अब पूरी दुनिया कृत्रिम सूरज से होगी रोशन, मिलेगा ऊर्जा का अक्षय स्रोत, जानें- कहां चमकेगा
कुछ साल पहले अगर कोई आसमान पर दो सूरज चमकने की बात कहता, तो कपोल कल्पना कहकर उसकी बात को हंसी में टाल दिया जाता।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कुछ साल पहले अगर कोई आसमान पर दो सूरज चमकने की बात कहता, तो कपोल कल्पना कहकर उसकी बात को हंसी में टाल दिया जाता। अब ऐसा नहीं है। भारत समेत 35 देशों के विज्ञानी कृत्रिम सूरज पर काम कर रहे हैं। फ्रांस के सेंट पाल लेज ड्यूरेंस इलाके में इस शोध के लिए विशाल प्रयोगशाला बनाई गई है। प्रयोग सफल रहा तो मनुष्य को ऊर्जा का अक्षय स्रोत मिल जाएगा, जिसके खत्म होने का कोई डर नहीं रहेगा। यह सूरज आसमान में तो नहीं चमकेगा, लेकिन उसकी ऊर्जा से पूरी दुनिया रोशन जरूर होगी।
सूर्य को नाभिकीय संलयन से मिलती है ताकत
सूर्य की ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया है। नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में दो छोटे अणु मिलकर एक बड़ा अणु बनाते हैं। हाइड्रोजन के दो अणु के मिलने से हीलियम बनने की प्रक्रिया में मुक्त होने वाली अथाह ऊर्जा ही सूर्य एवं ब्रांड में अन्य बहुत से तारों की सतत ऊर्जा का स्रोत है।
ऊर्जा के मूल स्रोत की ओर देखने की आवश्यकता
विज्ञानियों का कहना है कि जब पृथ्वी की जनसंख्या एक अरब थी, तब यहां अक्षय ऊर्जा के पर्याप्त स्रोत थे। लेकिन आज की आठ अरब आबादी की ऊर्जा की जरूरतों को लगातार पूरा करते रहने के लिए हमें ऐसे स्रोत की ओर बढ़ना होगा जो वास्तव में अक्षय है। वह स्रोत जिसका प्रयोग प्रकृति हमेशा से करती चली आ रही है। ऊर्जा का वह स्रोत है नाभिकीय संलयन।
सपने को सच करने की ओर बढ़ते कदम
कहा जाता था कि आप कभी भी पूछें कि नाभिकीय संलयन में सफलता कब मिलेगी, उत्तर हमेशा यही होगा कि कम से कम 30 साल बाद। यानी इसे लगभग असंभव माना जाता रहा है। अब पहली बार पांच सेकेंड तक लगातार नाभिकीय संलयन से ऊर्जा उत्पादन में सफलता मिली है। इसमें 59 मेगाजूल की ऊर्जा बनी। पांच सेकेंड भले कम हैं, लेकिन अपार ऊर्जा को देखते हुए इतने समय तक प्रक्रिया को संभालना बड़ी उपलब्धि है। पहली बार सिद्ध हुआ है कि प्रयोगशाला की परिस्थितियों में संलयन की प्रक्रिया संभव है।
ऐसे किया जा रहा प्रयोग
- टोकामैक नाम की मशीन में भारी हाइड्रोजन (ड्यूटेरियम और ट्राइटियम) के अणुओं को डाला जाता है और मशीन के चारों तरफ सुपर मैग्नेट एक्टिव कर दिए जाते हैं। इससे अंदर प्लाज्मा बन जाता है।
- मैग्नेटिक फील्ड के जरिये प्लाज्मा को बांधे रखा जाता है, जिससे ऊर्जा बाहर आकर मशीन की दीवारों को गर्म न करे।
- प्लाज्मा को 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है, जिससे ड्यूटेरियम और ट्राइटियम का संलयन होता है।
- इस प्रक्रिया में हीलियम और न्यूट्रान बनते हैं, जिनका द्रव्यमान ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के संयुक्त द्रव्यमान से कम होता है।
- संलयन की प्रक्रिया में यही अतिरिक्त द्रव्यमान ऊर्जा में बदल जाता है। अभी प्रयोग के दौरान निकली ऊर्जा को कुछ धातुओं के माध्यम से सोखा गया है। भविष्य में इस ऊर्जा से भाप बनाने, टर्बाइन चलाने और बिजली बनाने जैसे काम किए जा सकते हैं।