भारत ने संयुक्त राष्ट्र को चेताया, मध्य एशिया क्षेत्र पर पड़ेगा अफगानिस्तान के घटनाक्रम का व्यापक असर
अफगानिस्तान के घटनाक्रम को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र को एक बार फिर चेताया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान के घटनाक्रम को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र को एक बार फिर चेताया है। भारतीय दूत ने यूएन में कहा कि अफगानिस्तान के हालात का पश्चिम एशियाई क्षेत्र पर व्यापक रूप से असर पड़ेगा।
दरअसल, अफगानिस्तान में अगस्त 2021 में 20 साल बाद फिर तालिबान का कब्जा हो गया है। यहां से अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद काबिज हुई तालिबानी सरकार को अभी विश्व के कई देशों ने मान्यता नहीं दी है। कई पाबंदियों के कारण देश में आर्थिक व सामाजिक संकट के साथ आतंकवाद का खतरा पैदा हो गया है।
भारत के स्थाई दूत टीएस तिरुमूर्ति ने बुधवार को सुरक्षा परिषद का ध्यान अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद व मादक पदार्थों की तस्करी के बढ़ते खतरे की ओर दिलाया। तिरुमूर्ति ने यह बात 'संयुक्त राष्ट्र और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के बीच सहयोग (सीएसटीओ/CSTO) पर सुरक्षा परिषद में बहस में भाग लेते हुए कही। सीएसटीओ में आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं। यह संगठन अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय संज्ञान ले
भारतीय दूत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि वह अफगानिस्तान के घटनाक्रम का संज्ञान ले। इस घटनाक्रम के कारण मध्य एशियाई देशों पर असर पड़ेगा। क्षेत्रीय व उपक्षेत्रीय संगठनों के लिए एक बार फिर वक्त है कि वे अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए अपनी अहम भूमिका निभाएं। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक यूएन व क्षेत्रीय व उपक्षेत्रीय संगठनों के साथ सक्रिय मदद करने को तैयार है।
अफगानिस्तान में हालात तेजी से बिगड़े
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में बीते कुछ दिनों में हालात तेजी से बिगड़े हैं। मध्य अगस्त में काबुल पर सुन्नी पख्तुन गुट के नियंत्रण के बाद अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों, अफगानिस्तान की संपत्तियां जब्त होने व विदेशी मदद बंद होने का व्यापक असर हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने का इंतजार कर रहा तालिबान अमेरिका से बार बार आग्रह कर रहा है कि वह जब्त अफगान संपत्तियों को मुक्त करे।
अगस्त 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव संख्या 2593 पारित करते हुए कहा था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश पर हमले के खतरे के तौर पर नहीं होना चाहिए। यह प्रस्ताव 15 सदस्यीय परिषद में 13 मतों से पारित हुआ था। रूस व चीन प्रस्ताव पर मतदान के वक्त अनुपस्थित रहे थे।