इजरायल की सत्ता में पूरा हो गया है बेंजामिन नेतन्याहू का समय, 8 छोटी पार्टियों को एक साथ लाना है चुनौती

12 साल के लंबे कार्यकाल के बाद बेंजामिन नेतन्याहू पहली बार अपनी कुर्सी खोने की कगार पर हैं

Update: 2021-05-31 09:28 GMT

12 साल के लंबे कार्यकाल के बाद बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) पहली बार अपनी कुर्सी खोने की कगार पर हैं. वो 2009 से इजरायल (Israel) के प्रधानमंत्री हैं और 1996-1999 के बीच में भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं. उनका कार्यकाल इजरायल के पहले प्रधानमंत्री बेन गुरिओं से एक साल ज्यादा है और कुल मिलाकर 15 साल से इजरायल की बागडोर उनके पास है. लेकिन उनके धुर विरोधियों ने हाथ मिला लिया है. अगर बात बनी तो बुधवार तक नए प्रधानमंत्री की घोषणा हो जाएगी और इजरायल 2 साल में पांचवी बार चुनाव से बच जायेगा.

इजरायल में पिछले 2 साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं और हर बार किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. लेकिन इस बार नेफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) और यासिर लापीड (Yair Lapid) ने हाथ मिला लिया. इसको लेफ्ट और राइट का संगम कहा जा सकता है. नेफ्ताली बेनेट दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं. वो इजरायल की फौज में बतौर कमांडो काम कर चुके है. अब पेशे से व्यापारी है और स्वास्थ्य और रक्षा मंत्रालय का काम भी संभाल चुके हैं. यासिर लापीड टीवी के एंकर रह चुके है और उन्होंने बेनेट से हाथ मिला लिया है.
आठ छोटी पार्टियों को एक साथ लाना है चुनौती
वहीं नेतन्याहू गाजा पट्टी (Gaza Strip) और इजरायल की सुरक्षा की दुहाई देकर प्रधानमंत्री पद को बरकरार रखा चाहते हैं. लेकिन उसकी संभावना कम दिखती है. लापीड और नेफ्ताली बेनेट के सामने बड़ी चुनौतियां है जैसे की उनको 8 छोटी पार्टियों को एक साथ लाना होगा. दूसरी तरफ नेफ्ताली के फलस्तीन (Palestine) को लेकर ख्याल बेहद संक्रीण हैं. उनका मानना है कि वेस्ट बैंक (West Bank) में यहूदियों को बसा देना चाहिए और अलग से फलस्तीन राज्य बनाने की कोइ जरूरत नहीं है. दूसरी तरह यासिर का रुख समाजवादी है और बीच के रास्ते में विश्वास रखते हैं.
भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी नहीं दिया नेतन्याहू ने इस्तीफा
वहीं नेतन्याहू की समस्याएं बरकरार हैं. उनके ऊपर अभी भी भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं. उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप के बाद भी अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया. उनके कार्यकाल में इजरायल की राजनीति काफी दक्षिणपंथी छोर की तरफ चली गयी और फलस्तीन के साथ रिश्ते भी नहीं सुधर पाए. दूसरी तरफ नेतन्याहू के 2-2 बार प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के प्रस्ताव को भी सभी दलों ने खारिज कर दिया. लेकिन उनको एक सफलता मिली और वो कि ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिका का पूरा समर्थन उन्हें मिला.
नेतन्याहू को मिलता रहा अमेरिका का साथ
अमेरिका ने अपना दूतावास तेल अवीव (Tel Aviv) में बंद कर यरुशलम (Jerusalme) में खोल दिया और फलस्तीन मामलों के दफ्तर को बंद कर दिया. नेतन्याहू अपने कार्यकाल में ईरान (Iran) को बैकफुट में कर पाए और इजरायल के रिश्ते सऊदी अरब, कतर और यूएई से सामान्य हो गए. यानी दिल्ली से उड़ा विमान सीधे तेल अवीव उतरता है जो पहले नहीं होता था क्योंकि सऊदी उन विमानों को अपने ऊपर से जाने की इजाजत नहीं मिलती थी.
इस तरह किया है विपक्ष ने सत्ता का बंटवारा
अगर नेफ्ताली और लापीड सफल हो जाते हैं तो 8 राजनीतिक दलों की पार्टी सत्ता में आएगी. इस फॉर्मूले के तहत नेफ्ताली और लापीड 2-2 साल प्रधानमंत्री रहेंगे और इजरायल पांचवीं बार दो साल में चुनाव करवाने से बच जायेगा. समझौते के तहत पहले नेफ्ताली प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे और लापीड विदेश मंत्री का और बाद नेफ्ताली विदेश मंत्री होंगे और लापीड प्रधानमंत्री. लेकिन दोनों के सामने चुनौती एक ही होगी और वो ये कि क्या इजरायल और फलस्तीन शांति से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं या नहीं, क्योंकि बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यकाल की सबसे बढ़ी विफलता यही रही है.


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