ब्राजील में हुए राष्ट्रपति चुनावों में जैर बोलसोनारो को हार का सामना करना पड़ा, 30 साल में पहली बार हुआ ऐसा
जिसमें किसी राष्ट्रपति को दोबारा कार्यकाल नहीं मिला है। 20 लाख से ज्यादा मतदाता दो उम्मीदवारों के बीच बंट गए थे।
ब्रासीलिया: ब्राजील में हुए राष्ट्रपति चुनावों में जैर बोलसोनारो को हार का सामना करना पड़ा है। लूला दा सिल्वा ने उन्हें मात दी और अब वह देश के नए राष्ट्रपति हैं। सिल्वा ने बहुत कम वोटों से उन्हें हराया है। देश के चुनाव आयोग की तरफ से बताया गया है कि जहां सिल्वा को 50.8 फीसदी वोट मिले तो वहीं बोलसोनारो के हिस्से 49.2 फीसदी वोट्स आए। रविवार को हुए चुनावों से पहले जो प्रचार हुआ था उसमें बोलसोनारो को सिल्वा के तीखे आरोपों का सामना करना पड़ा था। इन चुनावों के साथ ही बोलसोनारो इतिहास में 30 सालों में देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जो दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सके हैं। सन् 1990 से बोलसोनारो से पहले ब्राजील में जितने भी राष्ट्रपति बने उन्हें दोबारा पद के लिए चुना गया था। जैर बोलसोनारो देश के सबसे विवादित राष्ट्रपति भी रहे हैं।
पहले हाफ में आगे थे बोलसोनारो
दा सिल्वा ने साओ पाउलो एक होटल में मौजूद मतदाताओं की भीड़ से कहा, 'आज विजेता सिर्फ ब्राजील के लोग हैं। यह न तो मेरी जीत है, न ही वर्कर्स की और न ही उन पार्टियों की जिन्होंने मुझे समर्थन दिया। बल्कि यह जीत उस लोकतांत्रिक मुहिम की है जो राजनीतिक पार्टियों से ऊपर है। यह हर उस व्यक्तिगत हित और आदर्शवाद की भी जीत है जिसने लोकतंत्र को समर्थन दिया।'
बोलसोनारो वोटों की गिनती के दौरान पहले हाफ में आगे चल रहे थे लेकिन जल्द ही लुला ने उन्हें पीछे कर दिया। लूला की जीत का ऐलान होते ही साओ पाउलो की गलियां हॉर्न बजाती गाड़ियों से भर गई थीं। यहां पर नारे लग रहे थे, 'नतीजे बदल गए।' वोटर्स की मानें तो लूला ही देश के लिए बेस्ट राष्ट्रपति हैं। वह गरीबों खासतौर पर गांवों के लिए बेहतर साबित होने वाले हैं। गरीब मतदाताओं की मानें तो वो हमेशा से लूला को ही राष्ट्रपति चाहते थे।
प्रचार ने दिलाई तानाशाही की याद
ब्राजील का ये चुनाव साल 1985 के बाद से पहला ऐसा चुनाव रहा जहां पर सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण हुआ। सैन्य तानाशाही के बाद से यह पहला मौका था जहां पर एक पूर्व यूनियन लीडर लूला ने बोलसोनारो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। बोलसोनारो एक पूर्व आर्मी कैप्टन रहे हैं। इस चुनाव प्रचार ने लोगों के दिमाग में सैन्य तानाशाही की यादें ताजा कर दी थीं। इसके साथ ही यह पहला चुनाव था जिसमें किसी राष्ट्रपति को दोबारा कार्यकाल नहीं मिला है। 20 लाख से ज्यादा मतदाता दो उम्मीदवारों के बीच बंट गए थे।