असली Squid Game खेल रहा है चीन, ऐसे बेचे जा रहे कैदियों के लीवर और गुर्दे
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सरकार द्वारा संचालित ‘किल टू ऑर्डर’ अंग-तस्करी नेटवर्क बड़े पैमाने पर देश में एक्टिव है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (China's Communist Party) सरकार द्वारा संचालित 'किल टू ऑर्डर' (Killed to order) अंग-तस्करी नेटवर्क बड़े पैमाने पर देश में एक्टिव है. ये नेटवर्क हर साल 1,00,000 से अधिक विरोधियों और राजनीतिक कैदियों के दिल, गुर्दे, लीवर और कॉर्निया को उनके शरीर से काट कर अलग कर देता है.
दुनियाभर में इस समय नेटफ्लिक्स की स्क्विड गेम (Squid Game) वेब सीरीज की चर्चा हो रही है. इस सीरीज के एक प्लॉट में दिखाया गया है कि इंसानों के शरीर के अंगों को काटा जाता है और उसे बेचा जाता है. चीन में ऐसा ही कुछ चल रहा है. कुछ मानवाधिकार समूहों का दावा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (China's Communist Party) सरकार द्वारा संचालित 'किल टू ऑर्डर' (Killed to order) अंग-तस्करी नेटवर्क बड़े पैमाने पर देश में एक्टिव है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा कि चीन हिरासत में रखे गए विशिष्ट जातीय, भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यकों के अंगों को निकालकर अरबों डॉलर की कमाई का रहा है.
ये नेटवर्क हर साल 1,00,000 से अधिक विरोधियों और राजनीतिक कैदियों के दिल, गुर्दे, लीवर और कॉर्निया को उनके शरीर से काट कर अलग कर देता है. हालांकि, इन सबके बाद भी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इन हत्याओं को रोकने में नाकामयाब रही है.
इसके पीछे की वजह ये है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) बिना किसी सवाल के चीन (China) के अपर्याप्त और भ्रामक अस्पताल के आंकड़ों को स्वीकार करने के लिए मजबूर है. नेटफ्लिक्स की इस सीरीज के रिलीज होने से ठीक एक हफ्ते पहले बीजिंग ने शरीर के अंगों को काटकर निकालने वाले स्टेट-स्पांसर प्रोग्राम की मौजूदगी से इनकार किया.
मानवाधिकार परिषद के नौ संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने एक साल से अधिक समय तक चश्मदीदों की गवाही रिकॉर्ड की. चीन के संदिग्ध अंगदाताओं का पता लगाया और इसकी रेट को दर्ज किया, ताकि भयानक 'किल टू ऑर्डर' बाजार पर नई रोशनी डाली जा सके.
एक बयान में कहा गया, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आज कहा कि वे चीन की हिरासत में फालुन गोंग को मानने वाले (Falun Gong practitioners), उइगर (Uyghurs), तिब्बतियों, मुसलमानों और ईसाइयों सहित अल्पसंख्यकों को टारगेट बनाकर उनके अंगों की कटाई की रिपोर्टों से बेहद चिंतित हैं.
बयान में कहा गया, उन्हें विश्वसनीय जानकारी मिली है कि कैदियों को उनकी सहमति के बिना जबरन ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड करवाना पड़ता है. जबकि अन्य कैदियों को ऐसी टेस्टिंग से नहीं गुजरना पड़ता है. टेस्टिंग के नतीजों को कथिर तौर पर लिविंग ऑर्गन सोर्स के एक डेटाबेस में फीड कर दिया जाता है. ये आगे इन अंगों का आवंटन करती है.