पहले विश्व युद्ध में भारतीयों के साथ हुआ नस्लवाद तो ब्रिटेन सरकार ने मांगी माफी
ब्रिटिश राज के दौरान पहले विश्व युद्ध (World War) में शहीद होने वाले करीब 50 हजार भारतीयों के साथ नस्लवादी व्यवहार किया गया है
ब्रिटिश राज के दौरान पहले विश्व युद्ध (World War) में शहीद होने वाले करीब 50 हजार भारतीयों के साथ नस्लवादी व्यवहार किया गया है. इनका सम्मान अन्य शहीदों की तरह नहीं किया गया. इस बात की जानकारी कॉमनवेल्थ की रिपोर्ट में गुरुवार को दी गई है. दो विश्व युद्धों के दौरान अपनी जान गंवाने वाले 1.7 मिलियन सैनिकों और महिलाओं को याद करने वाले कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कमीशन (CWGC) ने साल 2019 के आखिर में एक विशेष कमिटी का गठन किया था. जिसका काम पहले विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद शहीद होने वाले लोगों से जुड़ी जांच करना है.
अब इस कमीशन ने पाया है कि किस देश के शहीदों के साथ भेदभाव किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 45 हजार से 54 हजार मौत हुई थीं. जिनमें मुख्य रूप से भारतीय, पूर्वी अफ्रीकी, पश्चिमी अफ्रीकी, मिस्र और सोमाली के सैनिक शामिल थे, इन्हें अन्य शहीदों की तरह समान रूप से याद नहीं किया गया है (Commonwealth Report on Indian Soliders). इसमें बताया गया है कि करीब 350,000 लोगों को या तो उनके नाम से या फिर बिल्कुल भी याद ही नहीं किया गया. इस सभी बातों का खुलासा होने के बाद ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने संसद में सरकार की ओर से औपचारिक माफी मांगी है.
'पक्षपात की भूमिका अहम रही'
उन्होंने संसद के सदस्यों के सामने कहा है, 'इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कमीशन के कुछ फैसलों में पक्षपात की भूमिका अहम रही है. कॉमन वॉर ग्रेव्स कमीशन और सरकार दोनों की ओर से आज और इस समय मैं माफी मांगना चाहता हूं और गहरा खेद प्रकट करता हूं कि स्थिति को सुधारने में इतना वक्त लग गया है. हम अतीत को नहीं बदल सकते हैं, लेकिन हम संशोधन कर सकते हैं और कोई एक्शन ले सकते हैं.' वहीं सीडब्ल्यूजीसी (CWGC Report) के डायरेक्टर जनरल ने कहा, 'जो कुछ भी हुआ हम उसके लिए माफी चाहते हैं और अतीत में हुए गलत को सही करने पर काम करेंगे.' उन्होंने कहा कि एक सदी पहले हुई घटनाएं तब भी गलत थीं और अब भी गलत हैं.
विश्व युद्ध में लड़े थे भारतीय सैनिक
पहले विश्व युद्ध (1914-18) में भारत ब्रिटिश राज के अधीन था. तब बांग्लादेश और पाकिस्तान भी भारत का ही हिस्सा थे. इन देश के सैनिक बड़ी संख्या में पहले विश्व युद्ध में लड़ने के लिए गए थे. कमिटी के एक सदस्य ने कहा कि जांच में हैरान कर देने वाली बातें सामने आई हैं (Indians in World War). करीब 50 हजार भारतीय सैनिकों को मेसोपोटामिया, फलस्तीन और मिस्र में उनके नाम से याद नहीं किया गया. पहले भी भारतीय सैन्य जनरल ने सीडब्ल्यूजीसी को सलाह दी थी, जिसे उस समय इम्पीरस वॉर ग्रेव्स कमीशन (आईडब्लूजीसी) कहा जाता था. उन्होंने कहा था कि हिंदू और मुस्लिम सैनिकों की कब्रों पर दर्ज नामों को कोई महत्व नहीं दिया गया है. इन्हें मैमोरियल टैब्लेट्स में तो याद किया ही जा सकता है.