अफगानिस्तान में ईरान के दूतावासों पर पत्थरबाजी, अफगान राजदूत को सरकार ने किया तलब
ईरान ने अफगानिस्तान में अपने राजयनिक मिशनों पर हमलों के एक दिन बाद मंगलवार को अफगान दूत को तलब किया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ईरान ने अफगानिस्तान में अपने राजयनिक मिशनों पर हमलों के एक दिन बाद मंगलवार को अफगान दूत को तलब किया है. ईरान के सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी. खबरों के मुताबिक, सोमवार को काबुल स्थित ईरान के दूतावास (Iran Embassy in Kabul) और हेरात में ईरानी वाणिज्यिक दूतावास पर हुए हमले के संबंध में, ईरान के विदेश मंत्रालय ने अफगान (Afghanistan) राजनयिक को तलब किया है. हेरात में ईरान (Iran) के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसके बाद प्रदर्शनकारियों ने ईरान के राजनयिक मिशनों पर पथराव किया था.
हेरात में आक्रोशित अफगान प्रदर्शनकारियों ने वाणिज्यिक दूतावास पर पत्थर फेंके थे. मंत्रालय ने कहा कि अफगानिस्तान के तालिबान शासकों को दूतावास की सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त करना चाहिए. ईरान ने कहा कि अफगानिस्तान में उसके दूतावासों ने अगली सूचना मिलने तक काम करना बंद कर दिया है. सोमवार को मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खातिबजादेह ने कहा था कि ईरान के दूतावासों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए तालिबान को और अधिक कार्रवाई करने की जरूरत है.
शरणार्थियों का वीडियो सामने आया था
मंगलवार को बाद में ईरान के मिशनों को फिर से खोल दिया गया. इन विरोध प्रदर्शनों से पहले एक वीडियो सामने आया था. जिसमें दावा किया गया कि ईरान के बॉर्डर गार्ड अफगान शरणार्थिकों को परेशान कर रहे हैं. ये साफ नहीं है कि वीडियो में आखिर कितनी सच्चाई है. ईरान के विदेश मंत्रालय और काबुल स्थित उसके दूतावास ने इसे फर्जी करार दिया है और कहा है कि वीडियो के पीछे का मकसद दोनों देशों और लोगों के बीच के ऐतिहासिक रिश्तों को चोट पहुंचाना है.
विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खातिबजादेह ने एक बयान में सोमवार को कहा था, 'दुर्भाग्य से, कुछ वीडियो और टिप्पणी को इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि ईरान और अफगानिस्तान में भय पैदा किया जा सके. ताकि लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा सके. इसलिए दोनों देशों के अधिकारियों को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.' ईरान और अफगानिस्तान 900 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. हालांकि उसने अभी तक यहां की तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है. तालिबान ने बीते साल अगस्त महीने में अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, जिसके बाद यहां की पश्चिम समर्थित सरकार गिर गई. दुनियाभर के देशों ने तालिबान से कहा था कि यहां एक समावेशी सरकार बननी चाहिए, जिसमें सभी धर्म और जाति के लोग और महिलाएं शामिल हों, लेकिन तालिबान ने इस बात को नहीं माना.