'यह हमारे लिए मुश्किल होगा' रूस के G-20 बैठक में शामिल होने पर कनाडा को आपत्ति
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने नवंबर में होने वाली जी-20 बैठक से रूस को बाहर रखने की मांग की है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने नवंबर में होने वाली जी-20 बैठक से रूस को बाहर रखने की मांग की है। उनका मानना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बैठक में मौजूद होना परेशानियों का कारण बन सकता है। इस दौरान उन्होंने रूस पर अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाने के भी आरोप लगाए हैं। कनाडा ने 25 फरवरी को पुतिन पर प्रतिबंध लगा दिए थे।
राजधानी ओटावा में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रूडो ने कहा, 'यह दिखाते हुए कि सबकुछ ठीक है, व्लादिमीर पुतिन के साथ टेबल साझा करना हमेशा जैसा नहीं है, क्योंकि यह सही नहीं है और यह उनकी गलती है।' इधर, पश्चिमी देश 15 और 16 नवंबर को बाली में इंडोनेशिया की अध्यक्षता में होने वाले शिखर सम्मेलन से पुतिन को बाहर करने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
ट्रूडो ने कहा कि पुतिन की मौजूदगी परेशानियां खड़ी कर सकती है। उन्होंने कहा, 'बात जब हम बाकी लोगों के साथ टेबल पर व्लादिमीर पुतिन के बैठने की आती है, तो यह हमारे लिए असामान्य रुप से मुश्किल हो जाएगा और जी-20 के लिए भी खराब होगा।'
खास बात है कि ट्रूडो का बयान ठीक उसी दिन आया जब उन्होंने ओटावा में यूक्रेन के सांसदों से मुलाकात की थी। उन्होंने बाद में ट्वीट किया, 'उन्होंने घर में जारी युद्ध की कहानियां साझा की और उस समर्थन के बारे में बात की जिसकी उन्हें कनाडा और दुनिया से जरूरत है। यूक्रेन के लोगों की ताकत प्रेरणा देने वाली है और हम उनके लिए खड़े रहना जारी रखेंगे।'
इस दौरान ट्रूडो ने जी-20 समूह के आर्थिक उद्देश्यों पर खासतौर से बात की क्योंकि दुनिया कोविड-19 महामारी के चलते आए संकट से उबर रहा है। उन्होंने कहा कि रूस ने 'यूक्रेन पर अपने अवैध आक्रमण से पूरी दुनिया में सभी के लिए आर्थिक बढ़त को खत्म कर दिया है और वह शायद एक रचनात्मक साथी नहीं हो सकता।'
8 साल पहले जब इस समूह को जी-8 के रूप में जाना जाता था, तब कनाडा ने रूस की सदस्यता खत्म करने में भूमिका निभाई थी। अब उस समूह के बाकी सदस्यों (फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, इटली और कनाडा) ने यूरोपीय संघ के साथ मिलकर रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन जब बात जी-20 के सदस्यों की आती है, तो यह कदम शायद तर्कसंगत नहीं हो सकेगा, क्योंकि सदस्यों में भारत और चीन और कार्यक्रम के मेजबान इंडोनेशिया का नाम भी शामिल है। हो सकता है कि ये देश अन्य सदस्यों के फैसले में हामी न भरें।