ग्लासगो में जारी जलवायु सम्मेलन में दुनिया के सौ देशों ने एक प्रतिज्ञा ली, जानें भारत क्यों नहीं हुआ तैयार?

अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की अगुवाई में आगे बढ़ा है।

Update: 2021-11-03 07:48 GMT

ग्लासगो में जारी जलवायु सम्मेलन में मंगलवार को दुनिया के सौ देशों ने एक प्रतिज्ञा ली। दुनिया के 100 देशों ने 2030 तक मीथेन का उत्सर्जन 30 प्रतिशत कम करने का वचन लिया है। इन देशों ने वचन लिया कि वे मीथेन गैस का उत्सर्जन 2030 तक एक तिहाई कर देंगे। इससे पृथ्वी का तापमान कम रखने में मदद मिलेगी। हालांकि, भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया और रूस इनमें शामिल नहीं हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े उत्सर्जक देश तो कसम खाने वालों में शामिल ही नहीं हैं। इसके साथ ही 2030 तक जंगलों की कटाई रोकने और वनों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए भी एक और प्रतिज्ञा हुई। बता दें कि कान्फ्रेंस के पहले दिन भारत ने फाइव प्वाइंट क्लाइमेट एजेंडा (Five Point Climate Agenda) पेश किया था, जिसने सम्मेलन को पहले दिन आवश्यक गति प्रदान की थी।
क्यों खतरनाक है मीथेन गैस उत्सर्जन?
मीथेन एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है, जोकि कार्बन डाइ ऑक्साइड (Carbon Dioxide) के मुकाबले धरती को 80 गुना ज्यादा गर्म करने की क्षमता रखती है। इसके बावजूद कि मीथेन गैस (Methane Gas) वातावरण में बहुत कम समय तक रह पाती है।
कार्बन डाईऑक्साइड के बाद मीथेन ही ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार है। हालांकि, इसकी उम्र कम होती है, लेकिन 100 साल की अवधि में यह कार्बन डाई आक्साइड से 29 गुना ज्यादा असरकारी होती है और 20 वर्ष की अवधि में इसका असर 82 गुना ज्यादा होता है। आठ लाख साल में मीथेन का उत्सर्जन इस वक्त सबसे अधिक है। मीथेन गैस के उत्सर्जन में कमी होने से तापमान में हो रही वृद्धि पर फौरन असर होगा। इससे पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ना बढ़ने देने का लक्ष्य हासिल करने में मिलेगी।
मीथेन उत्सर्जन के लिए सबसे बड़ा जिम्मा कृषि क्षेत्र पर है। उसके बाद तेल और गैस उद्योग का नंबर आता है और इसमें कटौती ही उत्सर्जन को सबसे तेजी से कम करने में सक्षम है. उत्पादन और परिवहन के दौरान अगर तेल और गैस उद्योग में गैस लीक को काबू किया जा सके तो बड़ा असर हो सकता है।
भारत ने क्यों नहीं किया हस्ताक्षर?
मीथेन गैस के उत्सर्जन के दो मुख्य स्त्रोत कृषि और पशुपालन है। ऐसे में भारत जैसे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए यह बहुत ही संवेदनशील मसला है। इसी तरह मीथेन के सबसे बड़े उत्पादकों रूस और चीन ने भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है। हालांकि, चीन और रूस ने वनों की कटाई रोकने वाले प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया है। ध्यान रखने वाली बात ये है कि क्लाइमेट समिट में इस तरह के समझौते होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन पहले हुए समझौतों ने कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं दिए हैं। कम से कम जंगलों की कटाई रोकने से जुड़े समझौतों ने पहले भी कई सारे प्रस्ताव और गठबंधन हुए हैं। हालांकि, मीथेन के उत्सर्जन में कटौती का प्रस्ताव अपनी तरह का पहला है, जोकि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की अगुवाई में आगे बढ़ा है।


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