पाकिस्तान में बड़ा उलटफेर! इमरान खान के खिलाफ क्यों हो गई है सेना, अपने भी छोड़ रहे हैं साथ, जानें इनसाइड स्टोरी

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पर सियासी संकट छाया हुआ है।

Update: 2022-03-24 05:56 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पर सियासी संकट छाया हुआ है। एक ओर जहां विपक्षी दलों ने पीएम खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दाखिल कर दिया है, वहीं खान के सहयोगी दल भी उनका साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं। इधर नेशनल असेंबली में स्पीकर ने प्रस्ताव पर चर्चा की तारीख 25 मार्च यानि शुक्रवार मुकर्रर कर दी है। अगर सदन में विपक्षी दलों के मंसूबे कामयाब हो जाते हैं तो अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता गंवाने वाले खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री होंगे। अब पड़ोसी मुल्क की इस स्थिति को विस्तार से समझते हैं...

इमरान खान के खिलाफ क्यों दाखिल हुआ अविश्वास प्रस्ताव?
पाकिस्तान में आर्थिक स्थिति पर तनाव बना हुआ है। बढ़ती महंगाई के चलते इमरान सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष का मानना है कि मुल्क के इस हालात के लिए पीएम खान की सरकार जिम्मेदार है। साथ ही विपक्षी नेता पाकिस्तान पर बढ़ते कर्ज और बेरोजगारी के मुद्दे पर भी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के अध्यक्ष शहवाज शरीफ का कहना है कि यह फैसला देश के फायदे में लिया गया है।
8 मार्च को विपक्षी दलों के गठबंधन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कुछ वरिष्ठ सांसदों ने खान के खिलाफ सियासी मोर्चा खोल दिया था। उस दौरान दो तरह के दस्तावेज दाखिल किए गए। नेताओं ने संविधान के अनुच्छेद 95 के तहत अविश्वास प्रस्ताव जमा किया। साथ ही अनुच्छेद 54(3) के तहत नेशनल असेंबली का सत्र बुलाने के लिए नोटिस दिया ताकि सदन में प्रस्ताव पेश किया जा सके।
25 मार्च को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में क्या होगा?
नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर ने इस्लामाबाद में शुक्रवार को निचले सदन का सत्र बुलाया है। खास बात है कि प्रस्ताव दाखिल किए जाने के बाद स्पीकर को 14 दिनों के भीतर सत्र बुलाना होता है और नियमों के मुताबिक यह समयसीमा 21 मार्च को समाप्त हो गई है। विपक्ष के नेता भी खान के खिलाफ प्रस्ताव पर वोटिंग में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं और कैसर पर सरकार का समर्थन करने के आरोप लगा चुके हैं। 25 मार्च को सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा।
संसद सत्र शुरू होने के बाद सचिव अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस जारी करेंगे जिसे अगले वर्किंग डे पर पेश किया जाएगा। नियमों के मुताबिक प्रस्ताव पेश होने के बाद उस पर तीन दिनों से पहले और सात दिनों के बाद मतदान नहीं हो सकता।
पाकिस्तान में सियासत का गणित!
नेशनल असेंबली में कुल सदस्यों की संख्या 342 है। इस लिहाज से अविश्वास प्रस्ताव को पास होने के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। पीडीएम के अध्यक्ष फजलुर रहमान का दावा है कि उन्हें 180 का आंकड़ा हासिल है। जानकारों का मानना है कि विपक्ष के पास अविश्वास प्रस्ताव आखिरी दांव की तरह है। ऐसे में अगर उन्हें संख्या पर यकीन नहीं होता तो यह शायद वे यह कदम नहीं उठाते।
अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया को समझते हैं
अगर नेशनल असेंबली सत्र में मौजूद नहीं है तो अनुच्छेद 54 के तहत सदस्य इसकी मांग करेंगे। इसके बाद स्पीकर के पास सत्र बुलाने के लिए अधिकतम 14 दिनों का समय होगा। पीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए कुल सदस्यों का 20 फीसदी यानि 68 सदस्यों के दस्तखत जरूरी हैं। जबकि, सत्र बुलाने के लिए 86 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। पीएमएल-एन की मरियम औरंगजेब का कहना है कि सत्र बुलाने के लिए दाखिल किए गए दस्तावेजों पर 102 और प्रस्ताव पर 152 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं।
वोटिंग की प्रक्रिया
सत्र शुरू होने के बाद प्रस्ताव के खिलाफ जो सदस्य हैं वे एक गेट और समर्थक दूसरे गेट से बाहर चले जाएंगे। हॉल खाली होने के बाद सदस्यों की गणना होगी और स्पीकर नतीजों का ऐलान करेंगे। अगर अविश्वास प्रस्ताव सफल हो जाता है तो स्पीकर की तरफ से राष्ट्रपति को नतीजे लिखित में दिए जाएंगे और सचिव अधिसूचना जारी करेंगे। प्रस्ताव पर स्पीकर या डिप्टी स्पीकर का वोट गुप्त बैलेट के जरिए दाखिल किया जाएगा।
क्या है आगे का रास्ता
अगर अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पास हो जाता है, तो इमरान खान को पीएम पद छोड़ना होगा। पीएम के हटने के बाद नेशनल असेंबली नए नेता के लिए तत्काल मतदान करेगी। जब पीएम को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाया जाता है तो उनका कैबिनेट भी खत्म हो जाता है।
इतिहास में कब-कब पीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए गए
इससे पहले केवल दो ही प्रधानमंत्रियों के खिलाफ पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं। साल 2006 में पीएम शौकत अजीज के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, उन्होंने सदस्यों का भरोसा जीतने में सफलता हासिल कर ली थी। इससे पहले और पहली बार 1989 में अविश्वास प्रस्ताव तत्कालीन पीएम बेनजीर भुट्टो के खिलाफ लाया गया था। हालांकि, वे भी सत्ता में बने रहने में सफल हुई थी। इमरान खान के खिलाफ भी पहले अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है।
क्या इमरान खान के पक्ष में हैं आंकड़े?
गठबंधन के सहयोगी दल या दल बदलने वाले नेताओं को हटाया जाए, तो प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के पास निचले सदन में 155 सीटें हैं। हालांकि, उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए 172 की संख्या की जरूरत है। इधर, विपक्षी दलों के गठबंधन के पास निचले सदन में 160 से ज्यादा सीटें हैं।
सियासी हाल में सेना की भूमिका
कहा जा रहा है कि पूर्व जासूस और इमरान के करीबी माने जाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद को आपत्तियों के बावजूद भी सेना की कमान देने की कोशिशों के चलते पीएम खान ने सेना का समर्थन भी खो दिया है। हालांकि, खान और सैन्य अधिकारी हमेशा इस बात से इनकार करते रहे हैं कि चुनाव में सेना की भी कोई भूमिका होती है। लेकिन यह बड़े स्तर पर माना जाता है कि सेना की तरफ से मिले शुरुआती समर्थन ने उन्हें ताकतवर बनने में मदद की है। सेना के मौजूदा प्रमुख का कार्यकाल नवंबर में पूरा हो रहा है। ऐसे में विपक्ष को डर है कि खान उनके स्थान पर जनरल हामिद को लाना चाहते हैं।
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