भारत में छिड़ी बहस के बीच फ्रांस में खेल के दौरान हिजाब पर प्रतिबंध का प्रस्ताव खारिज
कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर बैन को लेकर छिड़ी बहस के बीच फ्रांस से इस मसले पर बड़ी खबर आई है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर बैन को लेकर छिड़ी बहस के बीच फ्रांस से इस मसले पर बड़ी खबर आई है। फ्रेंच नेशनल एसेंबली में प्रतिस्पर्धी खेलों में हिजाब जैसे प्रतीकों पर बैन का प्रस्ताव खारिज हो गया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। अप्रैल 2022 में फ्रांस के राष्ट्रपति का चुनाव है। फ्रांस की लैंगिक समानता मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने हिजाब पर मुस्लिम महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का समर्थन किया है। इस समर्थन का संदर्भ फ्रांस में फुटबॉल से जुड़ी गवर्निंग बॉडी 'फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन' के एक फैसले से जुड़ा है।
इसके मुताबिक, मैच खेलने के दौरान खिलाड़ी ऐसी कोई चीज नहीं पहन सकते, जिनसे उनकी धार्मिक पहचान जाहिर होती हो। इनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला हिजाब और यहूदी लोगों द्वारा लगाई जाने वाली खास टोपी 'किप्पा' भी शामिल हैं। फ्रांस की मुस्लिम फुटबॉल खिलाड़ी इस प्रतिबंध का विरोध कर रही हैं। इनसे जुड़ा एक संगठन है, ले हिजाबुस। यह फ्रांस की उन महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की संस्था है, जो हिजाब पहनने के चलते मैच नहीं खेल पा रही हैं। नवंबर 2021 में इस संस्था ने फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन के प्रतिबंध को कानूनी चुनौती दी। संगठन की दलील है कि यह प्रतिबंध भेदभाव करता है।
क्या कह रही हैं फ्रांस की मुस्लिम महिला खिलाड़ी
मुस्लिम महिला खिलाड़ियों का कहना है कि यह धर्म मानने के उनके अधिकार में भी दखलंदाजी करता है। 'ले हिजाबुस' 9 फरवरी को अपनी मांगों के समर्थन में फ्रेंच संसद के आगे एक विरोध प्रदर्शन करना चाहता था। मगर प्रशासन ने सुरक्षा संबंधी कारणों से इसकी इजाजत नहीं दी। इस संस्था की शुरुआत करने वालों में शामिल फुन्न जवाहा ने जनवरी 2022 में दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था, "हम बस फुटबॉल खेलना चाहती हैं। हम हिजाब की समर्थक नहीं हैं, हम बस फुटबॉल प्रशंसक हैं।' फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में दो महीने का समय बचा है। चुनावी माहौल के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है।
क्या कहता है फ्रांस का धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा कानून
बता दें कि फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता से जुड़े कानून काफी सख्त हैं। यहां धर्म और सरकार दोनों के बीच विभाजन काफी स्पष्ट है। फ्रेंच सीनेट में दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व है। जनवरी 2022 में पार्टी एक कानून का प्रस्ताव लाई। इसमें सभी प्रतिस्पर्धी खेलों में ऐसे प्रतीकों पर बैन लगाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनसे किसी की धार्मिक पहचान जाहिर होती हो। 9 फरवरी को संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। यहां राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की 'रिपब्लिक ऑन द मूव' पार्टी और उसके सहयोगी बहुमत में हैं। इसी पर टिप्पणी करते हुए 10 फरवरी को मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने एलसीआई टेलिविजन से कहा, "कानून कहता है कि ये महिलाएं हिजाब लगाकर फुटबॉल खेल सकती हैं। मौजूदा समय में फुटबॉल मैदानों पर हिजाब लगाने के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है। मैं चाहती हूं कि कानून का सम्मान किया जाए।'
फ्रांस में घर से बाहर नकाब पहनने पर है बैन
मोरैनो ने आगे कहा, 'सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं जैसे चाहें, वैसे कपड़े पहन सकती हैं। मेरा संघर्ष उन्हें सुरक्षित करना है, जिन्हें पर्दा करने पर मजबूर किया जाता है।' फ्रांस का धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा कानून हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसमें सार्वजनिक जगहों पर लोगों के धार्मिक प्रतीक पहनने पर पाबंदी नहीं है। फ्रांस यूरोप का पहला देश था, जिसने 2011 में घर से बाहर नकाब लगाने, यानी चेहरे को पूरी तरह ढकने पर बैन लगाया था। सरकारी संस्थानों के कर्मचारियों पर भी अपना धर्म प्रदर्शित करने की मनाही है। यह पाबंदी स्कूली बच्चों पर भी लागू है। फ्रांस के कई दक्षिणपंथी नेता हिजाब पर भी रोक लगाना चाहते हैं। उनका मानना है कि हिजाब इस्लामिकता के समर्थन में दी गई राजनैतिक अभिव्यक्ति है।