चीन का जे-20 लड़ाकू विमान महाशक्तिशाली बनाने का टूटा सपना, अमेरिका और रूस ने ऐसे दी मात

भारतीय वायुसेना में राफेल लड़ाकू विमानों की बढ़ती

Update: 2021-03-22 14:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: भारतीय वायुसेना में राफेल लड़ाकू विमानों की बढ़ती तादाद से चीन के होश उड़े हुए हैं। इस बीच उसके J-20 लड़ाकू विमान को महाशक्तिशाली बनाने का सपना भी चकनाचूर हो गया है। चीन के इस सपने पर पानी फेरने के पीछे अमेरिका और रूस का हाथ बताया जा रहा है। दरअसल, चीन अपने J-20 लड़ाकू विमान को अधिक ताकतवर बनाने के लिए यूक्रेन की इंजन निर्माता कंपनी मोटर सिच पर कब्जा करने के फिराक में था। मोटर सिच दुनिया की जानी मानी विमान इंजन निर्माता कंपनी है। इस कंपनी ने रूसी एमआई हेलिकॉप्टर, एंटोनोव एयरक्राफ्ट सहित कई विमानों के लिए इंजन बनाए हैं। इस कंपनी के बने इंजनों को भारतीय वायुसेना भी अपने हेलिकॉप्टरों और एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल करती है। चीन को अपने इस स्टील्थ फाइटर जेट को ताकतवर बनाने के लिए एक शक्तिशाली इंजन की तलाश थी। चूंकि, लड़ाकू विमानों के इंजन की तकनीकी बहुत जटिल होती है और चीन के पास ऐसा कोई इंजन नहीं है जो जे-20 को उतनी ताकत दे सके जितना ड्रैगन चाहता है। इसके लिए चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साजिश रची। अमेरिका को तो पहले से ही चीन की नीयत पर शक था, वहीं रूस को बाद में चीन की चोरी का पता चला। जिसके बाद वह भी चीन के खिलाफ हो गया। 2020 के आखिरी महीने में ही चीन ने गोबी रेगिस्तान में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के जे-20 विमानों के साथ युद्धाभ्यास किया था। इस युद्धाभ्यास में शामिल छह जे-20 फाइटर जेट्स ने लद्दाख के पास तैनात H-6 बमवर्षक विमानों के साथ लाइव फायर एक्सरसाइज की थी।

कितना शक्तिशाली है चीन का जे-20 लड़ाकू विमान
चीन के जे-20 लड़ाकू विमान को माइटी ड्रैगन के नाम से जाना जाता है। यह लड़ाकू विमान आवाज से दोगुनी तेज रफ्तार से उड़ान भर सकता है। इसे चीन की चेंगदू एयरोस्पेस कॉर्पोरेशन ने बनाया है। इस विमान को ज्यादा ताकत प्रदान करने के लिए दो इंजन लगे हुए हैं। इसमें एक ही पायलट के बैठने की सीट होती है। चीन का दावा है कि इस लड़ाकू विमान को हर मौसम में उड़ाया जा सकता है। चीन तो यहां तक दावा करता है कि यह लड़ाकू विमान स्टील्थ तकनीकी से लैस है, जिसे कोई भी रडार नहीं पकड़ सकता है। आपको यह बता दें कि यह दुनिया का तीसरा ऑपरेशनल फाइटर जेट है। पहले के दो एफ-22 रेप्टर और एफ-35 अमेरिकी एयरफोर्स में तैनात हैं। J-20 की बेसिक रेंज 1,200 किलोमीटर है जिसे 2,700 किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है। J-20 की लंबाई 20.3 मीटर से 20.5 मीटर के बीच होती है। इसकी ऊंचाई 4.45 मीटर और विंगस्‍पैन 12.88-13.50 मीटर के बीच है। जे-20 का खाली वजन 19391 किलोग्राम है, जबकि यह 37013 किलोग्राम के कुल वजन के साथ उड़ान भरने में सक्षम है, जिसमें फ्यूल और हथियार भी शामिल हैं। यह लड़ाकू विमान 66000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। चीन का दावा है कि यह 2000 किलोमीटर के इलाके में किसी भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकता है। इस जेट में 11340 किलोग्राम तक का जेट फ्यूल भरा जा सकता है।
चीन को J-20 के लिए क्यों चाहिए नए इंजन?
चीन के जे-20 लड़ाकू विमान ने रूस के दो सैटर्न एएल031एफएम2 (Saturn AL-31FM2) इंजन लगे हैं। ये दोनों इंजन मिलकर एयरक्राफ्ट को 145 किलो न्यूटन तक का थ्रस्ट प्रदान करते हैं। चूकि, जे-20 भारी और साइज में भी काफी बड़ा एयरक्राफ्ट है, इसलिए इन इंजनों के सहारे इसकी ताकत की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। इसलिए, चीन जोरशोर से इसे बदलने की तैयारी कर रहा है। चीन भविष्य में अधिक शक्तिशाली WS-15 इंजन के साथ बदलने की योजना पर काम कर रहा है। चीन ने अबतक कुल 50 जे-20 लड़ाकू विमान का निर्माण किया है। इनमें से कुछ चीनी सेना के टेक्निकल एयर कॉम्बेट डेवलेपमेंट एजेंसी के पास है तो बाकी भारत और साउथ चाइना सी के मोर्चे पर तैनात हैं। अब जितने भी जे-20 विमान को चीन बना रहा है उसमें वह खुद के विकसित जे-10 इंजन का उपयोग कर रहा है। चीन को गुमान है कि उसका जे-20 हर मोर्चे पर राफेल के खिलाफ शक्तिशाली साबित होगा और इसी का ढिंढोरा उसकी सरकारी मीडिया भी आए दिन पीट रही है।
चीन ने इंजन पाने के लिए कैसे रची अंतरराष्ट्र्रीय साजिश
खबरों के मुताबिक, चीन ने आखिरी के कई जे-20 लड़ाकू विमानों में खुद के बनाए गए WS-10 इंजन को लगाया है। लेकिन, इससे भी इस फाइटर जेट को उतनी ताकत नहीं मिल पा रही है, जितने की उम्मीद की जा रही है। रूस का Saturn AL-31FM2 इंजन और चीन का WS-10 इंजन दोनों ही ताकत के मामले में करीब-करीब बराबर हैं। ऐसे में चीन की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। इन दोनों इंजनों की क्वॉलिटी उतनी अच्छी नहीं है। चीन पिछले 20 साल के हाई क्वॉलिटी इंजन को बनाने की कोशिश कर रहा है। इसे WS-15 का नाम दिया गया है। लेकिन, चीन को इसमें खास सफलता नहीं मिल पाई है। इसलिए चीन ने हाई क्वालिटी इंजन पाने के लिए लंबी साजिश की। इसके लिए चीन ने यूक्रेन की प्रसिद्ध इंजन निर्माता कंपनी मोटर सिच (Moter Sich) पर कब्जा करने की साजिश रची। इसके लिए चीन ने 2009 से बीजिंग सिनवई कंपनी के जरिए मोटर सिच पर एक जाल फेंका। चूकिं चीनी कंपनी पर कोई भी देश भरोसा नहीं करता, इसलिए चीन ने स्काईराइजोन एयरक्राफ्ट नाम की एक दूसरी कंपनी बनाई। इसने भी कई अन्य कंपनियों के साथ मिलकर मोटर सिच पर कब्जा जमाने की चाल चली।
यूक्रेन की कंपनी को कैसे हड़पना चाहता था चीन?
मोटर सिच को हड़पने की चीन की चाल का खुलासा पिछले साल नवंबर में सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी रिसर्च (CEPA) ने किया था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन ने 2015 में मोटरसिच और स्काईराइजन ने एक मेमोरंडम ऑफ कॉर्पोरेशन पर साइन किया। इसमें चीन को कुछ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने की बात कही गई थी। इसके बदले मोटर सिच को 10 साल में करीब 100 मिलियन डॉलर का लोन देने की डील हुई। इस लोन को चीन के सरकारी बैंक चाइना डेपलपमेंट बैंक ने फाइनेंस किया था। इस सौदे में यह बात भी लिखी हुई थी कि अगर मोटर सिच कभी दिवालिया हो जाती है तो उसके ऊपर चीन का कब्जा हो जाएगा। इस रिपोर्ट के मुताबिक मोटरसिच ने साल 2016 में चीन के साथ एक और करार करते हुए अपनी कंपनी के शेयरों को चीनी कंपनियों को बेंच दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि चीन ने यूक्रेन की इस कंपनी में आधे से अधिक हिस्सेदारी पा ली। बताया जा रहा है कि चीन की स्काईराइजन के पास मोटर सिच कंपनी के 56 से 76 फीसदी शेयर थे। चीन जब चाहे तब इस कंपनी को दिवालिया घोषित कर इसपर कब्जा कर सकता था। इससे कंपनी के बनाए गए सभी इंजनों की तकनीकी आधिकारिक रूप से चीन को मिल जाती। लेकिन, इस बीच अमेरिका और रूस ने बड़ा खेल कर दिया।
अमेरिका-रूस ने चीनी चाल को ऐसे किया फेल
चीन जबतक मोटर सिच पर कब्जा करता उससे पहले ही अमेरिका सक्रिय हो गया। उसने तुरंत उस समय के अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन को यूक्रेन भेजा। बोल्टन ने यूक्रेन के ऊपर दबाव बनाया कि इस सौदे को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। उधर रूस ने भी चीन को साफ कह दिया कि वह इंजन नहीं देगा, बल्कि अगर अब कोई डील होती तो वह पूरे एयरक्राफ्ट की होगी। रूस को भी इस बात की भनक मिल चुकी थी कि चीन पीछे के रास्ते से उसके इंजन की तकनीकी को मोटर सिच की मदद से चोरी करना चाहता है। दोनों देशों ने यूक्रेन के ऊपर इतना दबाव बनाया कि वहां की सरकार ने इस कंपनी का राष्ट्रीयकरण करते हुए चीन के सौदे को रद्द कर दिया। इतना ही नहीं, सरकार ने मोटर सिच के सभी संसाधनों पर अपना कब्जा भी कर लिया। इससे चीन को अपने जे-20 लड़ाकू विमानों को मिलने वाले शक्तिशाली इंजन का सपना चकनाचूर हो गया।


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