रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच ईरान हुआ एक्टिव, आज मॉस्को पहुंचेंगे विदेश मंत्री

यूक्रेन के राष्ट्रपति राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने एक बार फिर NATO को चेताया है.

Update: 2022-03-14 18:45 GMT

यूक्रेन के राष्ट्रपति राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने एक बार फिर NATO को चेताया है, कि अगर अब भी यूक्रेन को 'नो फ्लाई जोन' घोषित नहीं किया तो फिर अगला नंबर NATO का होगा. आज से नॉर्वे में NATO की सबसे बड़ी वॉर एक्सरसाइज शुरू हो गई है. ये युद्ध अभ्यास रूस (Russia Ukraine War) के बॉर्डर पर हो रहा है. इसके अलावा नाटो मुल्कों में भी मिल्ट्री मूवमेंट शुरु हो गया है. वहीं, टर्की ने भी अपनी सबमरीन से मिसाइल टेस्टिंग शुरु कर दी है. जबकि जर्मनी ने सैनिकों का मूवमेंट बढा दिया है.

रूस के बम ने दुनिया को दो हिस्सों में बाट दिया है. रूस के समर्थन चीन भी कर रहा है. अब तो सीधे तौर पर रूस ने चीन से आर्थिक और सैन्य मदद मांगी है. चौंकाने वाली बात ये है कि अब मिडिल ईस्ट कंट्रीज ने रूस पर अमेरिका के सैंक्शंस का सपोर्ट नहीं किया है. तो क्या रूस वर्ल्ड ऑर्डर बदल रहा है? कहा जा रहा है कि अब रूस ने 19 शहरों को टारगेट करने का प्लान बनाया है. अब तक रूस ईस्टर्न इलाकों पर बम गिरा रहा था. लेकिन अब उसने अपनी एयर स्ट्राइक्स का दायरा बढा दिया है. हालांकि अमेरिका ने एक बार फिर नो फ्लाई जोन घोषित करने से इनकार कर दिया है.वहीं, ब्रिटेन के पूर्व आर्मी अफसर ने कहा कि अगर पुतिन को मार दिया गया, तो फिर हजारों लोगों की जानें बच जाएंगी. NATO को इस बारे में सोचना चाहिए. इससे पहले रिपब्लिकन सिनेटर ने भी कहा था कि पुतिन को एसेसिनेट कर देना चाहिए. लेकिन क्या ये इतना आसान है?पुतिन को मारना कोई बच्चों का खेल नहीं. पुतिन की सिक्योरिटी बहुत मजबूत है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब यूक्रेन के प्रेसिडेंट तक कॉन्ट्रैक्ट किलर्स नहीं पहुंच पाए, तो पुतिन की सिक्योरिटी को कैसे पार कर पाएंगे?

खत्म होने के कगार पर मारियुपोल
यूक्रेन में मारियुपोल बिल्कुल खत्म होने के कगार पर है. 24 घंटे में 100 से ज्यादा बम सिर्फ इसी शहर पर गिराए गए हैं. यहां हजारों लोग किसी भी वक्त बेमौत मारे जा सकते हैं. भूख जिंदगियां छीन रही है. रेड क्रॉस ने मारियोपोल के लोगों को बचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर की मांग की है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां 2100 से ज्यादा सिविलियंस मारे गए हैं. फाइनेंशियल टाइम्स ने साफ-साफ लिखा है कि वेस्टर्न यूक्रेन में रूसी हमले का मतलब साफ है कि अब रूस ने NATO को वॉर्निंग सिग्नल भेज दिया है. इसी खबर में ये भी लिखा है कि अमेरिका के मुताबिक, रूस ने अब चीन से मदद भी मांगी है. हालांकि इस क्लेम को रूस ने रिजेक्ट कर दिया है.डेली मिरर की हेडलाइन में पुतिन का मिशन यूरोप दिखाया गया है. इसका मतलब है कि अब रूस का अगला निशाना वेस्टर्न कंट्रीज हैं. डेली एक्सप्रेस ने छापा है कि पुतिन के मिसाइल अटैक ने यूक्रेन की जंग को NATO बॉर्डर पर लाकर खडा कर दिया है. इसी तरह की हेडलाइन द टाइम्स की तरफ से भी छापी गई है. इस अखबार ने तो पोलेंड बॉर्डर के पास मिसाइल अटैक का मैप भी जारी किया है. डेली मिरर की ही तरह इंडिपेंडेट न्यूज ने भी WAR AT NATO BORDER की तरफ इशारा किया है. द सन ने पुतिन के इस अटैक को ब्लिट्जक्रीग का नाम दिया. यानी वो टेकनीक जिसके जरिए वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी ने रातों रात पोलैंड पर कब्जा कर लिया था.
यूक्रेन को लेकर रूस और NATO देशों की तनातनी बढ़ रही है. अमेरिका भी लगातार रूस की घेरेबंदी कर रहा है. लेकिन इस बीच अचानक से ईरान एक्टिव हो गया है. तेहरान से खबर आई है कि 15 मार्च यानी कल मंगलवार को ईरान के विदेश मंत्री मॉस्को पहुंचेंगे. यूक्रेन युद्ध के बीच मॉस्को में ईरान और रूस की बड़ी बैठक होगी. सबसे बड़ी बात ये है कि ईरान और रूस परमाणु समझौते पर बात करेंगे. इस खबर के आने के साथ ही एक बार फिर न्यूक्लियर पावर वाले देशों के साथ ही पूरी दुनिया की नजर कल की इस मीटिंग पर टिक गई हैं. सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या रूस ईरान को न्यूक्लियर पावर वाला देश बनाने वाला है? क्या रूस ईरान को न्यूक्लियर हथियारों की तकनीक ट्रांसफर कर सकता है? और सबसे बड़ा सवाल ये है कि मास्को में होने वाली इस मीटिंग से क्या ईरान-अमेरिका के बीच होने जा रहा परमाणु समझौता प्रभावित होगा?

ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना है मकसद?
साल 2017 में अमेरिका ईरान के परमाणु समझौते से अलग हो गया था. हालांकि बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद इस समझौते पर फिर से बात शुरू हुई. तेहरान ने अमेरिका के सामने जो शर्तें रखी हैं. अगर अमेरिका उसे स्वीकार कर लेता है तो ईरान परमाणु समझौता जल्द संभव हैं. ईरान ने ये भी कहा कि इस समझौते को लेकर रूस का योगदान अब तक पॉजिटिव रहा है. ऐसे में अचानक परमाणु समझौते पर ईरान के विदेश मंत्री के मास्को जाने की खबर बहुत बड़ी है. क्योंकि 2015 का समझौता अगर फिर से लागू होता है तो ईरान परमाणु हथियार नहीं बना सकेगा. इस समझौते का मकसद ही ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना था.
समझौते पर सिग्नेचर करने वाले देशों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन के अलावा जर्मनी भी था. लेकिन 2017 में अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया और ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए. जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद, इस समझौते पर पिछले साल फिर से बातचीत शुरू हुई थी. किसी भी वक्त इस समझौते पर मुहर लगने की उम्मीद थी. हालांकि ईरान ने इराक के इरबिल में अमेरिकी दूतावास पर 12 मिसाइलें दागकर सबको चौंका दिया.
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