1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिससे तालिबान से टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई है। पाकिस्तान की नए अफगानिस्तान से मिलने वाली चुनौतियां के बिल्कुल शुरुआती संकेत मिलना शुरू हुए हैं। यह संभव है कि ये घटनाएं महज अपवाद ही हों लेकिन देशों के बीच संबंध अक्सर, मामूली सी दिखने वाली घटनाओं के धीरे-धीरे विकराल रूप लेने से अनियंत्रित हो जाते हैं।
2- उन्होंने कहा कि तालिबान फोर्सज ने पूर्वी नंगरहार के गुश्ता जिले में पाकिस्तान द्वारा लगाई गई कंटीली बाड़ को उखाड़ फेंका है। कंटीली तारों को उखाड़ कर तालिबान के लड़ाके इन्हें लेकर अपने कैंप लौट गए। प्रो पंत ने कहा मेरी दृष्टि में पाकिस्तान और तालिबान हुकूमत के बीच मुश्किलात होंगी। इस घटना को तालिबान समर्थकों ने सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया और पाकिस्तानी सेना के प्रति जैसी भाषा इस्तेमाल हुई है वह भी मुनासिब नहीं थी।
3- गौरतलब है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा को डूरंड लाइन के नाम से जाना जाता है। अफगानिस्तान ने इस सीमा रेखा को कभी भी मान्यता नहीं दी है। ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मजबूत करने के लिए 1893 में काबुल के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी। यह करार काबुल में ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मार्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हुआ था। लेकिन काबुल पर जो चाहे राज करे, डूरंड लाइन पर सबकी सहमति नहीं है। कोई अफगानी इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता।
4- प्रो पंत ने कहा कि अफगानिस्तान की किसी भी सरकार ने डूरंड लाइन को स्वीकार नहीं किया है। काबुल का कहना है कि यह सीमा रेखा अंग्रेजों ने जबरन बनाई थी। वर्ष 1923 में किंग अमानुल्ला से लेकर मौजूदा हुकूमत तक डूरंड लाइन के बारे में धारणा यही है। उन्होंने कहा कि तालिबान का यह विरोध कुछ नया नहीं किया है। पिछली बार जब तालिबान सत्ता में थे तब भी वे पाकिस्तानी समर्थन पर ही निर्भर थे। उस समय भी नवाज शरीफ सरकार ने डूरंड लाइन को अंतरराष्ट्रीय बार्डर बनाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन बात नहीं बन सकी।
तालिबान और पाकिस्तान की दोस्ती
11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद तालिबान की पहली सरकार को अमेरिका ने उखाड़ फेंका था। अमेरिका और नाटो सेना के दबाव में तालिबान के लड़ाके और उसके नेता तितर-बितर हो गए थे। इनमें से कई नेताओं ने पाकिस्तान में शरण ली थी। उस वक्त भी पाकिस्तान, अमेरिका का एक सहयोगी देश था, लेकिन यह सत्य है कि तालिबान और उसके बड़े नेता बलूचिस्तान और वजीरिस्तान में रह रहे थे। तालिबान के हर फैसले को अमली जामा पहनाने वाली ताकतकवर क्वेटा शूरा भी बलूचिस्तान से ही काम कर रही थी। तालिबान के कई नेताओं ने कथित तौर पर पाकिस्तानी शहर क्वेटा में शरण ली थी, जहां से उन्होंने तालिबान का संचालन किया। इसे क्वेटा शूरा कहा गया था। हालांकि, पाकिस्तान इसके अस्तित्व से इंकार करता रहा है।