ड्रैगन के खिलाफ सुर बदला, भारत संग साझेदारी मजबूत कर सकता है जो बाइडन

अमेरिका में अगले माह राष्ट्रपति बनने जा रहे जो बाइडन से भारत के साथ संबंध विस्तार की उम्मीद लगाई जा रही है।

Update: 2020-12-26 02:25 GMT

अमेरिका में अगले माह राष्ट्रपति बनने जा रहे जो बाइडन से भारत के साथ संबंध विस्तार की उम्मीद लगाई जा रही है। दोनों देशों के कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि वह चीन के खिलाफ भारत के साथ सैन्य साझेदारी मजबूत करने के साथ-साथ आपसी व्यापार समझौते बढ़ाने पर ज्यादा जोर दे सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही बाइडन के भारत में मानवाधिकार और घरेलू मामलों में दखल देने की बात उठ रही हो, लेकिन इस वक्त अमेरिका के लिए चीन से निपटना कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती है। ऐसे में जो बाइडन नई दिल्ली के प्रति मौजूदा रणनीति में ज्यादा परिवर्तन करने की हालत में नहीं होंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक एशियाई क्षेत्र में सत्ता संतुलन के लिए भारत की बढ़ती अहमियत के चलते ट्रंप प्रशासन में दोनों देश पहले के मुकाबले और करीब आए हैं जिसे आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। हाल ही में अमेरिकी उप विदेश मंत्री स्टीफन बिगन ने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौर से रिश्तों में और तेजी आई है।
वाशिंगटन में कार्नेगी एंडावमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एशली जे टेलिस मानते हैं कि फिलहाल अमेरिका को भारत के कई मायनों में जरूरत है, इसमें सबसे बड़ा कारण चीन ही है।
ड्रैगन के खिलाफ सुर बदला
एक समय चीन के उदय को 'महान ताकत' के रूप में देखने वाले जो बाइडन ने पिछले दिनों उसके खिलाफ सख्त रुप अपनाया है। इसके चलते हुए अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की बहुपक्षीय साझेदारी (क्वॉड) का इस्तेमाल भारत-प्रशांत क्षेत्र में सत्ता संतुलन के लिए जारी रख सकते हैं।
तो भारत को साझेदारी पर फिर सोचना होगा
कुछ विशेषज्ञ चीन के खिलाफ जो बाइडन के कड़े कदम उठाने की संभावनाओं से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि जो बाइडन की रणनीति ट्रंप की तरह शायद ही ज्यादा सख्त हो, जिसका भारत को खास लाभ नहीं होगा। नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि अगर अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चीन पर नरम हैं तो भारत को भी द्विपक्षीय साझेदारी पर फिर से सोचना होगा।
पाकिस्तान को लेकर हो सकते हैं नरम
कुछ जानकार कहते हैं कि बाइडन पाकिस्तान को लेकर शायद ज्यादा आलोचनात्मक रवैया नहीं अपनाएंगे। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को बाहर निकालने के लिए इस्लामाबाद से हाथ भी मिला सकते हैं। वहीं ट्रंप ने आतंकवाद पर सख्ती दिखाते हुए पाकिस्तान को सैन्य सहायता रोक दी थी।
थोड़ी खींचतान की भी आशंका
पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने जहां भारत से सैन्य प्रशिक्षण और खुफिया जानकारियों में साझेदारी बढ़ाई है तो एच1बी बीजा जैसे मामलों में सख्ती दिखाई है। वहीं अमेरिका की कोशिशों के बावजूद भारत ने रूस, फ्रांस और इजरायल से भी हथियार खरीद जारी रखी है।
इसके अलावा भारत के पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्मर भारत अभियान के बाद अमेरिका को कई क्षेत्रों में व्यापार समझौतों में भी दिक्कतें आ सकती हैं। ऐसे में थोड़ा आपसी खींचतान देखने को मिल सकता है।



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