AstraZeneca ने बना ली 'बूस्टर डोज', वैक्सीन की तीसरी खुराक से नहीं बच पाएगा कोई भी वैरिएंट

AstraZeneca

Update: 2021-05-20 12:13 GMT

भारत (India) समेत दुनिया के कई देशों में ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) से लोगों का वैक्सीनेशन किया जा रहा है. वायरस के नए वैरिएंट सामने आने के बाद लोगों के मन में सवाल खड़े हो रहे थे कि क्या कोरोना की वैक्सीन नए वैरिएंट (New Variant) के खिलाफ कारगर होगी या नहीं? ऐसे में अच्छी खबर यह है कि एस्ट्राजेनेका कंपनी ने वैक्सीन की बूस्टर डोज (Booster Dose) तैयार कर ली है. यह डोज कोरोना के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ मजबूत एंटीबॉडी (Anti-Body) पैदा करने में कारगर पाई गई है.

ब्रिटेन के अखबार फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में एक शोध के हवाले से इसकी जानकारी दी गई. बता दें कि वैक्सीन निर्माता कंपनियां ये चेतावनी दे चुकी हैं कि कोरोना वैरिएंट से बचने के लिए हर साल बूस्टर डोज लगवाना पड़ सकता है. ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को लेकर हुई रिसर्च में पाया गया कि वैक्सीन सभी तरह के वैरिएंट पर कारगर है. बूस्टर के निर्माण में एडिनोवायरस के नए वैरिएंट का इस्तेमाल हुआ है. हालांकि यह रिसर्च अभी प्रकाशित नहीं हुई है.
बूस्टर डोज के लिए मची होड़
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वैरिएंट से बचने के लिए अगर हर साल बूस्टर की डोज लगवाई गई तो इससे वैक्सीन के प्रभाव पर असर पड़ सकता है. हालांकि यह अभी पता नहीं चल सका है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कब तक प्रकाशित होगी लेकिन इस जानकारी के सामने आते ही दुनिया में बूस्टर के लिए होड़ मच गई है. यूरोपीय संघ पहले ही अरबों डोज के लिए फाइजर कंपनी के साथ डील कर चुका है.
ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड कोरोना की वैक्सीन है जिसके परिणाम बेहद अच्छे देखे गए हैं. इसकी इफीकेशी भी उच्च है और यह कोरोना के संक्रमण और मृत्यु के खतरे को रोकने में सक्षम है. इस वैक्सीन का उपयोग भारत और दुनिया के कई देशों में हो रहा है. 27 अप्रैल, 2021 तक 13.4 करोड़ डोज लोगों को दी जा चुकी है. स्वास्थ्य मंत्रालय कोविड-19 के टीकों की बराबर निगरानी कर रहा है और सुरक्षा के सभी मानदंडों पर नजर रखी जा रही है. कहीं भी कोई विपरीत प्रभाव दिखने पर उसकी जांच कराई जा रही है.
विवादों में घिरी 'कोविशील्ड'
कोविशील्ड लगवाने के बाद खून के थक्के जमने की खबरें आने से ये वैक्सीन विवादों में आ गई थी. यूरोप के कई देश इस वैक्सीन पर अस्थाई रोक भी लगा चुके हैं. ब्रिटेन के वैज्ञानिक ने खतरे को देखते हुए 40 साल से कम उम्र के लोगों को ही टीका लगवाने की सलाह दी है. हालांकि भारत में टीका लेने के बाद ब्लीडिंग (खून बहना) और क्लोटिंग (खून का थक्का बनना) की शिकायत बहुत कम देखी जा रही है. जैसे-जैसे टीकाकरण का काम बढ़ेगा, वैसे-वैसे इसमें वृद्धि की संभावना हो सकती है.
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