काबुल में भारत फिर से दूतावास खोलने पर कर रहा विचार, लेकिन तालिबान शासन को नहीं मिलेगी मान्यता

अफगानिस्तान में पिछले साल तालिबान के सत्ता पर कब्जा जमाने के दौरान भारत समेत ज्यादातर देशों ने अपना दूतावास बंद कर दिया और अपने-अपने कर्मचारियों को वापस देश बुला लिया था.

Update: 2022-05-17 05:42 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान में पिछले साल तालिबान (Taliban Rule) के सत्ता पर कब्जा जमाने के दौरान भारत समेत ज्यादातर देशों ने अपना दूतावास (Indian Embassy) बंद कर दिया और अपने-अपने कर्मचारियों को वापस देश बुला लिया था. लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि भारत जल्द ही अफगानिस्तान में अपना दूतावास फिर से खोलने की संभावना तलाश रहा है, लेकिन अगर वह ऐसा करता है तो शीर्ष स्तर के राजनयिक प्रतिनिधित्व के बिना ही दूतावास खोलेगा.

सुरक्षा अधिकारियों की एक टीम ने फरवरी में जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए राजधानी काबुल के लिए उड़ान भरी थी. मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि फिर से दूतावास खोलने की योजना में वरिष्ठ स्तर पर राजनयिकों को भेजना शामिल नहीं है. दूतावास केवल संपर्क उद्देश्यों के लिए कर्मियों के साथ काम करेगा जो कांसुलर सर्विस (consular services) तक विस्तारित हो सकते हैं. इसका मतलब यह होगा कि तालिबान शासन की मान्यता नहीं दी जाएगी.
पिछले साल अगस्त में भारत ने बंद कर दिए थे दूतावास
अफगानिस्तान पर पिछले साल तालिबान के कब्जे के दो दिन बाद 17 अगस्त को भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया. तब देश में यह बहस का विषय बना हुआ था कि क्या यह सही निर्णय था. सुरक्षा प्रतिष्ठान और विदेश मंत्रालय के कुछ वर्गों ने यह साफ किया कि भारतीय नागरिकों का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था. साथ ही उनकी ओर से 1998 में तालिबान द्वारा ईरान के मजार-ए-शरीफ वाणिज्य दूतावास में ईरानी राजनयिकों का अपहरण की घटना की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि ऐसा नहीं करने से भारतीय कर्मचारियों की जिंदगी को खतरे में डाल देने जैसा होता.
अन्य लोगों ने भी सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मिशन को बंद करने से काबुल में एक भी प्रतिनिधित्व नहीं होने वाले क्षेत्रीय देशों में भारत अकेला रह गया है. सोमवार को, शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation) के क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना समूह की दिल्ली में बैठक हुई, जिसमें अफगानिस्तान का मुद्दा एजेंडे में शीर्ष पर था. भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को अभी मान्यता नहीं दी है और वह काबुल में सच्चे अर्थो में एक समावेशी सरकार के गठन की हिमायत करता रहा है. नई दिल्ली ने इस बात पर जोर दिया है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
यूरोपीय संघ समेत 16 देशों ने खोले दूतावास
एससीओ बैठक का मेजबान भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने अभी तक काबुल में अपने मिशन को फिर से नहीं खोला है. काबुल में फिर से लौटने के विचार में दिल्ली के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारक है. यूरोपीय संघ सहित 16 देशों ने अपने दूतावास फिर से खोल दिए हैं, जिनकी मानवीय सहायता से संबंधित कार्य की देखरेख के लिए एक छोटी उपस्थिति है. माना जा रहा है कि भारत को भी अपने हित में ऐसा करने की जरूरत है.
पिछले साल तालिबान के अधिग्रहण की अराजकता के दौरान भी पाकिस्तान, चीनी और रूसी और ईरानी मिशन बंद नहीं हुए.
इन देशों ने तालिबान शासित अफगानिस्तान में अपने लिए महत्वपूर्ण भूमिकाएं तलाश रही हैं और खुद को जल्दी से स्थापित करना भी शुरू कर दिया. सभी पांच मध्य एशियाई देशों के तालिबान शासन के साथ राजनयिक संबंध बने हुए हैं. अमेरिका ने अप्रैल में कतर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे वह अपने हितों के लिए "संरक्षण शक्ति" बन गया. यूएई और सऊदी अरब भी लौट आए हैं. लेकिन अभी तक किसी ने भी तालिबान को अफगानिस्तान की सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी है.
मध्य एशियाई गणराज्यों तक पहुंच के लिए यह बेहद जरूरी
मानवीय मदद पहुंचाने के अलावा मध्य एशियाई गणराज्यों के तक संपर्क बनाए रखने के लिए अफगानिस्तान के साथ रिश्ते जरुरी हैं. फरवरी में काबुल का दौरा करने वाली भारतीय सुरक्षा टीम ने तालिबान से यात्रा मंजूरी मांगी होगी, और सूत्रों के अनुसार, तालिबान सरकार के अधिकारियों से मुलाकात भी हुई. सूत्रों ने कहा कि दूतावास को फिर से खोलने में दूतावास और वहां तैनात कर्मियों की सुरक्षा इस योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता होगी.
हाल के महीनों में तालिबान की ओर से एक से अधिक बार कहा जा चुका है कि वे भारत को अपने दूतावास को फिर से खोलने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करेंगे, भारत इस मोर्चे पर तालिबान शासन से ठोस गारंटी की तलाश करेगा.
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