हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी अचीव के साथ अमेरिका ने रूस के साथ चीन को जवाब देने के लिए तैयारी की है. ऐसा इसलिए क्योंकि रूस और चीन के पास हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम पहले से मौजूद है..इसका चीन को इंडो पैसिफिक रीजन में एडवांटेज भी है. अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की तरफ से कहा गया कि हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम के साथ न्यूक्लियर सबमरीन और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम को भी डेवलप किया जाएगा. वैसे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों SCIFiRE नाम के Hypersonic weapon programme पर पहले से काम कर रहे हैं. अब ब्रिटेन भी रिसर्च और डेवलपमेंट में शामिल हो जाएगा.
किसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम के पास नहीं है हाइपरसोनिक मिसाइल का जवाब
आपको बता दें कि हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम का जवाब किसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम के पास नहीं है. हाइपरसोनिक पावर बनने वाले डेवलपमेंट को ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन ने भी कनफर्म किया है. मॉरिसन ने कहा कि हाइपरसोनिक मिसाइलों का प्रोडक्शन ऑस्ट्रेलियन आर्मी की long range striking capability को बढ़ाने के लिए किया जाएगा. इसका मतलब ऑस्ट्रेलिया रूस और चीन को काउंटर करने की तैयारी कर रहा है. असल में चीन के हाइपरसोनिक सिस्टम को लेकर कुछ वक्त पहले अमेरिकी फौज की तरफ से बड़ा खुलासा हुआ था. अमेरिका के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चीफ general mark milley ने कहा था कि चीन ने अक्टूबर 2021 में ही हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट कर लिया है. चीन के पास हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम मौजूद है और ये अमेरिका समेत उसके सहयोगी देशों के लिए चिंता की बात है.
यूक्रेन वॉर में हाइपरसॉनिक मिसाइल के इस्तेमाल का दावा
18 मार्च को पहली बार रूस ने यूक्रेन वॉर में हाइपरसॉनिक मिसाइल के इस्तेमाल का दावा किया. रूस ने कहा था कि उसने किंझल मिसाइल सिस्टम के जरिए Ivano-Frankivsk रीजन में यूक्रेन के आर्म्स डिपो को बर्बाद कर दिया. ये वो वक्त था जब अमेरिका भी हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट की तैयारी कर रहा था. अमेरिका ने दावा किया था कि उसने MID MARCH में ही हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट कर लिया था लेकिन जंग की वजह से किसी को नहीं बताया. 6 दिन पहले ही रूस ने एक बार फिर हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया. रूस की तरफ से कहा गया कि माइकोलाइव के पास हाइपरसोनिक मिसाइल ने यूक्रेन के एम्युनिशन को बर्बाद कर दिया. अब अमेरिका खुलेतौर पर कह रहा है कि उसके पास हाइपरसोनिक तकनीक मौजूद है और अब वो ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ मिलकर भी हाइपरसोनिक मिसाइल बनाएगा.
हाइपरसोनिक मिसाइल की रफ्तार 6100 km/hr होती है
हाइपरसोनिक मिसाइल वो हथियार हैं, जो speed of sound से भी पांच गुना ज्यादा तेजी से चलते हैं. यानी कम से कम 5 mach की स्पीड आमतौर पर किसी हाइपरसोनिक मिसाइल की रफ्तार 6100 km/hr होती है..इन मिसाइलों की स्पीड और डायरेक्शन में बदलाव करने की capability इतनी ज्यादा accurate होती है कि इन्हें मार गिराना नामुमकिन होता है. अगर क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों की रफ्तार 6100 km/hr हो जाए..और इनमें खुद से ही डायरेक्शन चेंज करनेवाले इक्विपमेंट लगा दिए जाएं..तो फिर ये भी हाइपरसोनिक मिसाइल बन सकती हैं. दावा ये भी है कि रूस के पास ऐसी बैलिस्टिक मिसाइलें हैं जिनके ऊपर ग्लाइड व्हीकल्स और क्रूज मिसाइलें लगाई जा सकती हैं. रूसी सरकार Russian Hypersonic Intercontinental Ballistic Missile बना चुकी है. जिसका नाम है एवनगार्ड है. एवनगार्ड मिसाइल Mach 20 की रफ्तार से चलेगी. इसका मतलब आवाज की गति से 20 गुना ज्यादा तेज….इसकी स्पीड 24,696 किलोमीटर प्रतिघंटा की होगी. इसी तरह चीन के पास DF-ZF नाम का हाइपरसोनिक वेपन है. ये हाइपरसोनिक वेपन 6173 से लेकर 12,360 km/hr की स्पीड हासिल कर सकता है. रूस और चीन के बाद अब अमेरिका ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट कर लिया है लेकिन मिलिट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि रूस जितनी एडवांस टेकनीक हासिल करने में अमेरिका को अभी वक्त लगेगा. अब यूक्रेन जंग हाइपर वॉर की शक्ल लेता दिख रहा है. हमने आपको अभी ये बताया कि जिस हाइपरसोनिक मिसाइल की चर्चा दुनिया कर रही थी. रूस ने यूक्रेन वॉर में उसका इस्तेमाल किया और भीषण तबाही मचाई. अब रूस ने यूक्रेन की धरती पर एक और विध्वंसक मिसाइल से हमला किया है.
डिफेंस सेक्टर को लेकर ऑस्ट्रेलिया कर रहा ये प्लानिंग
ऑस्ट्रेलिया अपने डिफेंस सेक्टर को लेकर किस तरह की प्लानिंग कर रहा है. सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया साढ़े 3 अरब डॉलर के आधुनिक हथियार खरीदेगा. रूस और चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने खरीद को मंजूरी दी. ऑस्ट्रेलिया के रक्षामंत्री के मुताबिक जल्द F18 और F-35A जेट्स एयर टू सरफेस मिसाइल खरीदी जाएंगी. ज़मीन पर नेवी की ताकत बढ़ाने के लिए Naval Strike Missile खरीदी जाएंगी. समंदर और पोर्ट की सुरक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया मैरीटाइम माइन्स भी खरीदेगा. अब अचानक ऑस्ट्रेलिया ने डिफेंस पर पानी की तरह पैसा बहाना शुरू क्यों कर दिया और इससे किसको फायदा होगा. ये समझने वाली बात है…वैसे ROMAN EMPIRE के दौरान एक कहावत मशहूर हुई थी. तब कहा गया था कि all roads lead to Rome.लेकिन आज के जमाने में ये कहावत बदल गई है. अब कहा जाने लगा है कि ALL DEALS LEADS TO AMERICA अब ये कैसे हो रहा है. जैसे ही रशिया और यूक्रेन के बीच वॉर शुरु हुई..तभी से अमेरिका को WEAPON BUYERS मिलना शुरू हो गए.
अमेरिका से 35 फाइटर जेट्स खरीदेगा जर्मनी
यूक्रेन क्राइसिस के बीच 14 मार्च को जर्मनी ने ऐलान किया कि वो अमेरिका से 35 फाइटर जेट्स खरीदेगा…जर्मनी ने F-35 के लिए डील की 16 मार्च को स्पेन ने अमेरिका से 8 Sikorsky MH-60R Seahawk multi-mission helicopters का फैसला किया. जिस कनाडा का जंग से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं…वो भी अमेरिकी हथियार खरीद रहा है..29 मार्च को कनाडा ने भी अमेरिका के फाइटर प्लेंस खरीदने का फैसला किया..कनाडा ने कहा कि वो 88 नए F 35 फाइटर जेट्स खरीदेगा. इस बीच पोलैंड की सरकार ने भी अमेरिका से 250 Abrams मैन बैटल टैंक्स खरीदने का फैसला किया. इसके लिए 6 बिलियन डॉलर खर्च किए जाएंगे. यूक्रेन वॉर को देखते हुए रोमानिया ने भी तय किया है कि वो अमेरिका से डिफेंस इक्विपमेंट्स खरीदेगा. सोचिए यूरोप में जंग शुरु होने से पहले अस्सी हजार यूएस आर्मी के सोल्जर्स थे. लेकिन अब अमेरिका के एक लाख से ज्यादा सैनिक मौजूद हैं यानी NATO के ईस्टर्न फ्लैंक में मौजूद 1 लाख 40 हजार सैनिकों में से एक लाख सैनिकों वाला…Lion's share अमेरिका का ही है. सिर्फ वेपन्स नहीं बल्कि अमेरिका तो यूरोप को पूरी तरह से खुद पर DEPENDENT बनाना चाहता है. अमेरिका डिप्लोमैटिक के साथ इंडस्ट्रियल सुपर पावर भी बनना चाहता है.