नागरिकता के लिए गौहाटी हाई कोर्ट ने सीएए के तहत आवेदन करने का दिया अदेश, 1964 में अपने परिवार के साथ आया था भारत
गौहाटी हाई कोर्ट ने असम के एक विदेशी अधिकरण का फैसला पलटते हुए एक अप्रवासी को राहत देते हुए
गौहाटी हाई कोर्ट ने असम के एक विदेशी अधिकरण का फैसला पलटते हुए एक अप्रवासी को राहत देते हुए उसे नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने को कहा। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए व्यक्ति को जिले के विदेशी अधिकरण ने मई 2017 में विदेशी घोषित कर दिया था।
असम के करीमगंज जिले के बबलू पाल उर्फ सुजीत पाल की रिट याचिका पर जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह और मालाश्री नंदी की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि 30 सितंबर, 1964 को जब सुजीत अपने पिता बोलोराम पाल और दादा चिंताहरण पाल के साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत पहुंचा तो उस वक्त उसकी उम्र दो वर्ष थी। परिवार को भारत सरकार द्वारा शरणार्थी का दर्जा दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि साक्ष्यों के अनुसार इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता 1964 में भारत आया। कोर्ट ने सुजीत को भारतीय घोषित करने में असमर्थता जताई, क्योंकि याचिकाकर्ता का जन्म पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हुआ और वह 1964 में भारत आया और यहां बस गया। नागरिकता कानून 1955 में इस बारे में प्रविधान नहीं है कि 1964 में भारत आए किसी व्यक्ति को भारतीय माना जाए अथवा नहीं।
पीठ ने आवेदक को सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने को कहा। इस कानून में कहा गया है कि 31 दिसंबर, 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से भारत आए ¨हदू, सिख, बौद्ध,जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। उसके आवेदन पर विचार होने तक अधिकारियों की ओर से उसके खिलाफ बल प्रयोग नहीं किया जाएगा।