स्वीडन और फिनलैंड की नाटो की सदस्यता का रास्ता साफ, बौखलाए पुतिन
देशों की राह का कांटा बना हुआ था क्योंकि नाटो का एक भी सदस्य अगर वीटो करता है तो नए सदस्य का प्रवेश रुक जाता है।
यूक्रेन जंग के बीच अमेरिकी सीनेट ने स्वीडन और फिनलैंड को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में शामिल होने को हरी झंडी दे दी है। अमेरिकी सीनेट के फैसले के बाद नाटो संगठन NATO दशकों बाद अपने सबसे महत्वपूर्ण विस्तार के करीब पहुंच गया है। अमेरिकी सीनेट और इतालवी संसद दोनों ने बुधवार को फिनलैंड और स्वीडन के 30 सदस्यीय NATO संगठन में शामिल होने को मंजूरी दी है। अमेरिकी सीनेट ने यह कदम ऐसे समय उठाया है, जब रूस पूरी तरह से यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है। खास बात यह है कि रूस और यूक्रेन युद्ध की बड़ी वजह ही नाटो के प्रति उसकी दिलचस्पी थी। यूक्रेन की नाटो की सदस्यता को लेकर ही रूस ने उस पर हमला किया था। स्वीडन और फिनलैंड की नाटो सदस्यता को लेकर एक बार फिर रूस आक्रामक हो सकता है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि सीनेट से हरी झंडी के बाद दोनों देशों को नाटो में शामिल करने की प्रक्रिया तेज हो गई है। यह पूरी प्रकिया सात चरणों की है। दोनों ही देशों को सदस्यता की जिम्मेदारियों को स्वीकार करना होगा। इसके बाद वर्तमान सदस्य एक प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर करेंगे। इसे सभी 30 देशों की संसद से मंजूरी दी जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया में अभी एक साल लग सकता है। उनका कहना है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से अप्रत्याशित रूप से स्वीडन और फिनलैंड को जल्द से जल्द सदस्य बनाने की जरूरत है। यही वजह है कि फिनलैंड और स्वीडन को जल्द ही सदस्यता मिल सकती है।
2- स्वीडन और फिनलैंड के नाटो का सदस्य बनते ही वह नाटो के सामूहिक सुरक्षा के दायरे में आ जाऐंगे। नाटो संगठन का अनुच्छेद 5 सामूहिक सुरक्षा का भरोसा दिलाता है। इस अनुच्छेद के अनुसार नाटो के किसी एक सदस्य देश पर हमला पूरे संगठन पर हमला माना जाएगा। दरअसल, नाटो का गठन वर्ष 1949 में किया गया था। इस संगठन का मकसद पूर्व सोवियत यूनियन को संतुलित करने के लिए किया गया था। यही वजह थी कि सोवियत संघ और अब रूस सैन्य रूप से किसी कमजोर नाटो सदस्य देश पर भी हमला करने का साहस नहीं कर पाया है। आलम यह है कि आइसलैंड की अपनी कोई सेना ही नहीं है, लेकिन वह सुरक्षा के दायरे में है। नाटो देशों को अमेरिका समेत किसी भी देश के सैन्य संसाधनों को इस्तेमाल करने का अधिकार है। अब स्वीडन और फिनलैंड की सेनाएं भी नाटो के अभियानों में हिस्सा ले सकेंगी।
3- फिनलैंड और स्वीडन के इस फैसले से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पूरी तरह से बौखला गए हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि नाटो संगठन रूस को घेरने की योजना बना रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि यूक्रेन जंग के जरिए अपनी सैन्य बढ़त कायम करने पर जोर दे रहा है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने चेतावनी दी कि अगर नाटो ने फिनलैंड और स्वीडन में अपने सैनिक और अड्डे बनाए तो वह भी उसका करारा जवाब देंगे। रूस के उप विदेश मंत्री ने इसे भारी गलती करार दिया है।
4- प्रो पंत ने कहा कि रूस की चिंता लाजमी है। नाटो के पांच सदस्य देशों की सीमा रूस से मिलती है। फिनलैंड के नाटो में शामिल होने से इसमें 1300 किलोमीटर की सीमा और जुड़ जाएगी। इस तरह से अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो देशों और रूस के बीच सीमा 2500 किमी तक पहुंच जाएगी। फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने से इस सैन्य गठबंधन को भी बड़ा फायदा होगा। इसके चलते नाटो के इस फैसले से रूस भड़का हुआ है।
अब तटस्थ नहीं रहेगा तुर्की
तुर्की का अवरोध खत्म होने के बाद कई दशक तक न्यूट्रल रहने वाले फिनलैंड और स्वीडन अब नाटो का सदस्य बनने से बस चंद कदम ही दूर हैं। उत्तरी यूरोप के इन दो प्रमुख देशों के नाटो में शामिल होने के फैसले से रूस को बड़ा झटका लगा है। यही वजह है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने धमकी दी है कि अगर फिनलैंड और स्वीडन ने रूस की सीमा के पास हथियार तैनात किए तो उसका करारा जवाब दिया जाएगा। गौरतलब है कि रूस और चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए 30 सदस्यीय नाटो देशों की ऐतिहासिक बैठक स्पेन में चल रही है। इसी दौरान तुर्की ने एक डील के बाद फिनलैंड और स्वीडन के संगठन में शामिल होने के अपने विरोध को छोड़ दिया है। रूस के यूक्रेन पर जारी हमले के बीच जल्द ही ये दोनों देश नाटो के सदस्य बन जाएंगे और यह सैन्य संगठन रूस से सटे पूर्वी इलाके में और मजबूत हो जाएगा। तुर्की का विरोध इसलिए दोनों देशों की राह का कांटा बना हुआ था क्योंकि नाटो का एक भी सदस्य अगर वीटो करता है तो नए सदस्य का प्रवेश रुक जाता है।