इमरान खान वोट बैंक के लिए आतंकी संगठनों के सहारे, जानिए टीएलपी से प्रतिबंध हटाने के पीछे का खेल

पाकिस्तानी सरकार और चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक-पाकिस्तान यानी टीएलपी के बीच हाल ही में हुआ समझौता पर्यवेक्षकों की नजर में देश में आतंकवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद का ही हिस्सा है।

Update: 2021-11-15 02:56 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तानी सरकार और चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक-पाकिस्तान यानी टीएलपी के बीच हाल ही में हुआ समझौता पर्यवेक्षकों की नजर में देश में आतंकवादियों को मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद का ही हिस्सा है। पाकिस्तान में अक्सर मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां आतंकी समूहों से गठबंधन कर लेती हैं और अपने राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, ये गठबंध लंबे समय में नुकसान का कारण बनते हैं।

अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक पॉल सैंटिलन ने जर्नल ऑफ कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन के 2015 के अंक में लिखा है, इन अदूरदर्शी रणनीतियों ने हमेशा लंबे समय तक नुकसान पहुंचाया है।पाकिस्तान के लिए यह पहली बार नहीं जब मौजूदा सरकार और टीएलपी के बीच गठबंधन हुआ हो। टीएलपी का गठन साल 2015 में हुआ था। यह चरमपंथी संगठन खुद को ईशनिंदा कानून का सबसे बड़ा रखवाला बताता है। कई मौकों पर इस संगठन ने सड़कों पर अपनी ताकत दिखाई है और यह भी साबित करने की कोशिश की है कि वह बड़ी राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके अलावा अखबार ने लिखा है कि मुख्यधारा में शामिल करने के इस प्रोजेक्ट से कुछ आतंकी और इस्लामी संगठनों को चुनाव में शामिल करने में सफलता जरूर मिली है लेकिन इस प्रोजेक्ट के समर्थक से ज्यादा आलोचक हैं।
सैंटीलन ने इस बात पर जोर दिया है कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां तब ही आतंकी संगठनों से पूरी तरह रिश्ता तोड़ सकती है, जब संसद में उनके पास पूर्ण बहुमत हो, क्योंकि तब पार्टी आतंकी संगठनों के साथ अपने गठबंधन को जारी रखने के लिए तैयारी नहीं होगी, बल्कि इसकी बजाय वह इन्हें एक खतरे के रूप में देखना शुरू कर देगी।
यही कारण है कि मौजूदा पीटीआई यानी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार ने इस साल की शुरुआत में टीएलपी को प्रतिबंधित किया। साल 2018 के चुनाव से पहले टीएलपी को पीएमएल-एन के वोटों को हड़पने वाले के रूप में पीटीआई ने ही बढ़ावा दिया था। टीएलपी ने पीटीआई के लिए वह काम किया भी और पार्टी चुनाव में जीती। लेकिन 2020 आते-आते, टीएलपी ने पीटीआई के वोटों में भी सेंध लगानी शुरू कर दी, जो उपचुनावों में देखने को मिला।


बता दें कि बीते हफ्ते चरमपंथी संगठन तहरीक ए लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) द्वारा शुरू किया गया विरोध प्रदर्शन वापस लेने के बदले पाकिस्तान की सरकार ने टीएलपी पर से प्रतिबंध हटा लिया था। सरकार के विरोध में हुए प्रदर्शन में 20 से ज्यादा लोगों की जान गई थी जिनमें आधी संख्या पुलिसकर्मियों की थी। फ्रांस में प्रकाशित हुए ईशनिंदा से संबंधित कार्टून के मुद्दे पर टीएलपी ने फ्रांसीसी राजदूत को वापस भेजने की मांग की थी और हिंसक प्रदर्शन किया था जिसके बाद इस साल अप्रैल में संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।


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