नासा को मंगल ग्रह से मिट्टी का सैंपल धरती पर लाने में लगेंगे 10 साल
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के पर्सेवरेंस रोवर द्वारा मंगल ग्रह से एकत्रित चट्टान का सैंपल पृथ्वी तक लाने में दस साल लगेंगे।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के पर्सेवरेंस रोवर द्वारा मंगल ग्रह से एकत्रित चट्टान का सैंपल पृथ्वी तक लाने में दस साल लगेंगे। इसमें कम से कम 4 अरब डॉलर का खर्च आएगा। सैंपल लाने वाले रॉकेट का ईंधन मंगल पर बनाया जाएगा क्योंकि धरती से ले जाना मुश्किल होगा।
ईंधन के लिए ऑक्सीजन बनाने के लिए पर्सेवरेंस में ही मॉक्सी डिवाइस लगी है। इससे भविष्य में इंसानों के लिए ऑक्सीजन बनाने की संभावना को तलाशा जा रहा है।
हालांकि, अभी भी इस मिशन का बड़ा हिस्सा बाकी है जिसमें अरबों डॉलर का खर्च और कम से कम 10 साल का इंतजार बाकी है।
सैंपल लिया, अब आगे क्या
बिजनस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक पर्सेवरेंस के हिस्से का काम नासा को 2.7 अरब डॉलर का पड़ा है। इसके लिए एक रॉकेट सैंपल ट्यूब और रोवर के साथ मंगल पर जाएगा। रोवर पर्सेवरेंस का संभालकर रखा सैंपल ट्यूब कलेक्ट करेगा और रॉकेट में मौजूद सैंपल ट्यूब में लाकर रखेगा। एक और मिशन सैंपल लेने मंगल पर जाएगा और फिर तीसरा मिशन स्पेस में सैंपल लेगा और धरती पर ड्रॉप करेगा। मंगल से लाए जाने वाले सैंपल में जीवन की तलाश की जाएगी।
ऐसे लौटेगा सैंपल
इस प्रोग्राम का तीसरा हिस्सा होगा एक स्पेसक्राफ्ट जो मंगल से सैंपल लेकर निकले रॉकेट इंतजार कर रहा होगा। रॉकेट से सैंपल कलेक्ट करने के बाद इलेक्ट्रिक प्रॉपल्शन की मदद से यह धरती की ओर आएगा और एक प्रवेश वाहन के जरिए धरती पर सैंपल छोड़ देगा।
इन तीनों मिशन्स की कीमत 7-9 अरब डॉलर के बीच हो सकती है। इसके अलावा धरती पर इनके लौटने के बाद अध्ययन पर खर्च अलग। हालांकि, सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे मिशन को पूरा करने में अभी कम से कम 10 साल लग सकते हैं।
रोवर की खासियत
पर्सेवरेंस रोवर में मोबाइल लैब, कैमरे, रेडार, एक्स-रे, स्पेक्ट्रोमीटर, ड्रिल और लेजर तक लगे हैं। हाई-रेजॉल्यूशन कैमरों की कीमत 2 करोड़ रुपये है। इसे मंगल के बर्फीले तापमान को भी झेलना है। रोवर सैंपल कलेक्ट करके रख लेगा और फिर करीब 10 साल तक इन्हें संभालकर रखने का काम करेगा।
अब सवाल उठता है कि आखिर इतने पैसे और संसाधन नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) क्यों खर्च कर रहे हैं? ईएसए बाद के दोनों मिशन के खर्च हिस्सा वहन करेगा।
दरअसल, करीब 50 साल पहले अपोलो मिशन चांद से सैंपल लेकर आया था, जिनकी विज्ञान के लिए कीमत अनमोल है। अभी तक मंगल पर भेजे गए सिर्फ 40 फीसदी मिशन कामयाब रहे हैं। दिलचस्प यह है कि एक बड़ी जीत की कहानी शुरू होती है और आगे हर एक स्टेप का एकदम सही तरीके से पूरा होना मिशन की सफलता के लिए जरूरी होगा।