकरण के बाद अस्पताल में भर्ती होने और जान जाने के मामले कम हुए हैं। लेकिन टीकाकरण के बाद भी वायरस का प्रसार नहीं रुका है। अब विज्ञानियों ने ऐसी एंटीबाडी तैयार की है, जो वायरस के प्रसार को रोकने में सक्षम है।
खास एंजाइम को बनाती है निशाना
अमेरिका की यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस शोध को विज्ञान पत्रिका माइक्रोबायोलाजी स्पेक्ट्रम में प्रकाशित किया गया है। यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जोगिंदर तुशीर सिंह ने कहा, 'हमने ऐसी एंटीबाडी तैयार की है, जो वायरस के प्रसार की चेन को रोक सकती है।' एंटीबाडी एफयूजी1 शरीर में फ्यूरिन एंजाइम को निशाना बनाती है। वायरस मनुष्य की कोशिकाओं के बीच अपनी चेन बनाने के लिए इस एंजाइम का प्रयोग करता है।
इसलिए अहम है यह एंजाइम
फ्यूरिन एंजाइम पूरे शरीर में पाया जाता है और कोशिकाओं की कई गतिविधियों में अहम है। यह प्रोटीन को तोड़ने में सक्षम है। मनुष्य की कोशिका में प्रवेश करते समय कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन सक्रिय स्थिति में होता है और उसमें कुछ ऐसे खांचे बने होते हैं, जो उसे कोशिका को संक्रमित करने में मदद करते हैं। कोशिका के अंदर पहुंचकर खुद को बढ़ाते समय यह स्पाइक प्रोटीन निष्कि्रय स्थिति में होता है। ऐसे में वायरस फ्यूरिन की मदद से ही अपने स्पाइक प्रोटीन को दो हिस्सों में काटकर उसके सक्रिय करता है और अन्य कोशिकाओं में फैलता है। यही प्रक्रिया वायरस को संक्रामक बनाती है।
बहुत आसान नहीं रास्ता रोकना
विज्ञानियों ने कहा कि फ्यूरिन शरीर में कई अहम गतिविधियों के लिए जरूरी है। इसे सीधे निशाना नहीं बनाया जा सकता है। ताजा शोध में ऐसी एंटीबाडी बनाई गई है, जो वायरस को अपने स्पाइक प्रोटीन के लिए फ्यूरिन का इस्तेमाल करने से रोकती है। अभी प्रयोगशाला में फेफड़े की टिश्यू कोशिकाओं पर सार्स-कोव-2 वायरस के साथ प्रयोग को अंजाम दिया गया है। अगले चरण में चूहों पर प्रयोग किया जाएगा। प्रयोग सफल रहा तो वायरस के संक्रमण को रोकना संभव हो सकता है। यह भी अनुमान है कि इस पर वायरस के विभिन्न वैरिएंट से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।