शख्स को 3डी तकनीक से मिली नई आंख! खास कारण से बन गया दुनिया का पहला इंसान

लंदन के रहने वाले स्टीव वर्जी जब 20 साल के थे तब उनकी बाईं आंख की दृष्टि चली गई थी.

Update: 2021-11-27 05:07 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लंदन के रहने वाले स्टीव वर्जी (Steve Verze) जब 20 साल के थे तब उनकी बाईं आंख की दृष्टि चली गई थी. तब से वो प्रॉस्थेटिक्स (Prosthetic Eyes) का इस्तेमाल करते थे. जिसे हर 5 साल बाद बदलना पड़ता था. तब से स्टीव प्रॉस्थेटिक्स आंखों के साथ गुजारा कर रहे हैं. 40 साल के हो चुके स्टीव अपनी प्रॉस्थेटिक आंखों को लेकर बहुत ज्यादा कॉन्शियस रहते थे. उन्हें अपनी आंखों को शीशे में देखकर शर्मिंदगी महसूस होती थी. इसलिए वो सबके सामने बहुत देर तक खड़े नहीं हो पाते थे. अब उन्हें 3डी प्रिंटिंग तकनीक से आईबॉल (3D Printing Eyeball) मिल चुकी है.

यूं तो शरीर का हर अंग इंसान के लिए महत्वपूर्ण है, एक छोटे अंग के बिना भी शरीर नॉर्मल तरीके से फंक्शन नहीं कर सकती है मगर आंखें इंसान के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं. वो इसलिए कि बिना दृष्टि के इंसान अपंग ना होते हुए भी अपंग हो जाता है. इस बात का अंदाजा इंग्लैंड (England Man gets 3D Eyeball) के रहने वाले एक शख्स को बखूबी था जिसकी एक आंख काफी कम उम्र से खराब थी. हाल ही में शख्स को 3डी तकनीक से नई आंखें (Man Gets New Eyeball With 3D Technology) मिली हैं जिसके बाद वो दुनिया का पहला ऐसा शख्स बन गया है जिसे इस खास तकनीक से एक आंख मिली है.
लंदन के रहने वाले स्टीव वर्जी (Steve Verze) जब 20 साल के थे तब उनकी बाईं आंख की दृष्टि चली गई थी. तब से वो प्रॉस्थेटिक्स (Prosthetic Eyes) का इस्तेमाल करते थे. जिसे हर 5 साल बाद बदलना पड़ता था. तब से स्टीव प्रॉस्थेटिक्स आंखों के साथ गुजारा कर रहे हैं. डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार इंजिनियर स्टीव जो अब 40 साल के हो चुके हैं, अपनी प्रॉस्थेटिक आंखों को लेकर बहुत ज्यादा कॉन्शियस रहते थे. उन्हें अपनी आंखों को शीशे में देखकर शर्मिंदगी महसूस होती थी. इसलिए वो सबके सामने बहुत देर तक खड़े नहीं हो पाते थे.
स्टीव की बदल गई जिंदगी
तब उन्हें 3डी प्रिंटेड आई बॉल (3D Printed Eyeball) यानी 3डी आंख की पुतलियों के बारे में पता चला. उन्होंने मूरफील्ड आई हॉस्पिटल में अपना ऑपरेशन करवाया और जब से उन्हें नई आंखें मिली हैं तब से ही उनकी जिंदगी बदल गई. 3डी आंख से उनकी दृष्टि तो वापिस नहीं आएगी मगर अब उनकी आंख एक असली आंख की तरह लगने लगी है. इस वजह से अब उन्हें दूसरों के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ता है.
खास कारण से स्टीव बने दुनिया के पहले शख्स!
आपको बता दें कि स्टीव दुनिया के पहले ऐसे इंसान बन गए हैं जिन्हें 3डी प्रिंटिंग तकनीक से नई आई बॉल मिली है. उनकी ये सर्जरी एक क्लिनिकल ट्रायल का हिस्सा थी. इंग्लैंड में करीब 60 हजार लोगों को प्रॉस्थेटिक आंखें लगने का इंतजार है. स्टीव ने कहा- प्रॉस्थेटिक आंखों के कारण मैं हमेशा ही संकोच महसूस करता था. जब भी घर से निकलता था तो एक बार शीशा जरूर देख लेता था. मेरी नई आंख मुझे बहुत अच्छी लगती है और 3डी टेक्नोलॉजी के कारण से वक्त के साथ और भी अच्छी होती जाएगी.
कैसे लगती हैं 3डी प्रिंटिंग वाली आंखें
डॉक्टरों ने बताया कि प्रॉस्थेटिक आंखें लगाने के बाद उसे सेट होने में 6 हफ्ते लगते थे वहीं 3डी आंखें लगाने में उसे 3 हफ्ते तक लगेंगे. इन आंखों को प्रिंट करने में सिर्फ ढाई घंटे का वक्त लगता है. इस प्रोसेस में आंख के खाली सॉकेट का स्कैन किया जाता है जिससे सॉफ्टवेयर उतने एरिया का मैप तैयार कर सके. इसके बाद अच्छी आंख का भी स्कैन किया जाता है जिससे ये तय किया जा सके कि नई आंख अच्छी आंख की ही तरह दिखे. इसके बाद डिजिटल मैप को जर्मनी भेजा जाता है जहां उन्हें 3-डी प्रिंटर में प्रिंट किया जाता है और वहां से वापिस अस्पताल में भेजा जाता है. तब जाकर वो मरीज को फिट किया जाता है.
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