NATO vs China: यूक्रेन संघर्ष में रूस को घेरने के बाद अब नाटो की नजर चीन पर टिकी है। इसके लिए नाटो के सदस्य देश जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ अपना सहयोग और बढ़ाने की दिशा में अग्रसर हैं। इसका संकेत इस बात से भी जाता है कि नाटो की मैड्रिड में हुई बैठक में इन चारों एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के नेताओं ने शिरकत किया। इसको इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। मैड्रिड की इस बैठक में यह तय हो गया है कि नाटो का अगला निशाना चीन होगा। नाटो अब चीन की आक्रामकता का मुहंतोड़ जवाब देने के मूड में दिख रहा है। चीन की दादागिरी पर अंकुश लगाने के लिए नाटो एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत करने में जुट गया है। आइए जानते हैं कि नाटो को चीन से क्या खतरा है। आखिर चीन उसके निशाने पर क्यों है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन को उसके ही गढ़ में घेरने की रणनीति अमेरिका की है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देशों को एक मंच पर लाकर चीन को घेरना अमेरिकी रणनीति का बड़ा हिस्सा है। उन्होंने कहा कि नाटो को अमेरिका से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। नाटो के लिए अमेरिका सबसे ज्यादा फंडिंग करने वाला मुल्क है। ऐसे में जाहिर है कि अमेरिका की रणनीति का नाटो अहम हिस्सा है। इस समय रूस ही नहीं चीन भी अमेरिका के निशाने पर है। इसलिए वह रूस के साथ चीन को भी घेरने की रणनीति तैयार कर रहा है।
2- दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर एवं ताइवान में चीन अमेरिका को खुली चुनौती पेश कर रहा है। चीन की आक्रामकता को रोकने के लिए अमेरिका ने क्वाड का गठन किया है। भारत भी क्वाड का हिस्सा है। इतना ही नहीं रूस यूक्रेन जंग में चीन ने जिस तरह से रूस को खुला समर्थन दिया है। उससे भी चीन अमेरिका का तनाव चरम पर पहुंच गया है। चीन ने हाल में हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण करके अमेरिका को कड़ी टक्कर दी है। अमेरिका जानता है कि चीन को घेरने के लिए वह मित्र राष्ट्रों की मदद ले सकता है। अमेरिका अब इस संघर्ष में पश्चिमी देशों को भी जोड़ने के फिराक में है। नाटो और चीन में संघर्ष का मतलब होगा पश्चिमी देशों का चीन के साथ सीधा संघर्ष।
3- प्रो पंत के मुताबिक नाटो और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के चार देशों के बीच व्यापक सहयोग इसलिए जरूरी बताया जा रहा है कि केवल अमेरिका के साथ गठबंधन उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं होगा। यही नहीं इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट की नीति अपना ली थी, जिससे उनका अब अंकल सैम से भरोसा कम हो गया है। ट्रंप ने तो यहां तक धमकी दी थी कि वह अमेरिकी सेनाओं को जापान और दक्षिण कोरिया से वापस बुला लेंगे। रूस के यूक्रेन पर हमले से यह डर सता रहा है कि चीन ताइवान के खिलाफ भी ऐसा ही अभियान चला सकता है।
नाटो ने पहली बार चीन को चुनौती माना
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कहा कि एशिया- प्रशांत के सहयोगी देशों को अब भविष्य में 'नाटो के शिखर सम्मेलन में एक नियमित रूप से हिस्सा लेते रहना चाहिए। नाटो सदस्य देशों ने जोर देकर कहा कि वे चीन को लेकर उनके नए भागीदार देशों की चिंता को साझा करते हैं। इस शिखर सम्मेलन में पहली बार नाटो ने चीन को औपचारिक रूप से अगले एक दशक के लिए चुनौती माना। इस बीच नाटो और एशिया-प्रशांत देशों के बीच सहयोग से चीन में खतरे की घंटी बज गई है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन ने कहा कि अब नाटो ने अपने शिकंजे को एशिया- प्रशांत क्षेत्र तक फैला दिया है। चीनी प्रवक्ता ने चेतावनी दी कि इस इलाके में शांति और स्थिरता को कमजोर करने के प्रयासों का फेल होना तय है। चीन ने लगातार एशिया में नाटो जैसे सैन्य ब्लाक को बनाने का कड़ा विरोध किया है।