पीएम इमरान खान ने सऊदी अरब से उधारी लेने के लिए पाकिस्तान के साथ किया ये धोखा
पाकिस्तान की माली हालत इतनी खराब हो गई है कि उसे अपने दोस्तों (चीन, सऊदी अरब और कतर) से शर्तों पर उधारी लेनी पड़ रही है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान (Pakistan) की माली हालत इतनी खराब हो गई है कि उसे अपने दोस्तों (चीन, सऊदी अरब और कतर) से शर्तों पर उधारी लेनी पड़ रही है. भारी-भरकम विदेशी कर्ज (Pakistan Loan) में डूबे पाकिस्तान को सऊदी अरब ने इस बार बेहद कड़ी शर्तों के साथ कर्ज दिया है. शर्तें ऐसी हैं कि शायद ही कोई देश इनपर कर्ज ले. इसलिए कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने शायद कर्ज लेते वक्त शर्तें नहीं पढ़ीं. पाकिस्तान ने 4.2 अरब डॉलर के कर्ज का समझौता कर लिया है.
पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी (Fawad Chaudhry) के अनुसार, सऊदी अरब ने पाकिस्तान को एक साल के लिए 3 अरब डॉलर की नकद जमा राशि देने पर सहमति जताई है, जिसमें कहा गया है कि देश तीन दिन के नोटिस पर इसे किसी भी समय वापस करने के लिए बाध्य होगा.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब पाकिस्तान के फाइनेंशियल सपोर्ट (Pakistan Saudi Arabia Loan) को रिवाइव करने को तैयार हो गया है. जिसके चलते इमरान खान की कैबिनेट ने 3 अरब डॉलर सुरक्षित जमा (कैश रिजर्व) और 1.2 अरब डॉलर मूल्य की तेल आपूर्ति डैफर्ड पेमेंट पर लेने के लिए हामी भरी है. पिछले महीने इमरान खान सऊदी अरब के दौरे पर गए थे, तभी इस समझौते पर बात हुई. यहां मजे की बात ये है कि ये कैश रिजर्व (Cash Reserve) सिर्फ दिखाने के लिए है, खर्च करने के लिए नहीं. इमरान सरकार इसे चाहकर भी खर्च नहीं कर सकते. यह पैसा सिर्फ साख यानी बैंक में दिखावे के लिए होगा.
एक साल में लौटाना होगा कर्ज
अतीत के विपरीत, इस बार पाकिस्तान के पास रोलओवर का कोई विकल्प नहीं है और उसे एक साल बाद कर्ज वापस करना होगा. इस दौरान पाकिस्तान से कोई गलती होती है, तो सऊदी के लिखित अनुरोध पर उसे 72 घंटे के भीतर पैसा लौटाना पड़ सकता है. पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि 3 अरब डॉलर पर 4 फीसदी की दर से ब्याज देना होगा. यह पिछली बार मिली मदद से एक चौथाई ज्यादा है. तब इसकी दर 3.2 फीसदी थी. इसका मतलब ये हुआ कि पाकिस्तान को कर्ज पर 120 मिलियन डॉलर का ब्याज देना होगा. इन शर्तों पर पाकिस्तान के लोग काफी नाराजगी जता रहे हैं.
कभी भी पैसा ले सकता है सऊदी
'सऊदी अरब ने डिफॉल्ट होने की स्थिति पर शर्तें रखी हैं, वह तुरंत कैश डिपोजिट निकाल सकता है. समय पर ब्याज भुगतान में देरी को समझौते का डिफॉल्ट माना जाएगा.' सऊदी अरब की तरफ से इस बार कड़ी शर्तें इसलिए भी रखी गई हैं, क्योंकि पिछली बार पाकिस्तान को उसका एक बिलियन अमेरिकी डॉलर लौटाने में दिक्कतें आई थीं. उस वक्त पाकिस्तान को अपने तथाकथित सदाबहार दोस्त चीन से पैसे लेकर सऊदी को देने पड़े. पाकिस्तानी मंत्रालय की एक रिपोर्ट से पता चला है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 2018 में तीन साल के लिए 6.2 बिलियन डॉलर का वित्तीय पैकेज दिया था. उसने इसे लौटाने के लिए अधिक वक्त देने से इनकार कर दिया. तब पाकिस्तान ने चीन से कर्ज लेकर सऊदी को लौटाया.
पाकिस्तान को इतना कर्जा क्यों देता है सऊदी?
ईरान और सऊदी की दुश्मनी पुरानी है. कई विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी पाकिस्तान के जरिए ईरान को काबू में रखना चाहता है. फ्रांस में रह रहे पाकिस्तान के निर्वासित अवॉर्ड विनिंग पत्रकार ताहा सिद्दीक़ी ने अल-जज़ीरा में 16 फरवरी 2019 को इस संबंध में एक लेख लिखा था. इसमें कहा गया था कि सऊदी आर्थिक पैकेज और निवेश के वादों के जरिए आर्थिक रूप से तंगहाल पाकिस्तानी सरकार की वफादारी खरीदने की कोशिश करता है. वह अपने हिसाब से पाकिस्तानी सीमाओं पर नीतियां बनवाता है.
मई के बाद पाकिस्तान की मुद्रा रुपये में 13.6 फीसदी की गिरावट आई. इसी हफ्ते मंगलवार को एक डॉलर के लिए पाकिस्तान में 175.80 रुपये देने पड़ रहे थे. अब भी एक डॉलर की कीमत 173 रुपये के आसपास है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले साल के आखिर में 17.93 अरब डॉलर था, इस साल सितंबर महीने के पहले हफ्ते में 19.96 अरब डॉलर तक पहुंचा था. ऐसे में पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार के लिए सऊदी अरब की ये खैरात बेहद अहम है.
सऊदी के लिए पाकिस्तान इसलिए भी जरूरी
यही नहीं, पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न इस्लामिक देश है. ऐसे में सऊदी को उसका साथ चाहिए ही. सऊदी जानता है कि उसकी सुरक्षा पर जब भी बात आएगी, तो दुनिया चाहे जिस ओर रहे, पाकिस्तान सऊदी के साथ ही खड़ा रहेगा.