क्या रूस यूक्रेन पर परमाणु हमले की तैयारी कर रहा है?
1- देखिए, यह कई बातों पर निर्भर करता है। रूस में लोकतांत्रिक सरकार नहीं है। वहां एक साम्यवादी सरकार है, जिसमें फैसला लेने का अधिकार रूसी राष्ट्रपति के पास है। परमाणु हमला करने के लिए उन्होंने सेना को अलर्ट मोड पर भी रखा है। यानी उन्होंने यूक्रेन की जनता और वहां की सरकार को खबरदार कर दिया है कि उनकी बातें मानों नहीं तो बर्बाद रहने को तैयार रहो। यह उनका अंतिम विकल्प है। इसके लिए उन्होंने अपने देश की सेना को तैयार रहने को कह दिया है। ऐसी स्थिति में अगर यूक्रेन की सरकार रूसी समझौते पर राजी नहीं हुई तो परमाणु हमला कोई अचंभे की घटना नहीं होगी।
2- यूक्रेन जंग अब रूस और राष्ट्रपति पुतिन के लिए अस्मिता का प्रश्न बन गया है। इस युद्ध में रूसी सेना का भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में पुतिन के समक्ष यह सवाल उठता है कि इस युद्ध में उन्होंने क्या हासिल किया। यह हो सकता है कि यह युद्ध भी वैसा ही हो जैसा अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध था। अमेरिका में यह सवाल खड़ा हुआ था कि आखिर अफगानिस्तान युद्ध में अमेरिका को क्या हासिल हुआ।
3- रूसी राष्ट्रपति दुनिया में रूस को महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए यूक्रेन पर अपनी विजय श्री चाहते है। लेकिन पुतिन का यह टास्क इतना आसान नहीं है। यूक्रेन को पीछे से अमेरिका और नाटो सगंठन का पूरा सहयोग मिल रहा है, जबकि इस जंग में रूस अकेले मोर्चा थामे हुए है। इसके साथ रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाकर अमेरिका रूस पर युद्ध विराम का दबाव बनाए हुए है। यह तय है कि रूस इन प्रतिबंधों का सामना बहुत दिनों तक नहीं कर सकता है। ऐसे में यह सवाल अहम है कि इस हालात से रूस कैसे निपटता है।
यूक्रेन संघर्ष के बीच नाटो देशों के महापंचायत के क्या मायने हैं ?
खास बात यह है कि नाटो की यह महापंचायत ऐसे समय हो रही है, जब रूस ने यूक्रेन में परमाणु हमले की चेतावनी जारी कर दिया है। अगर कीव पर परमाणु हमला हुआ तो यह युद्ध केवल रूस और यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगा। इसका दायरा काफी व्यापक हो जाएगा। हो सकता है कि परमाणु युद्ध की आंच नाटो के सदस्य देशों तक पहुंचे। दूसरे, परमाणु हमले के बाद कई अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन भी होगा। ऐसे में नाटो की यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है। रूसी परमाणु हमले को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका व नाटो देशों ने मिलकर प्लान किया है। इसके दो मकसद हो सकते हैं। एक तो नाटो देशों की रूसी हमले से सुरक्षा की गारंटी देना और दूसरे यूक्रेन का परमाणु हमले के दौरान युद्ध से उपजे हालात को काबू करना होगा।
अमेरिका लगातार चीन को क्यों खबरदार कर रहा है?
अमेरिका यह जानता है कि इस जंग में चीन रूस को सैन्य मदद कर सकता है। क्योंकि अमेरिका-चीन टकराव के बाद बीजिंग और मोस्को की दोस्ती काफी गाढ़ी हुई है। ऐसे में चीन रूसी की मदद में आगे आ सकता है। अमेरिका जानता है कि अगर इस जंग में चीन ने रूसी सेना की मदद की तो इस युद्ध का फलक बड़ा हो जाएगा। ऐसे में नाटो सदस्य देश और अमेरिका मौन नहीं रह सकते हैं। इसके अलावा उसका इशारा ताइवान को लेकर भी है। इस मौके का लाभ उठाकर चीन ताइवान पर हमला कर सकता है। इसलिए बाइडन प्रशासन ने यह सख्त संदेश दिया है कि अगर चीन ने किसी तरह की हरकत की तो उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा। अमेरिका ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ताइवान और यूक्रेन दोनों को लेकर चेतावनी जारी की है।
चीन के विदेश मंत्री वांग की भारत समेत एशियाई मुल्कों की यात्रा के क्या निहितार्थ हैं ?
पूर्वी लद्दाख में भारत चीन सीमा विवाद के बावजूद चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा को बड़े अचरज के रूप में देखा जा रहा है। इसका संबंध रूस यूक्रेन से जोड़कर देखा जा सकता है। रूस यूक्रेन जंग के दौरान भारत का रुख तटस्थता का रहा है। भारत ने किसी भी समस्या के समाधान के लिए किसी भी तरह के जंग की निंदा की है।हालांकि, अमेरिका का दबाव इसके उलट रहा है रूस भारत के इस स्टैंड को अपने पक्ष में देखता है। चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा के पीछे रूस का हाथ हो सकता है। चीन की उदारता का यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों देशों के बीच कोई सैन्य टकराव की स्थिति नहीं है। दोनों देशों के बीच संबंध सामन्य है और सीमा विवाद का वार्ता के जरिए समाधान निकाला जा सकता है।