बिल पर विरोध दर्ज करने वालों की दलील है कि सीरिया में इस्लामिक स्टेट का हिस्सा बनने गई शमीमा बेगम के मामले में सरकार ने मनमाने ढंग से कार्रवाई की थी और ये कानून सरकार को उससे भी ज्यादा बेलगाम हो जाने की इजाजत देता है. हाउस ऑफ कॉमंस में लेबर पार्टी के नेता तनमनजीत सिंह देसी ने कहा कि ये बिल पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण है जिसका इस्तेमाल नस्ली आधार पर भी किया जा सकता है. पिछले कुछ दिनों में ट्विटर पर ऐसी तमाम प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं जिनमें प्रवासी भारतीयों ने अपनी भावनाएं खुलकर रखीं. 'स्टोरीज फॉर साउथ एशियन सुपरगर्ल्स' नाम की किताब लिखने वालीं कथाकार और ऐक्टिविस्ट राज कौर ने कहा, "मैं अपने दादा-दादी के साथ बड़ी हुई जिन्होंने अपना गैर-ब्रिटिश पासपोर्ट नहीं बदला. उन्हें लगता था कि पता नहीं ये कब हमें बाहर निकाल दें. हम हंसते थे कि ऐसा कभी नहीं होगा...मैं नागरिकता और सीमा बिल से बेहद दुखी हूं जिसने मुझे इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है". केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उत्तर-औपनिवेशिक अध्ययन की प्रोफेसर प्रियंवदा गोपाल कहती हैं कि ये बिल टेरेसा मे के जमाने में तैयार किए गए नफरती माहौल का मूर्त रूप है.
प्रियंवदा मानती हैं कि ब्रिटेन में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में दोहरी नागरिकता की संभावना और अपनी ऐतिहासिक विरासत वाले देशों से संबंध रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए ये निश्चित तौर पर ब्रिटिश भारतीयों समेत काले लोगों को भी बहुत प्रभावित करेगा. वह कहती हैं, "शायद यही वजह है कि इसका मजबूत राजनैतिक विरोध भी नहीं हो रहा है." आंकड़ों की नजर से देखें तो ब्रिटेन में करीब साठ लाख लोग विदेशी विरासत रखते हैं यानी दोहरी नागरिकता या नागरिकता की संभावना रखने के दायरे में आते हैं जो इस कानून से प्रभावित हो सकते हैं. करीब छह लाख पैंतीस हजार की संख्या के साथ प्रवासी भारतीय इसमें सबसे बड़ा समुदाय है. उसके बाद पोलैंड और पाकिस्तान से संबंध रखने वाले लोग हैं. गृह-मंत्री की बेतहाशा बढ़ती ताकत साल 2005 में हुए लंदन बम धमाकों के बाद से गृह मंत्रालय ने नागरिकता वापिस लेने के अधिकार का बहुत तेजी से इस्तेमाल किया है. गृह मंत्रालय के आंकड़े साफ करते हैं कि 2006 से 2017 के बीच 199 लोगों को नागरिकता वापिस ली गई है. केवल साल 2017 में नागरिकता गंवाने वाले लोगों की संख्या 104 पर पहुंच गई. पिछले दस सालों के दौरान लगातार कानूनी बदलाव होते रहे हैं जिनसे नागरिकता समाप्त करने से पहले दिए जाने वाले नोटिस की जरूरत को खत्म किया जा सके. 2018 से ही ये प्रक्रिया कमजोर होती दिखी जब शमीमा बेगम की नागरिकता खत्म करने से पहले नोटिस की जरूरत को पूरा करने के लिए गृह मंत्रालय को ये अधिकार दिया गया कि नोटिस शमीमा की फाइल में लगा दिया जाए क्योंकि उसका पता-ठिकाना मालूम नहीं है. यदि धारा 9 नए कानून का हिस्सा बनती है तो गृह मंत्री को पूरी ताकत होगी कि गंभीर माने जा रहे किसी मामले में दोहरी नागरिकता रखने वाले या किसी दूसरे देश में नागरिकता की संभावना वाले व्यक्ति से ब्रिटिश नागरिकता वापिस ले सके.
ये आदेश जारी करने के लिए किसी न्यायालय या प्राधिकरण जाने की जरूरत नहीं है. सुरक्षा के नाम पर बिना नोटिस दिए गृह-मंत्री को ये आदेश जारी करने का हक होगा, ये बिल इस बेतहाशा ताकत को कानूनी मोहर लगाने के इरादा रखता है. प्रवासी और शरणार्थियों पर असर नए बिल के विरोध का कारण प्रवासियों और शरणार्थियों के साथ अपराधियों जैसा रवैया अपनाने की बात भी है. प्रस्तावित कानून ब्रिटेन में गैर-कानूनी तरीके से प्रवेश करने वालों और उनकी मदद करने वालों को भी कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान करता है. साथ ही पानी के रास्ते ब्रिटेन में प्रवेश की कोशिश को रोकने के दौरान होने वाली मौतों के लिए सीमा सुरक्षा बलों को कार्रवाई में छूट देने की भी बात रखी गई है. शरणार्थियों के मसले को मानवाधिकारों से इतर कानूनी समस्या का रूप देने की इस कोशिश के खिलाफ लगातार प्रतिक्रियाएं आती रही हैं. ब्रिटिश संसदीय मानवाधिकार संयुक्त समिति पहले ही कह चुकी है कि ये बिल मानवाधिकारों कानूनों और शरणार्थी समझौतों के खिलाफ जाता है लेकिन गृह मंत्रालय का कहना है कि "ब्रिटिश नागरिकता एक विशेषाधिकार है, स्वाधिकार नहीं". अपनी नागरिकता को विशेष अधिकार का दर्जा देने वाले इस ब्रिटिश रवैये पर प्रोफेसर प्रियंवदा गोपाल कहती हैं, "ब्रिटेन ने विउपनिवेशीकरण का जवाब जातीय भेदभाव आधारित ऐसे कानूनों से दिया है जिनसे वह उसके पुराने उपनिवेशों से संबंध रखने वाले लोगों को बाहर ब्रिटेन से खदेड़ सके. ये जातीय भेदभाव का ही नमूना है कि देश के अंदर ऐसे कानून बनें कि ब्रिटिश नागरिकों को ही बाहर फेंका जा सके.".