इसके साथ ही रूस में ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों पर खासतौर से बहुत बुरा असर पड़ेगा. भले ही यह उपाय पुतिन को जंग से दूर करने की दिशा में असरदार माना जा रहा हो, लेकिन जर्मन अखबार हांडेल्सब्लाट ने सरकार के सूत्रों के हवाले से बताया कि इस उपाय पर फिलहाल विचार नहीं हो रहा है. अखबार का कहना है कि इसकी बजाय रूसी बैंकों पर प्रतिबंध लगाए जा सकता है. रूसी बैंकों पर निशाना हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस उपाय को भी खारिज कर दिया गया है क्योंकि इससे वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता पैदा होगी और वैकल्पिक भुगतान तंत्र को विकसित करने के लिए पहल होगी. पश्चिमी देश इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते. रूस और चीन ने हालांकि पहले ही अपने लिए स्विफ्ट का विकल्प तैयार कर लिया है, हालांकि इसमें स्विफ्ट की तरह पूरी दुनिया अभी शामिल नहीं है. वहीं व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने हांडेल्सब्लाट की रिपोर्ट को खारिज किया है. प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "ऐसा कोई विकल्प टेबल पर नहीं है. अगर रूस हमला करता है तो इसके गंभीर नतीजे क्या होंगे, इस पर हम अपने यूरोपीय सहयोगियों से चर्चा कर रहे हैं" अखबार का कहना है कि रूसी बैंकों को इस बार कैसे निशाना बनाया जाएगा, इस बारे में बहुत कम ही जानकारी सामने आई है.
हालांकि जर्मनी इस तरह की पाबंदियों से बचना चाहता है क्योंकि तब यूरोप के लिए रूस से आयात होने वाले तेल और गैस के लिए भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा. उत्तर कोरिया की तरह अलग थलग मंगलवार को फाइनेंशियल टाइम्स ने खबर दी कि जिस तरह के प्रतिबंध उत्तर कोरिया और ईरान पर लगाए गए हैं, वही रूस पर भी लग सकते हैं यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था से रूस को एक तरह से बाहर कर देना. 2012 में ईरान उस वक्त तक का दुनिया का पहला देश बना जिसे स्विफ्ट से बाहर किया गया. यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के तहत हुआ था. यूरोप और अमेरिका 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद रूस के बैंकों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. इन प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस की हथियार और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों की यूरोपीय और अमेरिकी वित्तीय बाजारों तक पहुंच को सीमित करना था. हालांकि जर्मनी के कारोबारी नेता रूस पर लगे प्रतिबंधों को कम करने की मांग कर रहे है क्योंकि अगर और प्रतिबंध लगाए गए तो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी जर्मनी का भी बहुत नुकसान होगा. पाइपलाइन पर सहमति उदाहरण के लिए रूस और जर्मनी के बीच बाल्टिक सागर से गुजरने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन का निर्माण पिछले साल पूरा हो गया. हालांकि अभी तक इसके काम शुरू करने के लिए जर्मन प्रशासन से मंजूरी नहीं मिली है. पाइपलाइन और ज्यादा बड़ी मात्रा में रूसी गैस को पश्चिमी यूरोप लेकर आएगी.
हालांकि यूक्रेन और अमेरिका समेत इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले देश कह रहे हैं कि इससे यूरोप और ज्यादा रूस की ऊर्जा पर निर्भर हो जाएगा. यूरोपीय संघ और अमेरिका जर्मनी पर नॉर्ड स्ट्रीम 2 की मंजूरी को रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं. इस कदम को रूस पर प्रतिबंधों के रूप में पेश किया जा रहा है. जर्मनी के विदेश मामलों की कमेटी के चेयरमैन मिषाएल रोथ ने मंगलवार को एआरडी टीवी चैनल से कहा कि पाइपलाइन का इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के खिलाफ करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. रोथ का कहना है, "अगर हम सचमुच प्रतिबंध लगाने पर आते हैं और मुझे अब भी उम्मीद है कि हम इससे बच सकते हैं तो हम उन चीजों को खारिज नहीं कर सकते जिनकी मांग यूरोपीय संघ में हमारे सहयोगी कर रहे हैं" जर्मनी की चुप्पी अंतरराष्ट्रीय संबंधों की यूरोपीय परिषद के रफाएल लॉस ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि जर्मनी ने रूस को रोकने में यूक्रेन की मदद की दिशा में बहुत कम ही काम किया है. लॉस ने कहा, "पिछले कुछ दिनों में जो इस मुद्दे पर सारी बातचीत हुई है उसमें उन्हीं मुद्दों की चर्चा हुई है जो जर्मनी बातचीत की मेज पर नहीं रखना चाहता, जैसे कि नॉर्ड स्ट्रीम 2, हथियार देना और स्विफ्ट" लॉस ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि यूरोप में यह धारणा बन रही है कि रूस और अमेरिका में बातचीत यूरोपीय नेताओं की अनदेखी करके हो रही है. उन्होंने याद दिलाया कि यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल इस बात से कितने खफा थे कि यूरोपीय संघ इस मामले में कोई अर्थपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है. इस बीच रूस के वित्त मंत्री ने पिछले हफ्ते चेतावनी दी कि और प्रतिबंध दुखद होंगे लेकिन उनका देश उन्हें सह लेगा. उनका कहना है, "अगर यह खतरा आता है तो मेरे ख्याल से हमारी वित्तीय संस्थाएं इसे संभाल लेंगी" र