पार्किसंस का खतरा बढ़ा सकता है कोविड, जानें इस शोध के बारे में
पार्किसंस का खतरा बढ़ा सकता है कोविड
न्यूयार्क, आइएएनएस। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, कोरोना महामारी के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 के दुष्प्रभाव भी अलग-अलग रूप में सामने आ रहे हैं। अब एक नए शोध में सामने आया कि यह वायरस पार्किसंस डिजीज को बढ़ाता है। यह एक न्यूरो डिजनेरेटिव डिजीज है, जिसमें शरीर कांपता है और चलने-फिरने में संतुलन नहीं रह पाता है। इस बीमारी में वायरस की भूमिका को लेकर चूहों पर किया गया शोध मूवमेंट डिसआर्डर जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि कोविड चूहों के मस्तिष्क के नर्व्स सेल्स को उस टाक्सिन के प्रति संवेदनशील बना देता है, जो पार्किसंस के लिए जिम्मेदार माना जाता है और कोशिकाओं का क्षरण होता है।
दुनियाभर में पार्किसंस की बीमारी से दो प्रतिशत लोग हैं ग्रस्त
वैसे थामस जेफरसन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रिचर्ड स्मेने का कहना है कि दुनियाभर में पार्किसंस की बीमारी से दो प्रतिशत लोग ग्रस्त हैं और इसका जोखिम 55 साल की उम्र के बाद होता है। लेकिन कोविड किस प्रकार से हमारे मस्तिष्क पर असर डाल सकता है, इसे जानना इस मायने में महत्वपूर्ण है कि हम अभी से उस बीमारी से निपटने की दीर्घकालिक तैयारी कर लें।
उन्होंने बताया कि यह नया निष्कर्ष पहले के उन प्रमाणों पर आधारित है, जिनमें कहा गया है कि वायरस ब्रेन सेल्स या न्यूरान्स को नुकसान या मौत के प्रति ज्यादा जोखिम वाला बनाता है।
इंफ्लूएंजा होने के 10 साल बाद पार्किसंस का जोखिम दोगुना
पहले के अध्ययन में पाया गया है कि 2009 में इंफ्लूएंजा महामारी के लिए जिम्मेदार एच1एन1 वायरस से जब चूहों को संक्रमित कराया गया तो पार्किसंस के लक्षण उत्पन्न करने वाले एमपीटीपी नामक टाक्सिन के प्रति वे ज्यादा संवेदनशील हो गए। बाद में इंसानों पर हुए अध्ययन में पाया गया कि इंफ्लूएंजा होने के 10 साल बाद पार्किसंस होने का जोखिम दोगुना पाया गया।