नेबरहुड फर्स्ट पालिसी का कायल हुआ कोलम्बो, भारत संकट के समय श्रीलंका के सबसे नजदीक आया
भारत संकट के समय श्रीलंका के सबसे नजदीक आया
नई दिल्ली, जेएनएन। पाकिस्तान के बाद भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका सबसे खतरनाक आर्थिक गिरावट से जूझ रहा है। श्रीलंका में महंगाई चरम पर पहुंच गई है। आम उपभोग की लगभग सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। खाने की सामग्री के अलावा डीजल और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की वजह से अन्य चीजें भी महंगी हो गई हैं। श्रीलंका के नेता इन हालात के लिए कोरोना को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं, लेकिन आलोचक इसके लिए सरकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। संकट की घड़ी में श्रीलंका सरकार भारत की ओर उम्मीद लगाए बैठी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर श्रीलंका के मित्र देश चीन और पाकिस्तान इस मामले में सक्रिय क्यों नहीं है? श्रीलंका की इस उम्मीद के पीछे वड़ी वजह क्या है? क्या भारत की मदद से कोलम्बो और नई दिल्ली के रिश्तों में मधुरता आएगी? दोनों देश अपने मतभेदों को भुलाकर फिर एक-दूसरे के निकट आएंगे?
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेबरहुड फर्स्ट पालिसी के चलते भारत अपने पड़ोसियों के प्रति उदार व्यवहार करता है। मोदी सरकार की पड़ोसी मुल्कों के साथ उदार और सकारात्मक रुख के चलते श्रीलंका की नजर भारत पर टिकी हैं। संकटकाल में श्रीलंका को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। बावजूद इसके कि हाल के वर्षों में भारत और श्रीलंका के रिश्ते बहुत मधुर नहीं रहे हैं। श्रीलंका का चीन के प्रति झुकाव ने दोनों देशों के बीच में मतभेद पैदा किए थे। खासकर मैत्रीपाला सिरीसेना के कार्यकाल में भारत और श्रीलंका के संबंधों में गिरावट आई है। इसकी वजह यह थी कि सिरीसेना का झुकाव चीन की ओर था।
2- प्रो पंत का कहना है कि श्रीलंका ने अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए चीन, जापान और भारत से कर्ज ले रखा है, लेकिन चीन ने कठोर शर्तों पर यह कर्ज दिया है। भारत ने बिना मोल-भाव के श्रीलंका के आम नागरिकों की मदद की पेशकश की है। इसके विपरीत चीन ने अपनी शर्तों के मुताबिक श्रीलंका को कर्ज दिया है। चीन ने अपने स्वार्थ में श्रीलंका को कर्ज में डुबा दिया है। इसी का खमियाजा श्रीलंका भुगत रहा है। श्रीलंका सरकार यह जान चुकी है कि चीन अपने हितों के आधार पर ही उसकी मदद करेगा। ऐसे में श्रीलंका का झुकाव भारत की ओर हुआ है।
3- भारत की उदारता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के विरोध के बावजूद चीन ने कुछ वर्ष पहले चीनी निवेश की मदद से हम्बनटोटा बंदरगाह परियोजना की शुरुआत की थी। श्रीलंका और चीन की यह संयुक्त परियोजना भारत के सामरिक हितों के प्रतिकूल है, बावजूद इसके भारत अपने पड़ोसी मुल्क के प्रति उदार रवैया अपनाए हुए है। यह बंदरगाह भारत के सामरिक हितों के खिलाफ है। यही वजह है कि भारत श्रीलंका के इस समझौते का विरोध करता रहा है।
चीन को दरकिनार कर भारत ने की पहल
श्रीलंका के संकटकाल में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की कोलम्बो यात्रा यह दर्शाता है कि भारत अपने पड़ोसी मुल्कों की मदद बिना किसी स्वार्थ के करता है। इसके पूर्व श्रीलंका में नई सरकार के गठन के ठीक बाद भारत ने सभी मतभेदों को भुलाकर श्रीलंका के साथ संबंध बनाने की एक सकारात्मक पहल की थी। भारतीय विदेश मंत्री गोटाभाया राजपक्षे से मुलाकात की थी और उन्हें भारत आने का पीएम मोदी का निमंत्रण भी दिया था। हालांकि, गोटाभाया का झुकाव चीन की ओर है। इसके बाद गोटाभाया ने भारत का दौरा किया था। इस दौरान दोनों देशों के बीच गर्मजोशी देखने को मिली। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत थी। उन्होंने कहा कि जयशंकर का श्रीलंका जाना काफी अहम रहा। इसके बाद मोदी के न्यौते पर गोटाभाया का भारत आना बेहद अहम था। इसके बाद दोनों देशों के बीच बातचीत अच्छी चली। संबंधों में सुधार के संकेत देखे गए।