अफगान स्कूलों में 2 महीने बाद लौटीं छात्राएं, संख्या बढ़ने की उम्मीद
अफगानिस्तान के तीन प्रांतों में छात्राओं ने दो माह के अंतराल के बाद फिर स्कूल जाना शुरू कर दिया है।
अफगानिस्तान के तीन प्रांतों में छात्राओं ने दो माह के अंतराल के बाद फिर स्कूल जाना शुरू कर दिया है। शिक्षा विभाग के प्रमुख जलील सैयद खिली ने बताया, कुंदुज, बल्ख और सर-ए-पुल प्रांतों में छात्राओं के स्कूल फिर खोल दिए गए हैं। उन्होंने कहा, छात्र और छात्राओं के स्कूल अलग कर दिए गए हैं। बता दें कि तालिबान के कब्जे के बाद छात्राओं के स्कूल जाने पर पाबंदी लग गई थी।
जलील सैयद खिली ने बताया कि स्कूल आने की इजाजत मिलने से छात्राएं काफी खुश हैं। बल्ख की राजधानी मजार-ए-शरीफ में 4,600 से अधिक छात्र और 162 शिक्षक हैं। यहां एक छात्रा सुल्तान रजिया ने कहा, 'शुरुआत में स्कूल में छात्राओं की संख्या कम थी लेकिन अब संख्या बढ़ रही है।'
शुरू में लड़कों के ही स्कूल खोलने की थी अनुमति
बल्ख शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, प्रांत में करीब 50,000 छात्रों के साथ 600 से अधिक स्कूल सक्रिय हैं। पिछले महीने, तालिबान द्वारा नियुक्त शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की थी कि केवल लड़कों के स्कूल फिर से खुलेंगे और केवल पुरुष शिक्षक ही अपनी नौकरी फिर से शुरू कर सकते हैं। मंत्रालय ने हालांकि, शिक्षिकाओं या लड़कियों के स्कूल लौटने के बारे में कुछ नहीं कहा था।
शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान समय में अफगानिस्तान में 14,098 स्कूल संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें से 4,932 स्कूल में 10-12 ग्रेड के छात्र हैं, 3,781 में ग्रेड 7-9 और 5,385 में ग्रेड 1-6 के छात्र हैं।
नीति-रूपरेखा बनाने की जरूरत
आंकड़ों के अनुसार, कुल स्कूलों में से ग्रेड 10-12 में 28 प्रतिशत, 7-9 में 15.5 प्रतिशत और ग्रेड 1-6 में 13.5% गर्ल्स स्कूल हैं। संस्कृति और सूचना मंत्रालय के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य सईद खोस्ती ने कहा, 'यहां कुछ तकनीकी समस्याएं हैं। ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें मौलिक रूप से हल किया जाना चाहिए और जिनके लिए नीति और रूपरेखा बनाने की जरूरत है।
यह ढांचा इस तरह स्थापित किया जाना चाहिए कि कैसे हमारी लड़कियां अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हैं। जब इन समस्याओं का समाधान हो जाएगा, तो सभी लड़कियां स्कूल जा सकेंगी।'
वहीं छात्राओं ने कहा, हालांकि तालिबान ने बार-बार कहा है कि वह बदल गया है लेकिन उनका हालिया निर्णय निराशाजनक है जिससे लड़कियों को अपने अधिकारों के और नुकसान का डर है।