मलेरिया से बचाव की नई तकनीक, संक्रमण के वाहक सीटीएल-4 प्रोटीन को खत्म करने में मिली कामयाबी
विज्ञानियों ने मलेरिया की रोकथाम का एक नया तरीका खोजा है। इससे मलेरिया परजीवी को मच्छरों से इंसानों तक पहुंचने से रोकना संभव हो सकेगा।
विज्ञानियों ने मलेरिया की रोकथाम का एक नया तरीका खोजा है। इससे मलेरिया परजीवी को मच्छरों से इंसानों तक पहुंचने से रोकना संभव हो सकेगा। 'पीएलओएस बायोलाजी' में आनलाइन प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, अफ्रीका में मलेरिया के वाहक एनोफिलीज गैंबिया मच्छरों में एक अहम प्रोटीन को ब्लाक करने से मच्छरों से इंसानों में पहुंचने वाले मलेरिया संक्रमण को रोका जा सकता है।
जीन एडिटिंग तकनीक आई काम
यह अध्ययन जान्स हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के जान्स हापकिंस मलेरिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने किया है। विज्ञानियों ने इस शोध के तहत एनोफिलीज गैंबिया मच्छरों में सीटीएलटी4 नामक प्रोटीन बनाने वाले जीन को एक विशिष्ट जीन एडिटिंग तकनीक के जरिये खत्म कर दिया। इस प्रक्रिया के बाद पाया गया कि मच्छरों में मलेरिया परजीवी के प्रति बहुत ही मजबूत प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई।
संक्रमण फैलने में 64 प्रतिशत तक गिरावट
शोधकर्ताओं ने पाया कि सीएलटी4 प्रोटीन के निर्माण को बाधित करने से संक्रमण फैलने में 64 प्रतिशत तक की गिरावट आई। इस कारण उनका मानना है कि सीटीएलटी4 को निशाना बनाकर मलेरिया को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
नई विधि ज्यादा कारगर
जान्स हापकिंस मलेरिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर तथा इस शोध के वरिष्ठ लेखक जार्ज डिमोपोलोस ने बताया कि मलेरिया की रोकथाम के लिए अभी तक जो भी जीनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीक अपनाई जा रही है, उसकी तुलना में यह नई विधि ज्यादा क्षमता और संभावनाओं वाली है। इस तकनीक के जरिये किसी खास क्षेत्र में मलेरिया की प्रभावी रोकथाम की जा सकती है।लाखों की होती है मलेरिया से मौत
बता दें कि मलेरिया अभी भी दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चिंता बनी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, साल 2020 में मलेरिया के 2.41 करोड़ मामले सामने आए और उनमें से छह लाख 27 हजार लोगों की मौत हो गई।
मलेरिया की रोकथाम के लिए इन दिनों मच्छरदानी, कीटनाशकों जैसे ऐहतियाती उपाय के साथ ही मलेरिया रोधी दवाओं और पिछले साल से टीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब विज्ञानियों का मच्छरों से इंसानों में संक्रमण चेन तोड़ने पर जोर है और इस क्रम में मच्छरों को ही मलेरिया परजीवी के प्रति ज्यादा प्रतिरोधी बनाने की रणनीति अपनाई जा रही है।
इसके पूर्व के अध्ययनों में सीटीएल4 प्रोटीन की पहचान तो की गई थी, लेकिन एनोफिलीज मच्छरों में उसके कामकाज के बारे में जानकारी कम ही थी। इसलिए उसे निशाना बनाने पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं गया। लेकिन पाया गया है कि एक पुरानी तकनीक आरएनए-इंटरफिरंस (आरएनएआइ) के जरिये सीटीएल4 का स्तर कम किए जाने से एनोफिलीज को मलेरिया परजीवी प्लाजमोडियम बर्घेई के संक्रमण से मजबूत सुरक्षा मिली। यह परजीवी चूहों में मलेरिया जैसा रोग उत्पन्न करता है और इसी माडल का इंसानों के मामले में प्रयोग किया जाता है।