ऑकस के तहत पनडुब्बी सौदे पर फ्रांस ने US-ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को वापस बुलाया, पहली बार हुआ ऐसा
चीन का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन के साथ रणनीतिक हिंद-प्रशांत गठबंधन ‘ऑकस’ बनाने के अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले से नुकसान झेलने वाला फ्रांस खफा हो गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चीन का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन के साथ रणनीतिक हिंद-प्रशांत गठबंधन 'ऑकस' बनाने के अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले से नुकसान झेलने वाला फ्रांस खफा हो गया है। पनडुब्बी सौदे को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करने के मकसद से कूटनीतिक कदम उठाते हुए फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने राजदूतों को वापस बुलाने का फैसला लिया है। पहले फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच डीजल पनडुब्बियों के निर्माण के लिए करीब 100 अरब डॉलर का सौदा हुआ था, मगर ऑकस के गठन के बाद पेरिस ने इस सौदे को खो दिया। बता दें कि ईयू भी इस फैसले से नाराज चल रहा है।
पहली बार हुआ ऐसा
2003 में इराक युद्ध सहित अन्य वैश्विक मामलों पर फ्रांस और अमेरिका के बीच कई बार मतभेद रहे हैं, मगर पेरिस ने कभी भी वाशिंगटन से अपने राजदूत को नहीं हटाया। इस तरह से देखा जाए तो ऐसा पहली बार हुआ है, जब फ्रांस ने अमेरिका से अपने राजदूत को वापस बुलाने का फैसला लिया है। सीनियर फ्रांसीसी डिप्लोमेट ने हालांकि, यह अनुमान लगाने से इनकार कर दिया कि आखिर राजदूत कब तक अमेरिका से वापस फ्रांस चले जाएंगे।
इस नए गठजोड़ और ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बी देने का असर फ्रांस और अमेरिका के रिश्ते पर गहरा पड़ रहा है। फ्रांसीसी अधिकारियों ने इस सप्ताह वाशिंगटन और बाल्टीमोर में फ्रेंको-अमेरिकी संबंधों का जश्न मनाने के लिए आयोजित एक समारोह को पहले ही रद्द कर दिया है। बहरहाल, व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि बाइडेन प्रशासन पेरिस के साथ अपने मतभेदों को दूर करने की कोशिश करेगा। अधिकारी ने कहा कि फ्रांस और अमेरिका महामारी और सुरक्षा सहित मुद्दों पर सहयोग करना जारी रखेंगे।
फ्रांस ने पीठ में छुरा घोंपना बताया
दरअसल, बाइडन ने यूरोपीय नेताओं को भरोसा दिलाया था कि अमेरिका वापस आ गया है और बहुपक्षीय कूटनीति अमेरिका की विदेश नीति का मार्गदर्शन करेगी, लेकिन कई अहम मामलों पर अकेले आगे बढ़ने के दृष्टिकोण के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने कई सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया है। फ्रांस के विदेश मंत्री ने इस हालिया कदम को समझ से परे बताया और इसे पीठ में छुरा घोंपना करार दिया। यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख ने शिकायत की कि यूरोप से परामर्श नहीं किया गया था।
अमेरिका ने सबसे पुराने सहयोगी को किया नाराज
बाइडन ने अमेरिका के सबसे पुराने सहयोगी फ्रांस को नाराज किया है, पौलेंड एवं यूक्रेन अपनी सुरक्षा को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर रहे हैं और अफगानिस्तान से लेकर पूर्वी एशिया तक कई एकतरफा फैसलों ने यूरोपीय संघ को खफा किया है। जब बाइडन ने ईरान के साथ परमाणु वार्ता में फिर से शामिल होने और इजरायल-फलस्तीनी शांति वार्ता को पुनर्जीवित करने का वादा किया था, तो यूरोप ने इस बात पर खुशी जताई थी। लेकिन बाइडन के प्रशासन के नौ महीने बाद भी इन दोनों ही मामलों पर प्रयास रुके हुए हैं।
अमेरिका का क्या है पक्ष
अब बाइडन ने ऑकस (एयूकेयूएस) गठबंधन की घोषणा करके फ्रांस और यूरोपीय संघ को नाराज कर दिया। ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद प्रशांत में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र के लिए एक नए त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ऑकस की घोषणा की। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि फ्रांस को इस फैसले के बारे में सूचित कर दिया गया था, हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि फ्रांस को कब सूचना दी गई। फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां इव लि द्रीयां ने जून में कहा था, यह हम सभी के लिए अच्छा समाचार है कि अमेरिका वापस आ गया है, लेकिन इस गठबंधन की घोषणा को उन्होंने समझ से परे बताया। फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच डीजल पनडुब्बियों के निर्माण के लिए करीब 100 अरब डॉलर का सौदा हुआ था, जो अब रद्द हो जाएगा।
क्या है नया समझौता
इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे। इस कदम को क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता के बरअक्स देखा जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ ऑनलाइन बैठक की। बैठक के बाद तीनों नेताओं ने नए गठबंधन का ऐलान एक वीडियो के जरिए किया। चीन का विरोध वैसे तीने नेताओं ने ऐलान के वक्त चीन का नाम नहीं लिया लेकिन चीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियांग ने कहा कि ये तीनों देश "क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं, हथियारों की होड़ बढ़ा रहे हैं और परमाणु हथियार अप्रसार की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।