श्रीलंका जन विद्रोह क्या शक्तिशाली राजपक्षे वंश की राजनीतिक यात्रा का अंत है?

श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की लोकप्रियता केवल 30 महीनों की अल्प अवधि के भीतर कम होकर घृणा के प्रतीक के रूप में बदल गई और आर्थिक संकट का सामना कर रहे लोग उनके इस्तीफे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आये. श

Update: 2022-07-11 00:57 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की लोकप्रियता केवल 30 महीनों की अल्प अवधि के भीतर कम होकर घृणा के प्रतीक के रूप में बदल गई और आर्थिक संकट का सामना कर रहे लोग उनके इस्तीफे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आये. श्रीलंका में राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करते हुए शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने मध्य कोलंबो के कड़ी सुरक्षा वाले फोर्ट इलाके में राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास में धावा बोल दिया और उन्हें राष्ट्रपति भवन छोड़कर जाना पड़ा और वह फिलहाल कहां पर हैं, इसकी जानकारी सामने नहीं आ सकी है.

सिंहला बौद्ध बहुसंख्यकों के 60 प्रतिशत बहुमत के साथ निर्वाचित व्यक्ति को छिपने को मजबूर होना पड़ा. पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के भाई गोटबाया राजपक्षे ने नवंबर 2019 में चुने जाने के बाद 20वें संशोधन के माध्यम से पद ग्रहण किया था. एक राजनीतिक टिप्पणीकार और कोलंबो के लेखक कुसल परेरा ने कहा, 'लोकप्रिय समर्थन और राष्ट्रपति के रूप में उनकी संवैधानिक क्षमता के मामले में गोटबाया राजपक्षे अपने भाइयों में सबसे शक्तिशाली हो सकते हैं, लेकिन उनकी अपनी पार्टी, श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) में कभी भी मजबूत पकड़ नहीं थी.' उन्होंने कहा कि इसका कारण गोटबाया थे, जो कभी राजनेता नहीं रहे थे लेकिन अपने भाई महिंदा के करिश्मे और राजनीतिक कौशल के कारण उनका आधार बना रहा.
'गोटबाया राजपक्षे की वापसी का कोई मौका नहीं'
परेरा ने कहा, 'उनकी राजनीतिक स्थिति काफी कमजोर हो गई है. यहां तक ​​कि उनके अपने कर्मचारी भी अब उनके साथ खड़े नहीं होंगे. राष्ट्रपति पद का कार्यभार फिर से शुरू करने के लिए उनके पास वापसी करने का कोई मौका नहीं है.' उन्होंने कहा, 'महिंदा अब एक कारक नहीं होंगे, वह उम्र के साथ शारीरिक रूप से कमजोर हो गये हैं और ऐसी कोई संभावना नहीं है कि उनके पास राजनीतिक रूप से वही शक्तिशाली करिश्माई बल होगा जैसा पहले होता था.'
'किसी भी राजपक्षे के उभरने से इनकार'
एक अन्य स्तंभकार/विश्लेषक एमएसएम अयूब ने 2025 के चुनावों में वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसी भी राजपक्षे के उभरने से इनकार किया. उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट के असर का मतलब है कि युवा पीढ़ी की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं. गोटबाया राजपक्षे ने घोषणा की थी कि 13 जुलाई को वह इस्तीफा दे देंगे.
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