जानिए बाकी मुस्लिम देशों से क्यों अलग है बांग्लादेश
मुस्लिम देशों से क्यों अलग है बांग्लादेश
बांग्लादेश (Bangladesh) ने एक दिन पहले वो फैसला लिया है, जिससे एशिया और मध्य पूर्व के अन्य मुस्लिम देशों को धक्का जरूर लग सकता है. ये वो फैसला है, जो शांति बढ़ाने के साथ-साथ कट्टरता को कम करता दिखाई देता है. बांग्लादेश ने इजरायल पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध को हटा दिया है. उसके पासपोर्ट (Bangladesh Passport) पर इससे पहले लिखा होता था- 'इजरायल को छोड़कर यह पासपोर्ट सभी देशों में मान्य है.' लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस फैसले का इजरायल ने स्वागत किया है.
ये फैसला ऐसे वक्त में लिया गया है, जब मुस्लिम देशों में इजरायल के प्रति खासा नाराजगी है. क्योंकि हाल ही में इजरायल और फलस्तीनियों के चरमपंथी संगठन हमास (Israel Hamas Conflict) के बीच 11 दिनों तक भीषण लड़ाई चली है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए. बेशक ज्यादातर मुस्लिम देश हमास के प्रति ज्यादा लगाव नहीं रखते लेकिन वह फलस्तीनियों के प्रति हमदर्दी जरूर रखते हैं. सभी मुस्लिम देश फलस्तीन के सपोर्ट में दिखे जबकि धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले देश इजरायल और हमास को शांति बरतने की सलाह देते रहे.
दुनिया में फैलता एक संदेश
बांग्लादेश के गृह मंत्री असादुज्जामन खान कमाल ने कहा है कि पासपोर्ट अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरे, इसके लिए कुछ बदलाव किए जा रहे हैं. हालांकि बांग्लादेश ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि वह इजरायल को एक देश के तौर पर मान्यता देता है या नहीं लेकिन उसके इस फैसले की गूंज दुनियाभर में जरूर सुनाई दी है (Bangladesh on Israel). इससे एक संदेश जा रहा है कि अब बांग्लादेश किसी एक गुट का हिस्सा नहीं रहना चाहता बल्कि वह दुनिया के सभी देशों के साथ चलना चाहता है. आपको बता दें पाकिस्तान सहित करीब 13 देश ऐसे हैं, जहां के नागरिक इजरायल की यात्रा नहीं कर सकते.
बाकी मुस्लिम देशों से हटकर राय
इजरायल और हमास के मुद्दे पर जहां ज्यादातर मुस्लिम देशों ने एक सुर में फलस्तीन का साथ दिया और कहा कि इजरायल को उसपर हमले रोकने चाहिए. कई देशों ने तो इतना तक कह दिया कि इजरायल 'नरसंहार' कर रहा है. इसे लेकर इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी ने भी बयान जारी किया और सऊदी ने इसकी आपात बैठक बुलाई (Muslim Countries on Israel Hamas Issue). पाकिस्तान और तुर्की ने बढ़ चढ़कर बयान दिए. लेकिन इसी कड़ी में बांग्लादेश का बयान देखें, तो उसने संयुक्त राष्ट्र संघ से हिंसा खत्म करने और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार समस्या के समाधान की अपील की.
लोकतंत्र को कैसे थाम रहा बांग्लादेश
इस देश में साल 2008 के बाद से लगातार शेख हसीना की आवामी लीग सरकार रही है. जिसने राजनीतिक रूप से अस्थिर माने जाने वाले बांग्लादेश में स्थिरता लाने, आर्थिक विकास कायम करने और कट्टरता पर शिकंजा कसने का काम किया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था में हर साल बढ़त दर्ज हो रही है. इस देश में भी बेशक कट्टरपंथियों की कमी नहीं है (Democracy in Bangladesh). हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा सबसे बड़ा उदाहरण है. उनकी बांग्लादेश यात्रा से पहले ही यहां खूब विरोध प्रदर्शन हुए थे, लेकिन सरकार ने हिंसा करने वालों पर कार्यवाई करते हुए प्रधानमंत्री को सुरक्षा का आश्वासन दिया.
महिलाओं को बराबर मौके
इसके अलावा जैसे बाकी मुस्लिम देशों में महिलाएं तमाम बंदिशों के बीच रहती हैं. वैसा बांग्लादेश में देखने को नहीं मिलता. यहां से कोरोना वायरस महामारी से पहले साल 2019 में करीब 34 अरब डॉलर के रेडिमेड कपड़ों का निर्यात किया गया. इस क्षेत्र से करीब 40 लाख लोगों को काम मिला हुआ है, जिनमें अधिकतर आबादी महिलाओं की है (Women in Bangladesh). प्रधानमंत्री हसीना के समर्थक कहते हैं कि देश के आर्थिक विकास के कारण ही लोग गरीबी से बाहर निकल रहे हैं. इसके लिए चाहे प्राथमिक शिक्षा की बात हो या स्वास्थ्य और सामाजिक विकास की हर ओर बांग्लादेश अपने पड़ोसी देशों से आगे निकल रहा है.
भारत के साथ अहम रिश्ता
पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी और आज भी दोनों देशों की दोस्ती कायम है. हालांकि भारत के नागरिकता संशोधन कानून को बांग्लादेश ने 'अनावश्यक' बताया था और कहा था कि भारत इससे ये कहना चाहता है कि बांग्लादेश के 9 फीसदी हिंदू असुरक्षित हैं. लेकिन जब दोनों देशों के रिश्ते की बात आई तो बांग्लादेश ने एक सुर में सकारात्मकता की बात दोहराई. भारत और बांग्लादेश के रिश्ते का आधार राष्ट्रीय हित हैं (India Bangladesh Relations). बांग्लादेश ने पूर्वोत्तर राज्यों और बाकी अलगाववादियों को नियंत्रित करने में भारत की खासा मदद की है. भारत ने भी उसे वैक्सीन समेत अन्य तरह की मदद मुहैया कराई है.
इन देशों ने भी बदला रुख
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कई मुस्लिम देशों ने इजरायल की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने 'अब्राहम एकॉर्ड्स' के नाम से मशहूर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. ट्रंप प्रशासन के आखिरी समय में इस समझौते का खूब प्रचार किया गया. इस बीच कई अरब देशों ने अपने इस रिश्ते को औपचारिक रूप दिया (Abraham Accords). साथ ही कई मुद्दों पर सहयोग की तरफ कदम बढ़ाया. इस समझौते का मुख्य उद्देश्य शांति और सहयोग कायम करना है. अब देखना ये होगा कि ये सब आगे भी कितनी मजबूती से कायम रह पाता है.