पाकिस्तान को चाहिए निवेश पाकिस्तान चाहता है कि चीन उसके यहां कपड़ा उद्योग, जूता-चप्पल उद्योग, दवा उद्योग, फर्नीचर, कृषि, वाहन निर्माण और सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश करे. अखबार ने आगे लिखा है, "उम्मीद है कि सरकार चीन की 75 कंपनियों से कहेगी कि वह उन्हें मध्य पूर्व, अफ्रीका और पूरी दुनिया के बाजार तक पहुंच बनाने का मौका देगी और सामान की ढुलाई पर छूट दी जाएगी" पाकिस्तान आर्थिक मदद और सहयोग के लिए चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर (सीपैक) के रूप में पहले ही पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है. पाकिस्तान ने सीपैक के तहत ऊर्जा और बुनियादी ढांचे से जुड़ी कई परियोजनाओं को पूरा कर लिया है. (पढ़ेंः गिलगित बल्तिस्तान: पाकिस्तान ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी? " दुनिया " DW " 16.11.2020) अर्थशास्त्री कैसर बंगाली मानते हैं कि पाकिस्तान अब वित्तीय और आर्थिक मदद के लिए चीन पर 100 फीसदी निर्भर है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि यह चीन पर पाकिस्तान की निर्भरता ही है कि इमरान खान कर्ज लेने के लिए चीन का दौरा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "कर्ज देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की शर्तें सार्वजनिक हो गई हैं जबकि चीन कर्ज और अन्य परियोजनाओं से जुड़ा ब्यौरा गोपनीय रखता है, जिससे संदेह पैदा होता है" निवेश से नाराज लोग पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में बहुत से लोग चीन के निवेश से नाराज हैं. उनका कहना है कि इससे स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं होगा. इसी इलाके में ग्वादर बंदरगाह है जिसे चीन चला रहा है. ग्वादर के लोगों ने हाल में अपने इलाके में पीने के पानी की कमी के खिलाफ प्रदर्शन किया था.
उन्होंने कहा कि चीनी निवेश उन्हें पीने का साफ पानी हासिल करने में मदद नहीं कर रहा है और ना ही प्रांत को कोई और फायदा हो रहा है. कुछ बलोच राष्ट्रवादियों का कहना है कि अगर पाकिस्तान चीन का कर्ज नहीं चुका पाया तो चीन बहुत कम दामों में इस प्रांत में मौजूद खानों पर नियंत्रण हासिल करना चाहेगा, या फिर पूरी तरह बंदरगाह को कब्जा लेगा. बंगाली मानते हैं कि इस तरह के संदेह चीनी विकास परियोजनाओं और कर्ज की शर्तों को गोपनीय रखने के पैदा होते हैं. पश्चिम से खराब रिश्ते शीत युद्ध के दौरान अमेरिका पाकिस्तान का मुख्य सहयोगी था. वही उसे हथियार और सैन्य प्रशिक्षण देता रहा. कम्युनिज्म का मुकाबला करने के लिए भी पाकिस्तान पश्चिमी देशों के गठबंधन में शामिल रहा. अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्ते 1990 के दशक में तनावपूर्ण रहे. लेकिन अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसका अहम सहयोगी बन गया. हालांकि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद पाकिस्तान अब फिर रणनीतिक साझेदारी के लिए पूर्व की तरफ देख रहा है. कराची में रहने वाली विशेष मामलों की जानकार तलत आयशा विजारत कहती हैं कि पाकिस्तान चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है क्योंकि पश्चिमी देश उसके अच्छे मित्र साबित नहीं हुए. उनके मुताबिक पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान को अकेला छोड़ दिया और भारत के साथ नजदीकियां कायम कर ली, जो पाकिस्तान और चीन, दोनों देशों का दुश्मन है. वह कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जब लोन की पेशकश की, तो उसके साथ बहुत सारी शर्तें जुड़ी थी.
इतना ही नहीं, पश्चिमी वित्तीय संस्थाएं सीपैक से जुड़ा ब्यौरा भी जानना चाहती हैं. विजारत का दावा है कि चीन अपने कर्जे के साथ कोई शर्तें नहीं जोड़ता. उनके मुताबिक, "उसने सीपैक में पहले ही अरबों डॉलर का निवेश किया है, लेकिन उसके साथ कोई शर्तें नहीं जोड़ी हैं" वह कहती हैं कि अफगानिस्तान से निकलने के बाद अमेरिका की इस क्षेत्र में कोई दिलचस्पी नहीं बची है. ऐसे में पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, अफगानिस्तान को स्थिर करने, क्षेत्र में अपना व्यापार बढ़ाने और अपने रक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए चीन की जरूरत है. हिंद महासागर तक पहुंच विजारात की राय है कि चीन की मदद की एवज में पाकिस्तान उसे हिंद महासागर तक पहुंच मुहैया करा सकता है, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसका समर्थन कर सकता है और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए सबसे छोटा रास्ता मुहैया करा सकता है. बहुत से मानवाधिकार संगठन चीन पर मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघन का आरोप लगाते हैं,खासतौर से शिनचियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों के खिलाफ. लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों इस मुद्दे पर चीन का समर्थन किया. साथ ही उन्होंने पश्चिमी देशों पर आरोप लगाया कि वे उइगुर मुसलमानों और कश्मीरी मुसलमानों को लेकर दोहरा रवैया अपनाते हैं. वहीं पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन के सह अध्यक्ष असद बट ने डीडब्ल्यू को बताया कि इससे इमरान खान का पाखंड सामने आता है, क्योंकि इस बारे में लगातार रिपोर्टें सामने आ रही हैं कि चीन किस तरह उइगुर मुसलमानों को वह सब खाने को मजबूर कर रहा है जिसकी इस्लाम में सख्त मनाही है और उसने लगभग दस लाख लोगों को कैद कर रखा है. वह कहते हैं कि इमरान खान ने कभी चीन के अत्याचारों के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा है. लेकिन कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चीन इस इलाके को आधुनिक बनाना चाहता है और हमेशा से कुछ लोगों को इस तरह का विकास पसंद नहीं है..