समिति ने कहा कि उसे हूती विद्रोहियों द्वारा भर्ती किये गए 1,406 बच्चों की सूची मिली है, जो 2020 में लड़ाई में मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 562 बच्चों की एक और सूची मिली है, जिनकी मौत जनवरी से मई 2021 के बीच हुई है.आपको बदा दें संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबू धाबी में कुछ दिनों पहले यमन के हूती विद्रोहियों ने संदिग्ध ड्रोन हमला किया था. इस विस्फोटक हमलों में तीन लोगों की मौत हो गई थी. अबू धाबी के औद्योगिक शहर में एडीएनओसी के भंडारण टैंक के पास तीन पेट्रोलियम परिवहन टैंकरों में आग लगने से दो भारतीय और एक पाकिस्तानी नागरिक की मौत हुई थी. छह अन्य घायल हो गए थे.
हूती आंदोलन का कहा जाता है अल्लाह
हूती आंदोलन को आधिकारिक तौर पर अंसार अल्लाह कहा जाता है. बोलचाल की भाषा में यह हूतियों एक इस्लामी राजनीतिक एवं सशस्त्र आंदोलन है जो 1990 के दशक में उत्तरी यमन में सादा से उभरा था. हूती आंदोलन मुख्य रूप से जैदी शिया बल है, जिसका नेतृत्व बड़े पैमाने पर हूती जनजाति करती है. यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है. हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं.
हूतियों का यमन के सुन्नी मुसलमानों के साथ खराब संबंध
हूतियों का यमन के सुन्नी मुसलमानों के साथ खराब संबंध का इतिहास रहा है. इस आंदोलन ने सुन्नियों के साथ भेदभाव किया. लेकिन साथ ही उन्हें भर्ती भी किया है और उनके साथ गठबंधन भी किया है. हुसैन बद्रेद्दीन अल-हूती के नेतृत्व में, समूह यमनी के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के विरोध के रूप में उभरा था, जिस पर उन्होंने बड़े पैमाने पर वित्तीय भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और सऊदी अरब और अमेरिका द्वारा समर्थित होने की आलोचना की.
2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक यमन के राष्ट्रपति सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया. साल 2011 में अरब देशों के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ. हालांकि तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने. उम्मीदों के बावजूद हूती उनसे भी खुश नहीं हुए और फिर से विद्रोह छोड़ दिया और उन्हें राष्ट्रपति पद से हटाकर राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया.
सुन्नी मुसलमानों में डर का माहौल
कहा जाता है कि जब हूती यमन की सत्ता पर काबिज हो गए तो पड़ोसी देशों के सुन्नी मुसलमानों में डर का माहौल फैल गया. सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई इससे घबरा गए. जिसके बाद वे मदद के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के पास पहुंचे. पश्चिमी देशों की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और इन देशों ने सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया. इसका असर है कि यमन गृह युद्ध का मैदान बन चुका है.