NASA: अब MOON पर बर्फ खोजेगा अत्‍याधुनिक मोबाइल रोबॉट

अत्‍याधुनिक मोबाइल रोबॉट

Update: 2021-05-26 16:14 GMT

वॉशिंगटन: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने घोषणा की है कि वर्ष 2023 में वह चंद्रमा पर अपना पहला मोबाइल रोबॉट भेजने जा रही है। नासा ने इसे वाइपर मिशन नाम दिया गया है और इसका मकसद चंद्रमा की सतह के अंदर बर्फ तथा अन्‍य प्राकृतिक संसाधनों की तलाश करना है। इस रोबॉट को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर प्राकृतिक संसाधनों का नक्‍शा भी बनाना है। नासा ने इसके लिए 43 करोड़ डॉलर का बजट भी जारी कर दिया है।


वाइपर मिशन में ऐसे हेड लाइट लगाए गए हैं जिससे यह रोवर चांद के उन हिस्‍सों की जांच कर सकेगा जो छाया के कारण अंधेरे में रहते हैं। नासा के प्‍लेनटरी साइंस डिव‍िजन के डायरेक्‍टर लोरी ग्‍लेज ने कहा, 'वाइपर से मिला डेटा हमारे वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में मदद करेगा कि चंद्रमा की सतह पर कहां पर और कितनी बर्फ है। साथ ही हम अर्तेमिस मिशन के अंतरिक्षयात्रियों की तैयारी के लिए यह जान सकेंगे कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर कैसा पर्यावरण है और क्‍या संभावित संसाधन वहां मौजूद हैं।'
चंद्रमा पर पानी की उत्‍पत्ति और उसके वितरण के बारे में बताएगा
लोरी ग्‍लेज ने कहा, 'यह इस बात का शानदार उदाहरण है कि कैसे रोबोटिक साइंस मिशन और मानवीय खोज एक साथ चल सकती है और क्‍यों यह जरूरी है। वह भी तब जब हम चंद्रमा पर स्‍थायी उपस्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं। अमेरिकी अंतर‍िक्ष एजेंसी ने इस रोवर को बनाने पर करीब 43 करोड़ 35 लाख डॉलर खर्च किए हैं। वाइपर चंद्रमा पर नासा की ओर से भेजा गया सबसे सक्षम रोबॉट होगा। यह हमें चंद्रमा के उन हिस्‍सों की जांच करने का मौका देगा जिनके बारे में कोई जानकारी अ‍ब तक नहीं मिली है।
दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।
इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।
परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।

परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।
यह मिशन हमें चंद्रमा पर पानी की उत्‍पत्ति और उसके वितरण के बारे में बताएगा। इससे आगे चलकर अनंत ब्रह्मांड में अंतरिक्षयात्रियों को भेजने में मदद मिलेगी। बता दें कि नासा ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की है। बड़ी बात यह है कि चंद्रमा की सतह पर यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले इलाके में खोजी गई है। इस बड़ी खोज से न केवल चंद्रमा पर भविष्य में होने वाले मानव मिशन को बड़ी ताकत मिलेगी। बल्कि, इनका उपयोग पीने और रॉकेट ईंधन उत्पादन के लिए भी किया जा सकेगा।

दक्षिणी गोलार्ध के क्रेटर में मिला पानी
इस पानी की खोज नासा की स्ट्रेटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (सोफिया) ने की है। सोफिया ने चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित,पृथ्वी से दिखाई देने वाले सबसे बड़े गड्ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं (H2O) का पता लगाया है। पहले के हुए अध्ययनों में चंद्रमा की सतह पर हाइड्रोजन के कुछ रूप का पता चला था, लेकिन पानी और करीबी रिश्तेदार माने जाने वाले हाइड्रॉक्सिल (OH) की खोज नहीं हो सकी थी।
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