तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के भाषण में फिर किया कश्मीर का जिक्र, खिसकने वाली है कुर्सी
अपनी नीतियों को लेकर जनता को जागरूक करने में कामयाब रहते हैं तो सत्ता में आ सकते हैं।
कश्मीर मसले पर भारत के खिलाफ बोलने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगान की दिक्कतें बढ़ती दिख रही हैं। 2023 में तुर्की में राष्ट्रपति के चुनाव होने को हैं और इससे पहले एर्दोगान की लोकप्रियता में लगातार गिरावट जारी है। एर्दोगान की जस्टिस एंड पार्टी के खिलाफ छह विपक्षी पार्टियां एक साथ हो चुकी हैं और ओपिनियन पोल्स में जस्टिस एंड पार्टी का वोट शेयर लगातार घटता जा रहा है। 2019 के स्थानीय चुनावों में भी एर्दोगन के प्रभुत्व को झटका लगा था।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मूरत येतकिन बताते हैं कि तुर्की में विपक्ष कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रहा है जिसे पहले कभी नहीं आजमाया गया है। ये लोग सत्ताधारी पार्टी को हटाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। सबा अखबार के संपादकीय में दिलेक गुंगोर लिखते हैं कि जस्टिस एंड पार्टी अपने काडर को प्रेरित करने में नाकाम होती दिख रही है और यह रिसेप तैयप एर्दोगान के लिए खतरे की घंटी है।
हाई इन्फ्लेशन रेट, बेरोजगारी, कोरोना वायरस महामारी, आर्थिक संकट और जंगल की आग से निपटने की आलोचना के बीच एर्दोगन सरकार के लिए समर्थन कम हो रहा है। ओपिनियन पोल में एर्दोगान की जस्टिस एंड पार्टी को करीब 32 फीसद वोट मिल रहे हैं। एर्दोगान की सहयोगी पार्टी की लोकप्रियता भी कम हो रही है।
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ओपिनियन पोल्स जैसे नतीजे चुनाव नतीजे में भी आते हैं तो एर्दोगान सत्ता से बेदखल हो सकते हैं। हालांकि एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर विपक्षी गठबंधन एर्दोगान पर निशाना साधते रहते हैं और अपनी नीतियों को लेकर जनता को जागरूक करने में कामयाब रहते हैं तो सत्ता में आ सकते हैं।