श्रीलंका में 100 दिन पूरे हुए सरकार विरोधी प्रदर्शन, प्रदर्शनकारियों का एलान- व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव होने तक जारी रहेगा आंदोलन
श्रीलंका में सरकार विरोधी प्रदर्शन के 100वें दिन में प्रवेश करने पर आंदोलनकारियों ने एलान किया कि वे राष्ट्रपति पद को समाप्त करने समेत व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव होने तक अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रीलंका में सरकार विरोधी प्रदर्शन के 100वें दिन में प्रवेश करने पर आंदोलनकारियों ने एलान किया कि वे राष्ट्रपति पद को समाप्त करने समेत व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव होने तक अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे। सरकार विरोधी प्रदर्शन नौ अप्रैल को राष्ट्रपति कार्यालय के पास शुरू हुआ था और लगातार जारी है।
स्वतंत्रता संग्राम में बदला सरकार विरोधी अभियान
आंदोलन के एक प्रमुख कार्यकर्ता, फादर जीवनंत पीरिस ने कहा, 'हम अपनी लड़ाई तब तक जारी रखेंगे जब तक कि हम व्यवस्था के पूर्ण परिवर्तन के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते। यह एक स्वतंत्रता संग्राम है। हम लोगों की शक्ति के माध्यम से एक सत्तावादी राष्ट्रपति को घर भेजने में कामयाब रहे।' 73 वर्षीय राजपक्षे बीते बुधवार को मालदीव भाग गए थे और फिर गुरुवार को सिंगापुर पहुंचे। शुक्रवार को उन्होंने औपचारिक रूप से इस्तीफा दे दिया था। प्रदर्शनकारियों के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति विक्रमसिंघे अब अगला निशाना हैं और उन्हें हटाने का अभियान शुरू हो चुका है।
मूलभूत जरूरतों में कमी के बाद शुरू हुआ आंदोलन
श्रीलंका में मूलभूत आवश्यकताओं की मांग करने वाले मुट्ठी भर व्यक्तियों द्वारा एक छोटे से विरोध के रूप में शुरू हुआ आंदोलन देखते-देखते एक सुनामी में बदल गया। इसने शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को उखाड़ फेंका। जैसे ही मार्च में संकट सामने आया, मुट्ठी भर लोग दूध और नियमित बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी जरूरतों की मांग के लिए तख्तियां लेकर एक छोटे समूह में इकट्ठा हो गए। कुछ ही दिनों में श्रीलंकाई लोगों को ईंधन और रसोई गैस प्राप्त करने के लिए मीलों लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ा और कई घंटों तक बिजली की कटौती का सामना करना पड़ा।
सरकार के नकारात्मक रुख के बाद बिगड़ी स्थिति
भीषण गर्मी में कतारों में अपनी बारी का इंतजार करते हुए करीब 20 लोगों की मौत भी हो गई। स्थिति बिगड़ती चली गई। लोग इंतजार करते रहे कि सरकार सकारात्मक कदम उठाए, लेकिन राजपक्षे सरकार ने कोई समाधान नहीं दिया और लोगों की पीड़ा बढ़ती चली गई। सरकार ने अपने अंतरराष्ट्रीय ऋण का भुगतान करने से इन्कार करते हुए अप्रैल के मध्य में देश को दिवालिया घोषित कर दिया। इससे देश में कालाबाजारी का दौर शुरू हुआ। लोगों ने सुविधाओं के लिए ज्यादा पैसा अदा किया। ईंधन कानूनी खुदरा मूल्य से चार गुना अधिक दामों पर बेचा गया।अपने कष्टों का कोई अंत नहीं होता देख देशभर के लोग राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।
राजपक्षे परिवार आर्थिक बर्बादी के लिए दोषी
लगभग दो दशकों तक श्रीलंका पर शासन करने वाले एक शक्तिशाली राजवंश राजपक्षे को देश की आर्थिक बर्बादी के लिए दोषी ठहराया गया है। उधर, शुक्रवार को श्रीलंका के अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद विक्रमसिंघे ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों को हिंसा और तोड़फोड़ के किसी भी कृत्य से निपटने की शक्ति और स्वतंत्रता दी गई है।
प्रत्येक वाहन के लिए ईधन का साप्ताहिक कोटा निर्धारित
अपने सबसे खराब ऊर्जा संकट के बीच जनता को व्यवस्थित तरीके से ईंधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से श्रीलंका सरकार ने ईंधन पास पेश किया है जो प्रत्येक वाहन मालिक को साप्ताहिक कोटा की गारंटी देगा। यह जानकारी बिजली एवं ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकरा ने की। 1948 में स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। देश एक तीव्र विदेशी मुद्रा संकट के कारण अपने आवश्यक आयात, ईंधन, भोजन और दवा के लिए भुगतान करने में असमर्थ है। जनता ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी कतारों में लगी है।