बोरिस जॉनसन ने की पुतिन की तुलना मगरमच्छ से, कहा- पूरे यूक्रेन को निगलने की है तैयारी

इस वक्त जेलेंस्की के बाद अगर रूस के खिलाफ कोई सबसे वोकल है तो वो हैं बोरिस जॉनसन. ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर बोरिस जॉनसन ने शुक्रवार को दिल्ली में पीएम मोदी के साथ मीटिंग की.

Update: 2022-04-23 01:21 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस वक्त जेलेंस्की के बाद अगर रूस (Russia) के खिलाफ कोई सबसे वोकल है तो वो हैं बोरिस जॉनसन (Boris Johnson). ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर बोरिस जॉनसन ने शुक्रवार को दिल्ली में पीएम मोदी के साथ मीटिंग की. इस मुलाकात में दूसरे मुद्दों के अलावा रूस-यूक्रेन वॉर को लेकर भी चर्चा हुई, लेकिन इस सबके बीच बोरिस जॉनसन ने पुतिन को लेकर अजीबोगरीब बयान दिया. जॉनसन ने पुतिन की तुलना मगरमच्छ (Crocodile) से कर दी. बोरिस जॉनसन ने कहा कि जब मगरमच्छ ने अपने जबड़े में आपका पैर दबाया हो तो फिर आप उसके साथ बातचीत कैसे कर सकते हैं. बोरिस जॉनसन यहीं नहीं रुके. उन्होंने ये भी कह दिया कि पुतिन की स्ट्रैटजी पूरे के पूरे यूक्रेन को निगलने की है ताकि वो फिर अपनी शर्तों पर यूक्रेन के साथ निगोशिएट कर सकें.

ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर का ये बयान ऐसे वक्त आया है जब रूस ने नए सिरे से डोनबास में आक्रामक हमले को अंजाम दिया. डोनबास में एक के बाद कई प्वाइंट्स पर रूसी सेना नजर आने लगी और तो और अब एक बार फिर खारकीव में भी BLITZKRIEG वॉरफेयर स्ट्रैटजी के तहत रूसी सेना गोलाबारी कर रही है. इसका मतलब साफ है कि पुतिन ने ईस्टर्न और साउथ यूक्रेन की तरफ एक बार फिर हमले तेज कर दिए और इसका सबसे सटीक उदाहरण मारियुपोल है, जहां पर पुतिन ने रूसी सेना के कब्जे का ऐलान कर दिया.
रूस की सेना के खिलाफ यूक्रेन को मजबूत कर रहा अमेरिका
अब सवाल है कि पुतिन ने मारियुपोल पर कब्जे का दावा कर लिया, लेकिन ये कब्जा कब तक कायम रहेगा क्योंकि एक नए चैनल के जरिए रूस की सेना के खिलाफ अमेरिका यूक्रेन को मजबूत कर रहा है. यूक्रेन को हाईटेक ड्रोंस समेत दूसरे आर्म्स सप्लाई किए जाने का ऐलान कर दिया. यूक्रेन की हथियारों की सप्लाई लाइन का जारी रहने का मतलब है कि वॉर लंबा खिंचेगी. डोनबास में एक बार फिर रूसी सेना और यूक्रेन सेना का भीषण टकराव तय है. वैसे जहां तक मगरमच्छ वाले परिप्रेक्ष्य की बात है तो इसका इशारा चीन ताइवान टकराव की तरफ जाता है, क्योंकि चीन भी ताइवान को निगलने की तैयारी कर रहा है. चीन रोजाना ताइवान को डराने के लिए वॉर एक्सरसाइज कर रहा है.
डोनबास और मारियुपोल पर है पूरी दुनिया का फोकस
लेकिन इस वक्त पूरी दुनिया का फोकस डोनबास और मारियुपोल पर है. रूस की सेना की स्ट्रैटजी को लेकर वेस्टर्न मीडिया अलग-अलग दावे कर रहा है. लेकिन बोरिस जॉनसन के CROCODILE वाले बयान से इतना साफ है कि इस वक्त रूस को ईस्टर्न यूक्रेन में एडवांटेज है, लेकिन ये कब तक रहेगा. यूक्रेन इसके लिए क्या प्लान बना रहा है, ये भी समझना जरूरी है. अगर यूक्रेन के नक्शे पर गौर करेंगे तो क्लीयर कट अंदाजा हो जाएगा कि बोरिस जॉनसन ने गलत नहीं कहा.
ये बात बिल्कुल सही है कि पुतिन ने अब यूक्रेन को नीचे से जकड़ लिया. एक तरह से कहें तो यूक्रेन के पांव को मगरमच्छ की तरह दबोच लिया, इससे यूक्रेन हिल नहीं पाएगा यानी यूक्रेन कहीं ना कहीं अपनी जमीन खोता हुआ दिखाई दे रहा है और आसान भाषा में समझें तो पुतिन ने डोनबास में जवानों की भारी तैनाती कर दी. 76 हजार से ज्यादा रूसी सैनिक डोनबास में मौजूद हैं. खारकीव वाले रूट से लगातार आगे बढ़ रहे हैं. इस बीच रूसी सेंट्रल मिलिट्री कमांड ने बड़ा दावा कर कहा कि राउंड टू में डोनबास के साथ पूरा साउथ यूक्रेन लेंगे.
पश्चिमी देश अब इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि पुतिन यूक्रेन में रुकने वाले नहीं है, वो आगे बढ़ेंगे. लेकिन सवाल है कि क्या वो यूरोप की तरफ जाएंगे, बाल्टिक देशों का रुख करेंगे. पोलैंड के साथ सीधी अदावत होगी या फिर कोई और मुल्क निशाने पर होगा. इस पर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है, लेकिन इतना जरूर है कि साउथ यूक्रेन पर कब्जा करने के बाद रूस की अधूरी हसरत पूरी हो जाएगी. क्रीमिया और डोनबास के बीच बहुत बड़ा लैंड कॉरिडोर बन जाएगा. जो काम 2014 में नहीं हो सका उसे रूस इस बार पूरा करना चाहता है. लेकिन अगर पश्चिमी मुल्कों की थ्योरी पर गौर करें तो रूस मगरमच्छ की ही तरह यूक्रेन के आसपास की जमीन को भी निगलने की तैयारी कर चुका है.
ट्रांसनिस्त्रिया में रूस के करीब 2000-3000 सैनिक मौजूद
पुतिन का प्लान रेडी है. एक बार क्रीमिया से लैंड रूट बन गया तो फिर रूस का अगला टारगेट मोल्डोवा हो सकता है. मोल्डोवा में जाने का एक बड़ा गेटवे मिल जाएगा. साउथ यूक्रेन में कंट्रोल का मतलब ट्रांसनिस्त्रिया तक पहुंचने का दूसरा रास्ता. ट्रांसनिस्त्रिया में रूस के करीब 2000-3000 सैनिक मौजूद हैं. 1992 से रूस का इस इलाके पर कब्जा है. रूस के डिप्टी मिलिट्री कमांडर सिर्फ यही नहीं रुके. उनका कहना था कि स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन का पहला फेज रूस की हार नहीं है बल्कि वो तो दुश्मन की सेना को कमजोर करने का तरीका था.
वैसे ये बात सही है कि रूस जितना चाहे पहले फेज के ऑपरेशन के बारे में कहे, लेकिन उसे ये तो मानना होगा कि जेलेंस्की के जवानों के सामने रूस की सेना की सारी स्ट्रेटजी फेल हो गई. कीव, चेर्निहीव से उल्टे पांव भागना पड़ा और जहां तक हथियारों की बात है तो फिर अब अमेरिका समेत पूरा यूरोप और दूसरे मुल्क जेलेंस्की की मदद के लिए आगे आ रहे हैं और रूस के खिलाफ जंग में खुलकर सपोर्ट कर रहे हैं.
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