अंतरिक्ष से जुड़ी बहुत बड़ी खबर

Update: 2022-07-28 01:50 GMT

सोर्स न्यूज़  - आज तक 

आखिर दिन आ ही गया जब रूस ने अमेरिका से ये कह दिया कि अब हम अंतरिक्ष में साथ नहीं रह सकते. अब हमें International Space Station में 24 वर्षों से चली आ रही पार्टनरशिप को तोड़कर अलग होना पड़ेगा. अब रूस अपना खुद का एक अलग Space Station तैयार करेगा जिसकी शुरूआत 2 साल बाद 2024 से होगी. ये अंतरिक्ष से जुड़ी बहुत बड़ी खबर है.

International Space Station स्पेस रिसर्च से जुड़े दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण और महंगे Projects में से एक है. इसे बनाने और लंबे समय तक चलाने में सबसे बड़ी भूमिका- रूस और अमेरिका की है लेकिन अब ये सहयोग टूट रहा है. रूस ने ये फैसला क्यों लिया सबसे पहले इसकी वजह समझिये.

पिछले 5 महीने से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका ने यूक्रेन की लगातार मदद की है. इस दौरान अमेरिका ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाये हैं. जिसकी वजह से ये माना जा रहा था कि International Space Station में अमेरिका और रूस की पार्टनरशिप कभी भी टूट सकती है . इस युद्ध की वजह से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति Joe Biden के बीच व्यक्तिगत स्तर पर दूरियां बढ़ गई हैं. अपने एक बयान में Joe Biden ने पुतिन को कसाई तक कह दिया था.

शायद यही वजह है कि Space Station वाली पार्टनरशिप को तोड़ने का अंतिम फैसला राष्ट्रपति पुतिन ने लिया है. रूस की स्पेस ऐजेंसी Roscosmos ने इसका आधिकारिक एलान कर दिया है. अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA ये चाहती थी कि इस पार्टनरशिप को 2030 तक बढ़ाना चाहिए लेकिन रूस अपने नये Space Station की तैयारी कई वर्ष पहले ही शुरू कर चुका था वो सिर्फ इस रिश्ते को तोड़ने के लिए सही समय का इंतज़ार कर रहा था.

आमतौर पर धरती पर हो रहे संघर्ष कभी अंतरिक्ष में चल रहे सहयोग पर असर नहीं डालते लेकिन इस बार पृथ्वी की लड़ाई अंतरिक्ष तक पहुंच गई है और 60 और 70 के दशक के बाद एक बार फिर से Space Race शुरू हो रही है. रूस अब अमेरिका से आगे निकलना चाहता है और अपने भविष्य के स्पेस मिशन में चीन को शामिल करना चाहता है. रूस और चीन ये घोषणा कर चुके हैं कि दोनों मिलकर चांद की सतह पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाएंगे.

फिलहाल अमेरिका और रूस वर्ष 2024 तक International Space Station में एक साथ काम करेंगे लेकिन इसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाएंगे.

International Space Station क्या होता है?

आज आपको ये समझना चाहिए कि ISS यानी International Space Station क्या होता है. कैसे काम करता है. आमतौर पर इस तरह की ख़बरों को अंतरराष्ट्रीय और अंतरिक्ष से जुड़ी एक कठिन ख़बर मान लिया जाता है इसलिए हमने इसे आपके लिए सरल भाषा में तैयार किया है .

अंतरिक्ष में बार-बार जाने-आने की प्रक्रिया बहुत कठिन और महंगी होती है. 90 के दशक से पहले अंतरिक्ष में रुकना संभव नहीं था इसलिए एक ऐसे सैटलाइट की ज़रूरत महसूस हुई जहां अंतरिक्ष से जुड़े रिसर्च के कामों को पूरा किया जा सके.

International Space Station अंतरिक्ष में बनाई गयी एक लैब है जिसे रूस और अमेरिका सहित 18 देशों ने मिलकर तैयार किया था.

वर्ष 1998 में इसे धरती से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित कर दिया गया. उस समय ये तय किया गया था कि इसे 15 वर्ष तक चलाया जाएगा लेकिन धीरे-धीरे ये अवधि बढ़ती चली गई.

ये अंतरिक्ष के सबसे महंगे Projects में से एक है. इसकी कुल लागत 12 लाख करोड़ रुपये आई थी और इसे हर साल चलाने का खर्च लगभग 24 हज़ार करोड़ रुपये आता है.

ये Space Station 28 हज़ार 163 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से पृथ्वी के चक्कर लगाता है. इसे पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में सिर्फ़ 90 मिनट लगते हैं. इसकी लंबाई 108 मीटर और चौड़ाई 72 मीटर है..ये आकार एक फुटबॉल के मैदान बराबर है.

इसमें सोने के लिए 6 कमरे 2 बाथरूम और एक जिम भी है जिसमें हर अंतरिक्ष यात्री के लिए हर रोज़ 2 घंटे Workout करना ज़रूरी है.

यहां zero gravity यानी गुरुत्वाकर्षण बल ना होने की वजह अंतरिक्षयात्री तैरते हुए काम करते हैं. इस समय International Space Station पर रूस और अमेरिका के तीन-तीन अंतरिक्षयात्री मौजूद हैं.

आपको जानकर आश्चर्य होगा इस Space Station के Operations और Maintenance के लिए हर देश की अलग-अलग भूमिका है. यानी यहां अमेरिका और रूस का काम बंटा हुआ है. इस बात को समझने के लिए आज आपको International Space Station के दोनों हिस्सों को समझना होगा.

रूस क्या काम देखता है?

International Space Station में एक हिस्सा controlling unit कहलाता है जिसकी ज़िम्मेदारी रूस के पास है. controlling unit में Space Station को गिरने से रोकने वाली नियंत्रण तकनीक पर काम किया जाता है. ये कितनी स्पीड से कितनी ऊंचाई पर चलेगा इस बात का ध्यान भी रखा जाता है.

जबकि दूसरा हिस्सा Power Generation यानी शक्ति पैदा करने लिए होता है जिसकी ज़िम्मेदारी अमेरिका सहित 4 देशों के पास है. इसके अलावा अंतरिक्षयात्रियों से संपर्क रखने वाली संचार तकनीक भी अमेरिका Operate करता है जबकि किसी इमरेजेंसी के दौरान दोनों देश मिलकर काम करते हैं.

पहले से तय है ISS को नष्ट करने की जगह

अब जब ये तय हो गया है कि रूस इस स्टेशन पर काम नहीं करेगा तो इसका संचालन करना बहुत मुश्किल होगा. अब या तो NASA को इसे अपने दम पर चलाते रहना होगा या फिर इसे नष्ट करना होगा.

आगे ज़रूरत पड़ने पर NASA इसे नष्ट भी कर सकता है. NASA ने इसे नष्ट करने लिए प्रशांत महासागर के point nemo नाम की जगह पहले से तय की हुई है जहां इसे डुबो दिया जाएगा 'इस जगह को अंतरिक्ष यान का कब्रिस्तान भी कहा जाता है.

इसके लिए Space Station को पृथ्वी से दूरी कम करते हुए नीचे लाया जाता है. इसके बाद इसे कई टुकड़ो में ख़त्म किया जाता है. ये कहने में जितना आसान लग रहा है उतना आसान नहीं है . इस काम में बहुत ख़तरा है और बहुत खर्च भी है.

यहां आपको ये समझना होगा कि अंतरिक्ष में नई तरह की रेस क्यों शुरू हो रही है. इसके लिए आपको फ्लैशबैक में जाना होगा.

Space में पहली बार जाने का रिकॉर्ड रूस के Yuri Gagarin के नाम है. वो एक पायलट थे और 12 अप्रैल 1961 को Vostok 1 नाम के spacecraft अंतरिक्ष में गये. ये वो दौर था जब अंतरिक्ष की दुनिया में रूस सबसे बड़ी शक्ति बन गया था.

Yuri Gagarin की स्पेस में जाने की इन तस्वीरों को देखकर अमेरिका बहुत बेचैन हो गया था और दोनों देशों में एक Space War शुरू हो गया. अमेरिका ने ये घोषणा कर दी कि अब एक अमेरिकी व्यक्ति ही चांद पर कदम रखेगा और वर्ष 1969 में नील आर्मस्ट्रांग को चांद पर भेज कर अमेरिका ने अपनी बात को सच साबित करते दिखाया. इसके बाद दुनिया के कई देश Space Race में शामिल हो गये और इसमें लंबे समय तक अमेरिका ही सबसे आगे रहा.

लेकिन कुछ समय बाद ये समझ में आया की बिना सहयोग के Space में काम करना आसान नहीं होगा इसलिए वर्ष 1998 में International Space Station तैयार किया गया. इस पर अब तक 18 देशों के 232 अंतरिक्ष यात्री जा चुके हैं लेकिन अब स्पेस ख़त्म होने के साथ ये Space War फिर से शुरू हो गई है. अब अमेरिका को पीछे करने के लिए रूस और चीन के साथ मिलकर कई Space Projects पर साथ काम कर रहे हैं.

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